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Piyush jha Nov 2019
आज फिर आंखें नम सी हो गई हैं।
कोई टूटा सा ख्वाब करीब से होकर गुजरा हैं।
कभी जो अपने घर के दिये थे, उसमें दूसरों को तेल डालते हुए देखा।
गैरों से शिकवा करे अपनी ही डाल कमजोर थी।
वक्त की बात नहीं हैं आपस की डोर में ही गांठ थी।
अफ़सोस इसी बात का हैं कि,
कभी जो परिंदे से उड़ के हर डाल पर बैठ जाया करते थे।उन्होंने ने भी एक पेड़ पर घोंसला बना ही लिया था।
©piyushjha0
Piyush jha Nov 2019
आज कागज़-कलम लेके बैठा ये सोच कर कि कुछ ऐसा लिखुंगा  जिससे दास्तां बन जाएं या जो खुद दास्तां बन जाए।
तो शुरुआत क्यों न जुल्फ़ों से की जाए और होंठों तक पहुंचा जाए।
तो दिल ने कहा क्यों न जुल्फ़ों तक ही सिमट के रहा जाए।
खुदा को फलक से उतार के इश्क के दरबार में पेश किया जाए।
फरमान सजा-ए-मौत की सुनाया जाए।
हिमाकत कैसे हुई उसकी यह सोचने की,कि एक हसीन रूप बनाया जाए।
जिसकी जुल्फ़ों में ही उलझ कर हमने ये भी ना सोचा कि,जान दे दी जाए।
मोहब्बत

— The End —