Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
 
Deovrat Sharma Aug 2018
●●●
मन को उमंगों तरंगों  से था वास्ता
सतरंगे  छलावों का अहसास था।
यूँ ही ख्वाबों ख़्यालों में खोया रहा ओर
हक़ीकत की दुनिया से अनजान था।।

इस कदर हो के गाफ़िल इस संसार में
उम्र सारी गुजारी मिथ्या अहसास में
अब गुज़र जो गयी सो गुज़र ही गयी
अब भी कुछ वक्त है तू संभल जा जरा।।

उस भरम से उबर  मन को एकाग्र कर
खुद को यूँ ना गवां ख़ुद की पहचान कर
लडखडा कर संभलना समझदारी है
तू जानता है ये सब पर नही मानता।।

यूँ ही ख्वाबों ख़्यालों में खोया रहा ओर
हक़ीकत की दुनिया से अनजान था।
मन को उमंगों तरंगों  से था वास्ता
सतरंगे  छलावों का अहसास था।।

●●●
©deovrat 09-08-2018
Deovrat Sharma Aug 2018
●●●
लमहा लमहा साँसे तेरी सिमटती रही।
कब उम्र  यूँ ही गुजरी पता ना चला।।
दिन महीने बने फिर वो साल बनते गये।
वक्त गया तो गया फिर वो चला ही गया।।

काले घुंघराले केशों पे तुझको बडा नाज़ था।
अब ना काले रहे ना वो अब घुंघराले हैं।।
केश श्याम से स्वेत कब और कैसे हुए।
तू समझ भी ना पाया, जोर कुछ ना चला।।

तुझको दुनिया में भेजा था उस ईश ने।
कुछ भलाई करे कुछ गाढी कमाई करे।।
सुभग-ओ-सुघर काया थी तुझको मिली।
रोगों ने कब तुझे आ घेरा पता ना चला।।  

तू यूँ गाफ़िल हुवा इस चकाचौंध में
सारी पूँजी लुट गई तू देखता रह गया।।
है जो कुछ दिन का मेला ये रहे ना रहे।
फिर ये पंछी उडा और अकेला चला।।

इस भरम में तू जीता रहा ज़िन्दगी।
ये सारी दुनिया तेरे वास्ते  है बनी।।
दरिया के रेत पर की इबारत है ये।
एक आयी लहर और सभी बह चला।।

नाज़-ओ-अंदाज़ पर तब फ़िदा थे सभी।
चाँद तारे, नज़ारे, फ़लक-ओ-ज़मीं
अब ना वो अंदाज़ है ना ही वो नाज़ है।
कब रहमतें सब गयी कुछ पता ना चला।।

रोज सूरज उगा जब भी आकाश में।
उसकी किरणों में संदेश इक तेज था।।
दिन का सोना और फिर रात भर जागना।
ये उलटी गंगा बही तू डुबकी लगाता रहा।।

अब कुछ होश कर अब तो कुछ ज्ञान कर।
अपने कर्मों पे बन्दे तू कुछ ध्यान कर।।
जाग कर के भी बिस्तर पे सोया है क्यूँ।
उठ चल कर आत्ममंथन संभल तू जरा।।

लमहा लमहा साँसे तेरी सिमटती रही।
कब उम्र  यूँ ही गुजरी पता ना चला।।
जाग कर के भी बिस्तर पे सोया है क्यूँ।
उठ चल कर आत्ममंथन संभल तू जरा।।

●●●
©deovrat 06.08.2018
Deovrat Sharma Aug 2018
●●●
कोशिशें लाख करे दामन
मुझसे छुडा ना पायेगा।
वो मेरी दीवानगी को
ज़ेहन से भुला ना पायेगा।।

उसका दिल धड़कता है
मेरी ही धड़कन से।
जो धड़कनें ही ना रही
भला क्या वो जी पायेगा।।

●●●
©deovrat 04.08.2018
Deovrat Sharma Aug 2018
●●●
ना सवाल कर ना जवाब दे
अब उमर का तो ख़याल कर।

ना समझ सका जो चश्म-ए-ज़बां
उस शख़्स का ना मलाल कर।।

●●●
©deovrat 03.08.2018
Deovrat Sharma Aug 2018
●●●
जिन्दग़ी में कई उलझने हैं
कितनी हैं दुश्वारियाँ।
हर कद़म पर ठोकरें हैं
तल्ख़ियाँ मक्कारियाँ।।
◆◆◆

नींद-ओ-चैन खो सा गया
हर ओर है बेचैनियाँ।
ज़ेरोज़बर है सबकी दुनियाँ
मुख़तलिफ़ हैं कहानियाँ।।
◆◆◆

ख़ुदगर्जी में अब गर्क है
इमां पे चलने का चलन।
वो मरासिम-ओ-जहानत
सब लगती हैं नादानियाँ।।

●●●
©deovrat 02.08.2018
Deovrat Sharma Jul 2018
●●●
जह़न के किसी कोने में पोशीदा
मुसल्सल दिल-ओ-दिमाग़ में
पेवस्त हिज्र-ओ-वस्ल
से बावस्ता उनकी
यादें मिरे रूबरु
चली आई...

◆◆◆

दिल-ए-बरहम में
दामिनी सी वो चमक
तेज धड़कन में उमडती
घुमडती घटाओं की धमक
भीगे जज़्बात के इस मौसम में
बेसाख़्ता-ओ-बेसबब
ना जाने क्यूँ  आँखे
भर आई...

◆◆◆

उदास तन्हा से
ये शाम-ओ-सहर।
जिन्दग़ी कैसे कटे
कहो अब कैसे हो बसर।।
निबाहें चलों दस्तूर-ए-जुदाई।
फ़िर से करें जिक्र-ए-बेवफ़ाई...

●●●
©deovrat 31-07-2018
Deovrat Sharma Jul 2018
●●●
whatever
is the life
you must live it
with full enthusiasm
and
always
tender thanks
to the almighty nature
who is taking care of
your well-being
and survival

●●●
©deovrat 28-07-2018
Next page