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 Sep 2019
Deovrat Sharma
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तुमने स्वीकार किया ना किया..
मैने तो अपना मान लिया !
प्रिय मन में मुझे बसाना था..
तुम भ्रांति ह्रदय में बसा बैठी !!
~~~

प्रिय स्नेह निमन्त्रण दिया तुम्हे..
तुमने क्यूँ उसको टाल दिया !
मेरे अरमानों की पुष्प लता को..
यूँ ही किनारे डाल दिया !!
~~~

मैं स्वयम् ही अपना दोषी हूँ..
इक तरफ़ा तुमसे प्यार किया !
­ ना कुछ सोचा, ना समझा कुछ..
बस जा तुमसे इज़हार किया !!
~~~

वो एकल प्रणय निवेदन ही..
कर गया मेरे मन को घायल !
तुम समझ ना पाई मर्म मेरा..
और व्यग्र फ़ैसला ले बैठी !!
~~~

अब ऐसे प्यार की बातों का..
क्या मतलब है क्या मानी है !!
मैने क्या चाहा समझाना..
तुम जाने कुछ और समझ बैठी !!

प्रिय मन में मुझे बसाना था..
तुम भ्रांति ह्रदय में बसा बैठी !!


x-x-x-x-x

@deovrat 12.09.2018
 Aug 2019
Deovrat Sharma

ग़लतफ़हमी
और
अहंकार
के ज़हर की
सिर्फ़ एक
छोटी सी
बूँद..

बरसों के
आपसी
प्यार
और विश्वास
रूपी जल से
सींच कर
उगायी हुई...

स्नेह समाहित
अमृत-तुल्य
रिश्तों की
नाज़ुक बेल को
पल भर में
सुखा
सकती है....
*
(c) deovrat-03.08.2019
 Mar 2019
Deovrat Sharma
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होठों पे तबस्सुम-ओ-हया है
गज़ब की शोख़ी है।
उसके ज़ख्म-ए-जिग़र में कसक है,
बहुत वो गहरे हैं।।

अब इससे ज्यादा बतायें क्या
दास्तान-ए-हिज्र।
अब उसकी नफ़स-नफ़स पर भी
बला के पहरे हैं।।

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@ deovarat- 12.03.2019
दास्तान-ए-हिज्र=वियोग की कहानी
नफ़स=साँस
 Oct 2018
Deovrat Sharma
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दिल-ए-नादां जो संभाले
से सम्भल गया होता।
ग़म-ओ-दुश्वारी-ए-दामन से
कब का निकल गया होता।।

ऐसी तन्हाइयां कहाँ मिलती
तब कारवाँ-ए-इश्क़ में।
आगाज़-ए-मोहब्बत में
गर ना फ़िसल गया होता।।

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©deovrat 11.10.2018
 Oct 2018
Deovrat Sharma
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मोगरे की कली
मुश्क़अफसां
अधखिली।
गुन्चा-ओ-गुल
की कशिश
उन अदाओं में है।।
है वो मासूम सी
और बेहिस है वो।
शोख़ अंदाज़ है
कुछ नज़ाकत भी है।।

अब बशर
कोई ऐसा
कहाँ है यहाँ।
जो सुनता
समझता हो
खामोशियाँ।।
मान लो
कुछ तो है जो
बोहत ख़ास है।
दिल जो घायल
हुआ उसकी
चाहत में है।।

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©deovrat 09.10.2018

मुश्कअफ्शां=spreading fragrance
बेहिस=insensitive
 Oct 2018
Deovrat Sharma
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अबशार-ए-अश्क़ पे
ना तो दिल पे ऐतबार है।
हर लमहा ज़िंदगी का अब
यूँ  ही ख़ुशगवार है।।

दुनिया की तोहमतों की
नही परवाह वो करते।
क़ल्ब-ओ-जिग़र ज़हन लहू
नसों में जिनके प्यार है।।

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©deovrat 05.10.2018
 Oct 2018
Deovrat Sharma
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अश्क़ मेरे...
तेरे रुख़सार पे
क्यूँ बहते हैं।
कहीं ये...
सच तो नही हम
तेरे दिल में रहते हैं।।
◆◆◆

रोज अर्श से...
दबे पाँव, ज़मीं पर
उतरता है।
वो चाँद...
छत पे मेरी है,
ये लोग कहते हैं।।
◆◆◆

अश्क़बारी...
का वो आलम भी,
अज़ब होता है।
सुकून-ए-दिल है...
मगर फिर भी,
अश्क़ बहते हैं।।
◆◆◆

तू कब तलक...
ख़फा रहेगा जरा,
बता दे मुझे।
ना मिल सकेंगे...
कभी हम,
ये सब भला क्यूँ कहते हैं।।
◆◆◆

कितनी यादें...
ख़ुद के दामन में,  
सिमट आयी हैं।
फिर ये....
कैसे कहें हम,
कि तनहा रहते हैं।।

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©deovrat 01.10.2018
 Sep 2018
Deovrat Sharma
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कुछ बारिशें कुछ मस्तियाँ
उन ज़ुल्फों से अटखेलियां।
वो बहार थी जो गुज़र गई
अब गर्दिशों का ग़ुबार है।।

वो समा था वस्ले ख़ुमार का
ये फ़िज़ा है तन्हा उदास सी।
शाख-ए-ग़ुल की बात क्या
ये हयात उजड़ा दयार है।।

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©deovrat 28.09.2018
 Sep 2018
Deovrat Sharma
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आबे-रवां है जिन्दग़ी
मुश्कअफ्शां तेरा ख़याल।।

हर शः में तेरा अक्स है
मोअत्तर तेरा जमाल।।

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©deovrat 24.09.2018

आबे-रवां=flowing water
मुश्कअफ्शां=spreading fragrance
मोअत्तर=aromatic
जमाल=Beauty
 Sep 2018
Deovrat Sharma
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देखो ना इस अन्दाज से
यूँ इस तरह मुझे।

कई हादसों की भीड में
एक हादसा हूँ मैं।।

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©deovrat 24.09.2018
 Sep 2018
Deovrat Sharma
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धुंवाँ धुंवाँ सा समा है हर ओर धुंद फैली है।
फ़िजा में तल्ख़ी है..शब से हवा कसैली है।।

ऊँचे रसूख़वान हैं.. दख़ल रखते हैं हुक़ूमत में।
सुना है शहर में..कुछ नये लोगों ने..पनाह ली हैं।।

शक्ल इन्सानों की कैफ़ियत है दरिंदों जैसी।
उनके उजले है लिब़ास.. रूह मगर मैली है।।

लुट गया कारवाँ.. सब निगहबान गाफ़िल हैं।
अज़ब सा मंज़र है .. अनबूझ सी पहेली है।।

किसी मासूम की दबी दबी सी सिसकी हैं।
सहमा हुआ सा आल़म सुनसान सी हवेली है।।

किसकी नज़र लगी है आराईश-ए-गुलशन को।
जिधर भी देखिये अब सिर्फ झाडियां कंटीली हैं।।

धुंवाँ धुंवाँ सा समा है...हर ओर धुंद फैली है।
फ़िजा में तल्ख़ी है....शब से हवा कसैली है।।

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©deovrat 17.09.2018

रसूख़वान=resourceful
आराईश=Beauty
कैफ़ियत=nature
 Sep 2018
Deovrat Sharma
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मुसलसल आप जो
इज़हार-ए-प्यार करते हैं।
कहीं ये शक तो नही कि
हम आप ही पे मरते हैं।।

मोहब्बत यूँ तो है अपना
भी तास़ीर-ए-जिग़र।
मगर सच जानिये
फ़रेब-ओ-जफ़ा से डरते है।।

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©deovrat 15.09.2018
 Sep 2018
Deovrat Sharma
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दिन भर दोपहरी की तपती
चिलचिलाती धूप और लू  के
थपेडों से त्रस्त थकी गोरैया
दिन के तीसरे पहर
सूरज की मध्यम सी
लालिमा से चमकते
तिनका-तिनका जोड कर
बडे जतन से बनाये गये
घोंसले में लौट आयी।

बेइन्ताह ख़ुशी से
चहचहाते फुदकते
चूज़ों से घिरी वह नन्ही चिड़िया
मातृत्व.से उद्दवेलित अपने बच्चों को
प्यार से सराबोर करते हुए
च़ुग कर लाया दाना दुनका
उनकी चोंच में डाल वो ममतामयी माँ
दिन भर की थकन विक्षोभ
परेशानी भूल गयी।।

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©deovrat 14.09.2018
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