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 Sep 2018
Deovrat Sharma
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लोग शैदाई-ओ-बिस्मिल को सज़ा देते हैं।
इश्क के सिलसिले बस यूँ ही रवां रहते हैं।।

मुश्कअफ्शां थे वो गुलशन जो यूँ पामाल हुए।
कर्ब-ओ-दर्दे जिग़र कब इस तराह कम होते हैं।।

मुसलसल बहता ही रहता है ये दरिया-ए-इश्क़।
श़म्मे रोशन पे       खुद परवाने  फ़ना होते हैं।।

नज़र-अंदाज हम कर देते है उनको लाज़िम।
जो बेख़याली में भी नज़रों को फेर लेते हैं।।

इबादते-ए-इश्क कहो या कि आबशार-ए-जुनूं।
प्यार और इश़्क के मुख़तलिफ़ उसूल होते हैं।।

सलावतें मिलती है माहताब की शुआओं से।
अख़्तर-ए-इश़्क पे फरिस्ते भी रश्क़ करते है।।

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©deovrat 09.09.2018

मुश्कअफ्शां=spreading fragrance
शैदाई=lover
कर्ब=agonies
आबशार=cascade series of small fall
सलावतें=blessings
अख़्तर=fortune
 Sep 2018
Deovrat Sharma
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हमारे नक्स-ए-पा
गर मिल ही जायें
तुम चले आना।

खौफ़-ए-पुर
दस्त-ओ-सहरा से
कहीं तुम हो नही जाना।।

ना जाने कब से
मुन्तज़िर है दिल
दीदार-ओ-वस्ल का।

रंज़-ओ-ग़म
अपने अता कर के  
मुहब्बत साथ ले जाना।।


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©deovrat 07.09.2018

नक्स-ए-पा=footprint
खौफ़-ए-पुर=fearful
दस्त-ओ-सहरा=for­est & desert
मुन्तज़िर=awaiting
 Sep 2018
Deovrat Sharma
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अंदाज़-ए-इश्क
सबका है ज़ुदा ज़ुदा
यह जान लो।
गुफ़्तगू नज़रों से
या कि आश़नाई दिल से हो।।

पेंच नज़रों के चलें
या तो फ़कत
दिल से दिल की बात हो।
लाज़िम ये है मगर
कि तिस्नग़ी हर दिल में हो।।

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©deovrat 04.09.2018
तिस्नग़ी=desire, thirst
आश़नाई=affair, love
 Sep 2018
Deovrat Sharma
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मुसलसल
ख़्वाहिश-ओ-उम्मीदों
पे बसर करता हूँ।
मगर ये ना समझना
कि ख़ुदी पे मरता हूँ।।

मुसाफ़िर हूँ
मंजिल मिल के रहेगी,
है ये यकीं मुझको।
इसी जज्बात से मैं
आगाज़-ए-सफर करता हूँ।।

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©deovrat 02.09.2018
 Sep 2018
Deovrat Sharma
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तमाम हसरतें नाकाम
तम्मनायें हैं पामाल।
बेहाल जिन्दग़ी है
जब से है उनका ख़याल।।

यक़ीनन है
अजाब-ओ-ताज्जुब ख़ेज
ये बात।
वो पूछते हैं हाल
जिनको नही कोई मलाल।।

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©deovrat 30.08.2018
 Aug 2018
Deovrat Sharma
क़ब्ल की बातें
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कुदरत के करिश्मों का
मिलता नही ठिकाना।
दिल के धड़कते अरमाँ
साँसों का आना जाना।।

बावस्ता जहाँ की रौनक़
है चश्म-ए-बीनाई से।
गर बे-नूर हों ये आँखें
स्याह-ओ-बदरंग है ज़माना।।

फ़ितरत में थी फकीरी
अलमस्त था वो जीवन।
वो दोस्तों की महफ़िल
यह गर्दिश-ए-ज़माना।।

नीचे जमीं पे बिस्तर
सर पे फ़लक की चादर।
बेफिक्र सी वो दुनिया
अब  फिक्र-ए-आबोदाना।।

एक-रंगी अजीब सी है
सतरंगी जिन्दग़ी ये।
सब-कुछ हैं मन की बातें
हँसना-रोना-मुस्कराना।।

अक़ीबत की ना थी चिन्ता
बेफिक्र था वो बचपन।
मुझको दिला दो फिर से
वो वक़्त-ए-बसर ज़माना।।

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©deovrat 25.08.2018
अक़ीबत=future life
 Aug 2018
Deovrat Sharma
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मेरे लब-ए-तबस्सुम की
हकीक़त अगर जान लोगे तुम।

यकीनन कैफ़ियत-ओ-जुनू की
ताकीदियत मान लोगे तुम।।

दिल से ना ही हयात-ए-दहर
से तुम कभी रुख़सती देना।

हाल-ओ-मुस्तक़बिल हूँ
तुम्हारा  ये पहचान लोगे तुम।।

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©deovrat 21.08.2018

ताकीदियत=intensiveness
 Aug 2018
Deovrat Sharma
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ये लगता है यकायक
अज़ल से नाजिल क़यामत है।

लब खुल ना सके फकत
अहसास-ए-थरथराहट है।।

उन कद़मों की आहट
सरसराहट उनके पैरहान की।

मेरी धडकन-ओ-साँसों
की मेरे दिल से बगावत है।।

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©deovrat 20.08.2018
 Aug 2018
Deovrat Sharma
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मन को उमंगों तरंगों  से था वास्ता
सतरंगे  छलावों का अहसास था।
यूँ ही ख्वाबों ख़्यालों में खोया रहा ओर
हक़ीकत की दुनिया से अनजान था।।

इस कदर हो के गाफ़िल इस संसार में
उम्र सारी गुजारी मिथ्या अहसास में
अब गुज़र जो गयी सो गुज़र ही गयी
अब भी कुछ वक्त है तू संभल जा जरा।।

उस भरम से उबर  मन को एकाग्र कर
खुद को यूँ ना गवां ख़ुद की पहचान कर
लडखडा कर संभलना समझदारी है
तू जानता है ये सब पर नही मानता।।

यूँ ही ख्वाबों ख़्यालों में खोया रहा ओर
हक़ीकत की दुनिया से अनजान था।
मन को उमंगों तरंगों  से था वास्ता
सतरंगे  छलावों का अहसास था।।

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©deovrat 09-08-2018
 Aug 2018
Deovrat Sharma
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लमहा लमहा साँसे तेरी सिमटती रही।
कब उम्र  यूँ ही गुजरी पता ना चला।।
दिन महीने बने फिर वो साल बनते गये।
वक्त गया तो गया फिर वो चला ही गया।।

काले घुंघराले केशों पे तुझको बडा नाज़ था।
अब ना काले रहे ना वो अब घुंघराले हैं।।
केश श्याम से स्वेत कब और कैसे हुए।
तू समझ भी ना पाया, जोर कुछ ना चला।।

तुझको दुनिया में भेजा था उस ईश ने।
कुछ भलाई करे कुछ गाढी कमाई करे।।
सुभग-ओ-सुघर काया थी तुझको मिली।
रोगों ने कब तुझे आ घेरा पता ना चला।।  

तू यूँ गाफ़िल हुवा इस चकाचौंध में
सारी पूँजी लुट गई तू देखता रह गया।।
है जो कुछ दिन का मेला ये रहे ना रहे।
फिर ये पंछी उडा और अकेला चला।।

इस भरम में तू जीता रहा ज़िन्दगी।
ये सारी दुनिया तेरे वास्ते  है बनी।।
दरिया के रेत पर की इबारत है ये।
एक आयी लहर और सभी बह चला।।

नाज़-ओ-अंदाज़ पर तब फ़िदा थे सभी।
चाँद तारे, नज़ारे, फ़लक-ओ-ज़मीं
अब ना वो अंदाज़ है ना ही वो नाज़ है।
कब रहमतें सब गयी कुछ पता ना चला।।

रोज सूरज उगा जब भी आकाश में।
उसकी किरणों में संदेश इक तेज था।।
दिन का सोना और फिर रात भर जागना।
ये उलटी गंगा बही तू डुबकी लगाता रहा।।

अब कुछ होश कर अब तो कुछ ज्ञान कर।
अपने कर्मों पे बन्दे तू कुछ ध्यान कर।।
जाग कर के भी बिस्तर पे सोया है क्यूँ।
उठ चल कर आत्ममंथन संभल तू जरा।।

लमहा लमहा साँसे तेरी सिमटती रही।
कब उम्र  यूँ ही गुजरी पता ना चला।।
जाग कर के भी बिस्तर पे सोया है क्यूँ।
उठ चल कर आत्ममंथन संभल तू जरा।।

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©deovrat 06.08.2018
 Aug 2018
Deovrat Sharma
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कोशिशें लाख करे दामन
मुझसे छुडा ना पायेगा।
वो मेरी दीवानगी को
ज़ेहन से भुला ना पायेगा।।

उसका दिल धड़कता है
मेरी ही धड़कन से।
जो धड़कनें ही ना रही
भला क्या वो जी पायेगा।।

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©deovrat 04.08.2018
 Aug 2018
Deovrat Sharma
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ना सवाल कर ना जवाब दे
अब उमर का तो ख़याल कर।

ना समझ सका जो चश्म-ए-ज़बां
उस शख़्स का ना मलाल कर।।

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©deovrat 03.08.2018
 Jul 2018
Deovrat Sharma
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जह़न के किसी कोने में पोशीदा
मुसल्सल दिल-ओ-दिमाग़ में
पेवस्त हिज्र-ओ-वस्ल
से बावस्ता उनकी
यादें मिरे रूबरु
चली आई...

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दिल-ए-बरहम में
दामिनी सी वो चमक
तेज धड़कन में उमडती
घुमडती घटाओं की धमक
भीगे जज़्बात के इस मौसम में
बेसाख़्ता-ओ-बेसबब
ना जाने क्यूँ  आँखे
भर आई...

◆◆◆

उदास तन्हा से
ये शाम-ओ-सहर।
जिन्दग़ी कैसे कटे
कहो अब कैसे हो बसर।।
निबाहें चलों दस्तूर-ए-जुदाई।
फ़िर से करें जिक्र-ए-बेवफ़ाई...

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©deovrat 31-07-2018
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