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लगे रूयी के गोले
लगे बरफ के गोले
बादलो के टुकड़े
लगे कितने सजीले
दूधिया सा रंग
फैला सुंदर सा गगन
मन चाहे इनमें झूलूँ
लूँ मस्त हिंडोलें
जितनी हँसी ज़मीन
उतना यह आसमा
क्या बन सकता है
बादलों का बिछओना
छू के देखा  नहीं है
हाथों से पकड़ा नहीं है
लिया पानी की बूँदों ने
नया रूप सलोना
ना जेबों में भरा जाए
ना तिजोरी में समाए
क़ुदरत का क़ीमती
यह अनमोल ख़ज़ाना
कभी ग़ुस्से से गरजे
कभी प्यार से बरसे
जड़े कर्ण कर्ण में
ज़िंदगी का नगीना

— The End —