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Feb 2021
लगे रूयी के गोले
लगे बरफ के गोले
बादलो के टुकड़े
लगे कितने सजीले
दूधिया सा रंग
फैला सुंदर सा गगन
मन चाहे इनमें झूलूँ
लूँ मस्त हिंडोलें
जितनी हँसी ज़मीन
उतना यह आसमा
क्या बन सकता है
बादलों का बिछओना
छू के देखा  नहीं है
हाथों से पकड़ा नहीं है
लिया पानी की बूँदों ने
नया रूप सलोना
ना जेबों में भरा जाए
ना तिजोरी में समाए
क़ुदरत का क़ीमती
यह अनमोल ख़ज़ाना
कभी ग़ुस्से से गरजे
कभी प्यार से बरसे
जड़े कर्ण कर्ण में
ज़िंदगी का नगीना
Written by
Shabistan Firdaus  44/F/Dubai
(44/F/Dubai)   
88
 
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