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May 12 · 51
उपाय
दोस्त,
करो कुछ ऐसा उपाय
उदास और हताश चेहरे
कमल से खिल जाएं।
उनमें जीने की ललक उभरे।
वे छोटी सी बात पर न भड़कें।
वे शांत रहें
और अवसरों की
तलाश के लिए
तत्पर बने रहें।
उनमें जिजीविषा बनी रहे।
उनमें सुख समृद्धि और संपन्नता की
अभिलाषा जगी रहे।
उन्हें यह जीवन किसी जन्नत से
कम  न लगे।
वे इस जन्नत में बने रहनेके लिए
निरन्तर अथक संघर्ष करते रहें ।
१२/०५/२०२५.
दुनिया के भीतर
आदमी का सुरक्षा कवच
होती है मां
और मां को सुरक्षा
देता है उसका पुत्र।
मां ही
पुत्र की दृष्टि में
दुनिया के भीतर
सबसे सुंदर होती है
क्योंकि कि
मां पुत्र की
पहली शिक्षिका होती है
जिसके सान्निध्य में
जीवन का बीज
अंकुरित होता है
और यह पुष्पित पल्लवित भी
मां की अपार कृपा से होता है।
ममत्व की मूर्ति मां की आत्मा
पुत्र में बसती है
और पुत्र की कमज़ोरी
उसकी मां होती है।
पुत्र मां को दुखी नहीं देख सकता।
उसके लिए वह लड़ भी है पड़ता।
एक सच कहूं
पुत्र की नज़र में
मां की सुन्दरता
अनुपम होती है।
मां में कायनात बसती है।
मां में जीवन की खुशबू रहती है।
मां के न रहने पर
सुध बुध सुख की गठरिया
बिखर जाती है।
अकेले होने पर
मां बहुत याद आती है।
उसकी अनुभूति
जीवन की शुचिता की
प्रतीति कराती है।
मां होती है सबसे सुंदर
उसकी यादों में बसता है
भावनाओं  का समन्दर।
११/०५/२०२५.
दो देशों के
युद्ध विराम में राष्ट्रीय प्रवक्ता के
प्रेस विज्ञप्ति देने से पूर्व ,
प्रेस वार्ता में कुछ कहने से पहले
किसी तीसरे राष्ट्र के
राष्ट्रपति ने युद्ध विराम की बाबत
ट्वीट कर दिया
और सारा श्रेय
ख़ुद लेने का प्रयास किया।
इस बाबत
आप क्या सोचते हैं ?
क्या यह सही है ?
मेरे यहां कुछ कहावतें हैं...
दाल भात में मूसल चंद..!
परायी शादी में अब्दुल्ला दीवाना...!
इस तीसरे कौन के संबंध में
हम सब को
नहीं रहना चाहिए मौन
वरना हमारी हैसियत
होती जाएगी गौण।
हमें मूसल चंद और अब्दुल्ला के
हस्तक्षेप से बचना होगा।
मित्र राष्ट्र और शत्रु राष्ट्र को
द्विपक्षीय संवाद से
अपना पक्ष
एक दूसरे के सम्मुख
रखना होगा।
तीसरे की कुटिलता से
स्वयं को बचाना होगा।
वरना धोखा मिलता रहेगा।
सरमायेदार अपना घर भरता रहेगा।
देश दुनिया और समाज पिछड़ता रहेगा।
आम आदमी सिसकता रहेगा।
११/०५/२०२५.
कल
अचानक राष्ट्र
जीतते जीतते हार गया।
गाय भक्त देश
कसाई से कट गया।
तृतीय पक्ष
बन्दर कलन्दर
बिल्लियों के
हिस्से की रोटी को
छीनने का
जुगाड़ कर गया।
साधन सम्पन्न देश
खुद को विपन्न
सिद्ध कर गया।
कल कोई
बुद्धू के सुख को
हड़प कर गया।
उसे लाचार कर गया।
११/०५/२०२५.
कितना सही कहते हैं ...
हमारे लोग
आदमी कितनी भी
रवायती पढ़ाई लिखाई कर ले,
वह निरा अव्यावहारिक बना ‌रहता है,
जब तक कि
वह नौकरी अथवा काम-धंधे में क़दम न रख लें,
वह पढ़ा लिखा नौसीखिया कहलाता है,
जीवन में धक्के खाता रहता है ।


आज देश में
युद्ध अराजक शक्तियों के कारण
थोपा गया है ,
देश को पड़ोसी देश ने
धोखा दिया है।
फलत: देश में आपातकाल लागू है।
यदि यह न हो तो
हर ऐरा गैराज नत्थू खैरा
बेकाबू होकर
अराजकता का नाच नचा दे,
देश दुनिया और समाज की
व्यवस्था को पंगु ‌बना दे,
विकास के पहिए को चरमरा दे।
ऐसे हालात में
देश क्या करें ?
क्यों न वह हरेक आम और खास पर
सख़्ती बढ़ा दें !
सभी को
अनुशासन का पाठ पढ़ा दे,
जीवन की गतिशीलता को बढ़ा दें,
आपातकाल में ढंग से रहना सिखा दे।

आपातकाल
आफत काल
कतई नहीं है
बल्कि यह वह अवसर है
जिससे सब कुछ सही हो सकता है,
देश दुनिया और समाज
अपने गंतव्य तक
सफलता पूर्वक पहुंच सकता है,
भले ही जीवन धारा में
कुछ उतार चढ़ाव आएं
सब अपने लक्ष्य को हासिल कर पाएं।

आपातकाल
अनुशासन पर्व
बन सकता है ,
यह सभी को सकारात्मक बनाता है ।
यह कठिनाइयों के बीच
जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा बनकर
जन गण को नित्य नूतन दिशा में जाने की
प्रतीति कराता है।
बेशक यह देश का
ताना-बाना हिला दे
सत्ता के गलियारों में
तानाशाही के रंग ढंग दिखला दे ।
निकम्मों को
दिन में तारे दिखला दे।

आपातकाल की सीख
कोई नहीं है भीख
बल्कि यह भीड़ तंत्र को
काबू में रखने का गुर और गुण है
इसे मुसीबत समझना ही
आज बना एक अवगुण है।
फलत: देश आपातकाल
झेलने को है विवश।
इस पर किसका है वश ?
११/०५/२०२५.
शत्रु से लड़ने के दौर में
महाराणा प्रताप
चेतक पर सवार  
जंगल में भटकते हुए
संघर्ष रत रहे
घास की रोटियां खाकर
जीवन यात्रा को ज़ारी रखा।
भामाशाह जैसे दानवीर भी
भारत के इतिहास में हुए।


जीतते जीतते
भारत समझौते को
राजी क्यों हुआ ?
यह सब ठीक नहीं।
हम अपने किरदार को सही करें।
हम सब राणा प्रताप
और भामाशाह प्रभृति बनकर
समय की हल्दी घाटी में
संघर्ष करें , जीवन पथ पर आगे बढ़ें।
सहर्ष कुर्बानी दें।
सर्वस्व बलिदान करने से
कभी भी पीछे न हटें।
हम हारी हुई मानसिकता दिखाकर
आत्म समर्पण क्यों करें ?
हम दिवालिया होने तक
शत्रु से जी जान से लड़ें , आगे बढ़ें।

अभी भी समय हैं ,
हम अपनी शर्तों पर
जीवन पथ पर अग्रसर हों ,
ना कि घुटने टेक पराजित हों।
अब भी समय है
अपनी ग़लती सुधारने का।
शत्रु बोध कर
शत्रुओं को
ललकारने का !
युद्धवीर बनने का !!
अपनी डगर पर चलने का !!!
११/०५/२०२५.
बचपन की कहानी का
रंगा सियार
आज
मैंने अनुभूत किया ।
आजकल
वह सत्ता के सिंहासन पर  
आसीन  है
और हरेक विरोधी को
गिदड़ भभकी दे रहा है ,
और इसके साथ ही
अपने आका के आगे
नाच रहा है।
वह शीघ्रता से
मौत का तांडव करने
शहर शहर
यार मार करने आ रहा है ,
मेरा दिल बैठा जा रहा है।
रंगा सियार
अराजकता के दौर में
रंगारंग कार्यक्रम
प्रस्तुत करना चाहता है।
पर कोई विरला ही
उसकी पकड़ में आता है।
वह हर किसी से मिलना चाहता है,
वह अपने रंगे जाने का दोष
हर ऐरे गैरे नत्थू खैरे के सिर
मढ़ना चाहता है।
११/०५/२०२५.
May 10 · 61
काल चक्र
योगेश्वर कृष्ण का
सुदर्शन चक्र
युद्धभूमि में
काल चक्र बन कर
सब को नियंत्रित करता रहा है।
आप कहेंगे कि
महाभारत के युद्ध में
उन्होंने हथियार उठाया नहीं।
क्या यह सही नहीं ?
बेशक
उन्होंने हथियार उठाया नहीं।
मन के भीतर
जोड़ घटाव गुणा तकसीम कर
उन्होंने काल चक्र को
अपने ढंग से
नियंत्रित किया था।
सारथी बने योगेश्वर ने
अर्जुन को रथ से उतार
अभय दान दिया था ,
जब रथ भस्म हुआ था।
काल चक्र को
हर युग में
परम चेतना ने
मानव रूप में जीया है ,
तभी जीवन ने
नित्य नूतन आयाम छुए हैं।
सब हरि लीला से
चमत्कृत हुए हैं।
११/०५/२०२५.
May 10 · 39
Stand
"Standing firmly
in the time of adversity is our choice
as well as voice.  ",
says  always  conscious to all ,
big or small .
A common man is all in all in democracy.
Standless never exists in any system ,
related to autocracy ,  
dictatorship , demoncracy and democracy.  
To stand firmly  regarding  wellfare issues
is creditable in today 's world.
10/05/2025.
शाम के पांच बजे
युद्ध विराम हुआ
परन्तु शत्रु पक्ष ने
चार घंटे के भीतर
कर दिया है
युद्ध विराम का उल्लंघन।
राष्ट्र है सन्न।
हम लड़ेंगे युद्ध
तब तक ,
जब तक
शत्रु पक्ष नहीं होता
विपन्न।
अब समय आ गया है
हम करें संघर्ष
जब तक
शत्रु राष्ट्र
नहीं हो जाता
छिन्न भिन्न।
अब शत्रु पक्ष में
विभाजन अनिवार्य है !
इससे कम
कुछ भी नहीं स्वीकार्य है।
१०/०५/२०२५.
देश !
तुम सतर्क रहना।
युद्ध विराम
विनम्रता से
तो कर लिया स्वीकार।
देखना कहीं हो न जाए
तुम्हारी स्वायत्तता पर प्रहार।
कहीं छिन न जाए
आम क्या खास के अधिकार।

वे शातिराना तरीके से
तुम्हें दबाव में रखकर
समझौते के लिए
कर दें बाध्य।
यदि ऐसी स्थिति आए
तो देखना देश !
युद्ध है एकमात्र उपाय !
कोई कभी भी
तुम्हारे पुत्रों और पुत्रियों को
कायर न कह पाय ।

तुम्हारी स्वायत्तता और अस्मिता के लिए
हम मर मिटने के लिए तैयार हैं ।
हम जानते हैं भली भांति
तुम्हारा जीवन दर्शन कि  
समस्त विश्व एक परिवार है ।
वे इस शाश्वत सत्य को
समझें तो सही ।
हम शांति चाहते हैं ,
युद्ध के माध्यम से।
शांति ,
समझौता करके मिले ,
यह देशवासियों को स्वीकार्य नहीं।

१०/०५/२०२५.
अचानक
युद्ध विराम की घोषणा ने
सच कहूँ ...
कर दिया है स्तब्ध
अभी राष्ट्र के प्रारब्ध का शुभारंभ हुआ है
और शत्रु पक्ष ने
कर दिया शीघ्र आत्म समर्पण।
सोमवार को
बुध पूर्णिमा के दिन
दोनों पक्षों में होगी संवाद की शुरुआत
होगी सहज और मित्रता पूर्ण वातावरण में वार्तालाप!
उम्मीद है दोनों देश बुद्ध के मार्ग का अनुसरण करेंगे!
यदि शत्रु पक्ष ने कुटिल चाल खेली
और आतंकवाद को दिया बढ़ावा
तो देश मां रण चंडी का आह्वान कर
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का धैर्य धारण कर
संपूर्ण अवतार श्री कृष्ण की कूटनीति को आत्मसात कर
महादेव की तरह विषपान कर
शत्रु के संहार को होगा तत्पर
और समस्त देशवासी करेंगे
भविष्य के संघर्षों की खातिर स्वयं को तैयार।
अब फिलहाल युद्ध विराम
शुभ आकांक्षा का सबब बने।
इस बाबत सभी पक्ष सकारात्मक सोच अपनाएं ,
ताकि सब अपनी आकांक्षाओं पर लगाम लगाकर
अपने अपने राष्ट्र के कल्याणार्थ
सुख समृद्धि और सम्पन्नता भरपूर
संभावना के द्वार समय रहते खोल पाएं।
१०/०५/२०२५.
प्रशासन ने
आम जनता को
ब्लैक आउट के संबंध में
इस हद तक कर दिया है जागरूक

लोग निर्धारित समय तक
घर लौट आते हैं ,
समय रहते लाइट्स ऑफ कर देते हैं।
समय पर सोने और सुबह
जल्दी उठने की आदत को अपना रहे हैं।
अच्छा है
लोगों की सेहत सुधरेगी
रात जंगी सायरन बजा था
मैं थका हुआ गहरी नींद में सोया रहा
सुबह जगा तो देखा कि
खिड़कियों और रोशनदान पर
काले पर्दे टंगे थे
मुझे अच्छा लगा

सोचा कि समय रहते
ब्लैक आउट प्रिकॉशन ले लिया जाए !
जीवन की सार्थकता को समझा जाए !!
जीवन दीप को प्रकाशमान रखा जाए !!!
जीवन यात्रा को जारी रखने में ही है अक्लमंदी।
ब्लैक आउट प्रिकॉशन को तोड़ने का अर्थ होगा...
जीवन की संभावना को नष्ट करना।
सुख समृद्धि और संपन्नता के द्वार को असमय बंद करना।
१०/०५/२०२५.
भाई भाई
आज आपस में क्यों लड़े ?
इस बाबत
क्या कभी किया है
किसी ने विचार विमर्श ?
भाई भाई
बचपन में  परस्पर लड़ने से
करते थे गुरेज
बल्कि यदि कोई
उन से लड़ने का प्रयास करता
तो वे सहयोग करते ,
विरोधी पर टूट पड़ते।
अब ऐसा क्या हो गया है ,
भाई भाई का वैरी हो गया है।

दो बिल्लियों के बीच
मनभेद होने पर
बन्दर की मौज हो जाती है ,
इसे आज तक भी
वे समझ नहीं पाई हैं।
समसामयिक संदर्भों में
अब इसे समझा जाए ,
दो पड़ोसी देश
जिनका सांझा विरसा है ,
द्विराष्ट्र सिद्धान्त से
जिन्हें पूंजीवादी देश ने
गुलामी के दौर से लेकर
आजतक चाल चलकर
हर रंग ढंग से छला है।
उन्हें कमज़ोर रखने के निमित्त
उनको न केवल विभाजित किया गया
बल्कि उनमें
आपसी समन्वय न होने देने की ग़र्ज से ,
उन्हें प्रगति पथ पर बढ़ने से रोकने के लिए
बरगलाया गया है।
उनके अहम् के गुब्बारे को फुलाकर
उन्हें अक्लबंद बनाया गया है।
यदि वे अक्लमंद बन जाते ,
तो कैसे सरमायेदार देश
उन्हें भरमाते , फुसलाकर,
निर्धनता के जाल में फंसा पाते ?

आज के बदलते दौर में
बन्दर अब
एक न होकर
अनेक हैं ,
यह सच है कि
उनके इरादे
कभी भी नेक नहीं रहे हैं।
वे भाइयों को लड़वा सकते हैं।
जरूरत पड़ने पर
सुलह और समझौता भी
करवा सकते हैं ,
अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए
उनको फिर से विभाजन की राह
पर ले जाकर मूर्ख भी बना सकते हैं।

बन्दर कलन्दर बन कर राज कर रहा है।
वह बन्दर पूंजीवादी भी हो सकता है
और कोई तानाशाह समाजवादी भी।
यह बिल्लियों को देखना है कि
वे किस पाले में जाना पसंद करेंगी ?
या फिर अक्लमंद बन कर सहयोग करेंगी ??
आज ये लड़ने पर आमादा हैं।
पता नहीं ये कब तक लड़ती रहेंगी ?
शत्रु की शतरंजी चालों में फंसकर
अपने सुख ,समृद्धि और सम्पन्नता को
बन्दर बांट करने वालों तक पहुंचाती रहेंगी।
आज भाई परस्पर न लड़ें।
वे समझ लें जीवन का सच कि
लड़ाई तो बस जग हंसाई कराती है।
यह दुनिया भर में निर्धनता को बढ़ाती है।
०९/०५/२०२५.
पाप को अंग्रेज़ी में कहते हैं सिन,
मरणोपरांत व्यक्ति बहुधा नरक को जाता है।
कलयुग के व्यक्ति
दिन रात बेख़ौफ़ होकर
पाप करते हैं ,
इससे ही मिलता है उन्हें सुख।
दुःख पहुंचाने में उन्हें मज़ा आता है ,
जब पाप कर्म हाथ धोकर पीछे पड़ जाता है
तब उनका जीवन मज़ाक सरीखा बन जाता है।
ऐसे में शीघ्रातिशीघ्र
उन्हें पाप का द्वार
दूर से आता है नज़र।
जिस में प्रवेश करने से पूर्व
तन मन में अवसाद भर जाता है ,
जीवन का स्वाद फीका पड़ जाता है।
नरक का द्वार
आदमी के पास ही स्थित होता है ,
यह वो तिलिस्म है
जो जीवित को नहीं दिख पड़ता है ,
केवल मृत ही इसे
ढंग से महसूस कर पाता है।

देश में ऑपरेशन सिंदूर जारी है।
जो आतंकियों को बनाने वाला भिखारी है।
देखना आतंकी अब प्राणों की भीख मांगते दिखेंगे।
सिन और डोर को जोड़ने से बनता है शब्द सिंदूर ,
जो सुहागिन महिलाओं की माँग में पहुँच कर
अखंड सौभाग्य का प्रतीक बन जाता है।
कायर आतंकी इसे पोंछने पर उतारू हो जाते हैं ,
उन्हें बस अपनी वासना नजर आती है ,
सुहागिन की साधना उन अंधों को दिख नहीं है पड़ती।
वासना तीखी मिर्च बन कर उन्हें अक्ल का अंधा है कर देती।
पहलगाम के दूरगामी नतीजे अब दिखने लगे हैं।
पड़ोसी देश के आतंकी शिविरों पर
अब बॉम्ब, गोले, मिसाइल, रॉकेट दागे जा रहे हैं।
इस की मार के तले आकर आतंक के मसीहा अब कराहने लगे हैं।
यह युद्ध पाप के खिलाफ़ है।
इसके लिए पुण्य ने ओढ़ा नकाब है।
क्या करे सवाब , पापी ,देवता से बेख़ौफ़ रहता है ,
वह अच्छे और सच्चे को चुटकियों में मसलना चाहता है ,
अतः पुण्यात्मा को पापी के मन में डर पैदा करने के लिए
न केवल नकाब
बल्कि भीतर तक रौद्र रूप धारण करना पड़ता है ,
साक्षात काली सम बनना पड़ता है।
भारत माता के काली बनने ‌की अब बारी है।
आतंक के खात्मे के लिए  ऑपरेशन सिंदूर ज़ारी है !
अब देश दुनिया और समाज में परिवर्तन की तैयारी है !!
०८/०५/२०२५.
May 8 · 155
टाल मटोल
परीक्षा सिर पर हो ,
अधूरी रह जाए तैयारी
यह स्वाभाविक है कि
अक्ल जाती मारी।
ऐसी नौबत क्यों आई ?
इस बाबत भी
कभी सोच मेरे भाई।
आदमी में
एक अवगुण है
टाल मटोल करने का।
यही अवगुण
यथा समय परिश्रम करने से
रोकता है
और परीक्षा सिर पर
आने पर
विचलित कर देता है।
आत्मविश्वास को तोड़
भीतर पछतावा भरता है।
अब क्या हो सकता है ?
अच्छा रहेगा
टाल मटोल की प्रवृत्ति पर
रोक लगाई जाए।
समय रहते
अपनी ऊर्जा और शक्ति
परीक्षा को ध्यान में रखकर
केन्द्रित की जाए।
हड़बड़ी और गड़बड़ी से
बचा जाए।
टाल मटोल करने से
सदैव बचा जाए
ताकि  परीक्षा ढंग से दे
सफल हो सकें !
चिंता को
स्वयं से दूर रख सकें !!
जीवन में आगे बढ़ सकें !!
०८/०५/२०२५.
बचपन में
उम्र पांच साल रही होगी
साल उन्नीस सौ इकहत्तर
महीना दिसंबर
शहर चंडीगढ़
सायरन की आवाज़ सुन कर
सब चौकन्ने हो जाते
रात हुई तो रोशनी,आग सब बंद
लोग भी अपने घर में बंद हो जाते
एक दिन रात्रि के समय
सायरन बजा  
लोग चौकन्ने और सतर्क
कंप्लीट ब्लैक आउट
मैं , मां और बहन
सब घर में कैद
सीढ़ियों के नीचे
लुक छुप कर बैठे
तभी  
बाहर को झांका
तो आसमान में रंग बिरंगी
रोशनियों को देख कर
दीवाली के होने का भ्रम हुआ
यह बाद में विदित हुआ कि
यह रंग बिरंगी रोशनी तो शत्रु के हवाई जहाज को
निशाना बनाने वाले तोप के गोलों से हुई थी।
उन दिनों मैं अबोध था ,
ब्लैक आउट डेज
मेरे इर्द गिर्द बगैर ख़ौफ़ पैदा किए निकल गए।
उन दिनों पाकिस्तानी जासूस पकड़े जाने की ख़बर
मुझे परी कथा की तरह लगती थी।
मैने इस बाबत दो चार बार
अपनी मां से चर्चा की थी।

मुझे यह भी याद है भली भांति
यदि कोई ब्लैक आउट डेज के समय
घर पर गलती से बल्ब जलता छोड़ता
तो उसी समय कोई पत्थर दनदनाता आता
और झट से बल्ब को तोड़ देता ,
वह नहीं टूटता तो खिड़की का कांच ही तोड़ देता।
बल्ब झट से ऑफ करना पड़ता।
गालियां जो सुनने को मिलतीं ,वो अलग।
वे दिन अजब थे, कुछ लोग डर और अज़ाब से भरे थे।
लोग देशप्रेम से ओतप्रोत चौकीदार बन देश सेवा को तत्पर रहते थे।

ये ब्लैकआउट डेज
बड़ा होने के बाद भी स्वप्नों में
आ आ कर मुझे सताते रहे हैं।
मेरे भीतर डर दहशत वहशत जगाते रहे हैं।
आज छप्पन साल बाद
शहर में ब्लैक आउट की रिहर्सल की गई है।
एक बार फिर सायरन बजा।
रोशनी बंद की गई।
किसी किसी के घर की रोशनी बंद नहीं थी।
उन्हें क्या ही कहा जाए ?
आज आधी रात ऑपरेशन सिंदूर किया गया।
देश की सेनाओं ने दहशतगर्दों के नौ ठिकानों पर हमला किया।
कल पड़ोसी देश भी निश्चय ही हवाई हमले करेगा।
कभी न कभी ब्लैकआउट भी होगा।
यदि इस समय किसी ने लापरवाही की तो क्या होगा ?
ब्लैकआउट धन,जान माल की सुरक्षा के लिए है।
इस बाबत सब जागरूक हों तो सही।
आजकल पार्कों में सोलर लाइटें लगी हैं।
सी सी टी वी कैमरे भी गलियों, दुकानों,मकानों ,चौराहों पर
चौकीदार का काम कर रहें हैं।
इन के साथ रोशनी का प्रबंध भी किया गया है ,
जो अंधेरा होते ही स्वयंमेव रोशन हो जाते हैं।
आप ही बताइए ब्लैकआउट के समय इनका क्या करें ?
इन पर जरूरत पड़ने पर रोक कैसे लगे ?
क्या इन पर काला लिफाफा बांध दिया जाए ?
फिलहाल कुछ काले दिनों के लिए !
स्थिति सामान्य होने पर काले लिफ़ाफ़ों को हटा दिया जाए !
जैसे जीवन में कुछ बड़े होने तक
ब्लैक आउट डेज अपने आप स्मृतियों में धुंधलाते चले गए।
और आपातकाल में ये फिर से शुभ चिंतक बन कर लौट आए हैं।
०७/०५/२०२५.
कोई भी
युद्ध को अपने कन्धों पर
ढोना नहीं चाहता।
फिर भी यह
कालचक्र का हिस्सा बनकर,
विध्वंस का किस्सा बनकर,
तबाही के मंज़र दिखलाने
लौट लौट कर है आता।
यह शांति व्यवस्था पर
करारा प्रहार है।
विडंबना है कि इसके बग़ैर
शान्ति कायम नहीं रह सकती।
युद्ध की मार से
सहन शक्ति स्वयंमेव विकसित हो जाती।

युद्ध शांति के लिए
अपरिहार्य है।
क्या तुम्हें यह स्वीकार्य है ?
हथियार भी पड़े पड़े
कभी कभी हो जाते हैं बेकार ।
युद्ध के भय से ही
विध्वंसक हथियार विकसित हुए हैं।
इनके साए में ही सब सुरक्षित रहते हैं।
युद्ध विहीन और हथियार विहीन
दुनिया के स्वप्न देखने वाले
भले नामचीन बन जाएं ,
वे प्रबुद्ध कहलाएं।
वे एक काल्पनिक दुनिया में रहते हैं।
उनकी वज़ह से
लोग असुरक्षित हो जाते हैं।
वे नृशंसता व विनाश का कारण बन जाते हैं।
यदि देश दुनिया को शान्ति चाहिए
तो युद्ध के लिए
सभी को रहना चाहिए तैयार।
शान्ति के नाम पर
कायरता को
गले लगाना सचमुच है बेकार।
यह आत्म संहार
जैसा कृत्य है।
संघर्ष करने से पीछे हटना
दासता स्वीकारने जैसा है।
यह बिना लड़े हारने
जैसा दुष्कृत्य है।
यह बिना तनख्वाह का
भृत्य होने जैसा है।
ऐसे दास का सब उपहास उड़ाते हैं।
गुलाम
कभी सुखी नहीं रह पाते।
यही नहीं
वे ढंग से जीना भी नहीं सीख पाते।
वे सदैव भिखारी तुल्य ही है बने रहते।
वे हमेशा दुःख, तकलीफ़ ,
बेआरामी से जूझने को बाध्य रहते।
इससे अच्छा है कि वे युद्धाभ्यास में लिप्त हो जाते।
यह सच है कि युद्ध के बाद
सदैव शांति काल का होता है आगमन।
युद्ध परिवर्तन का आगाज भी करते हैं।
साथ ही ये देश दुनिया का परिदृश्य बदल देते हैं।
०७/०५/२०२५.
बस अचानक ही
अख़बार तक को भी
शत्रु पक्ष के साथ ही
झेलनी पड़ जाती
सर्जिकल स्ट्राइक।
आधी रात को
शत्रु के शिविरों पर
सेना ने की
मिसाइल अटैक से
सर्जिकल स्ट्राइक।
अख़बार
इस से पूर्व ही गया था छप।
अब जब
इस बाबत पाठक को
अख़बार की मार्फ़त मिलेगा समाचार ,
तब तक देर हो चुकी होगी।
ताज़ा ख़बर
बासी पड़ चुकी होगी।
है न यह अख़बार पर सर्जिकल स्ट्राइक !
जैसे अख़बार की भी एक सीमा होती है !
ठीक वैसे ही सभी की ,होती है एक हद !
सब इसे समझें!
खुद को गफलत में रहने से बख्शें !!
०७/०५/२०२५.
अब उत्तर मिल गया है
मिसाइल अटैक के रूप में
पहलगाम आंतकी हमले से
देश दुनिया से सवाल पूछने का
दुस्साहस करने का
पड़ोसी देश को।
आधी रात को
मिसाइल अटैक कर
देश ने अपना आक्रोश प्रकट किया है ,
उसने स्वयं को संतुलित किया है ,
किसी हद तक घुटन मुक्त होकर
चैन का सांस लिया है।
युद्ध का सांप अब भी गले पड़ा है ,
यह सर्प रह रह कर फुंफकार रहा है।
देश अभी भी जाग रहा है।
वह सोया नहीं ,
अभी तो कुछ हुआ ही नहीं !
जंगी मसाइल का समाधान मिलने में समय लगेगा।
तब तक आरोप प्रत्यारोप की मिसाइलों से
युद्ध को जारी रखा जाएगा।
युद्धाभ्यास करते हुए
आत्म सम्मान को बरकरार रखा जाएगा।
यदाकदा अपनी मौजूदगी का अहसास
छोटे मोटे प्रहार करते हुए
मतवातर करवाया जाएगा।
अब भी क्या कोई देशभक्त को
कायर समझने की गुस्ताखी करना चाहेगा ?
०७/०५/२०२५.
लुच्चे को अच्छी लगती है
अय्याशी।
यह वह राह है
जहां आदमी क्या औरत
सीख ही जाता
करना बदमाशी।
आज कल गलत रास्ते पर
लोग
देखा-देखी
चल पड़ते हैं ,
बिन आई मौत को
जाने अनजाने
चुन लेते हैं ,
अचानक
गर्त में गिर पड़ते हैं ,
किरदार को
भूल कर
अपने भीतर का
अमन चैन गंवा दिया करते हैं।
वे दिन रात नंगे होने से ,
भेद खुलने से
हरदम डरते हैं।
नहीं पता उन्हें कि
कुछ लोग मुखौटा पहने हुए
उन्हें नचाते हैं ,
उन्हें भरमाते हैं।
वे सहानुभूति की आड़ में
चुपचाप हर पल शोषण कर जाते हैं।
अच्छा है
जीवन में
कभी कभी
बेहयाई की चादर ओढ़ लो
ताकि जीवन भर
कठपुतली न बने रहो
और
देर तक शोषित व वंचित न बने रहो।
कम से कम अपना जीवन
अपनी शर्तों पर जी सको।
यूं ही पग पग पर न डरो।
कभी तो बहादुरी से जीओ।
दोस्त ,
यदि संभव हो तो
अय्याशी से बचो ,
अपनी संभावना को न डसो
क्यों कि
आदमी को
एक अवगुण भी
अर्श से
गिरा देता है ,
उसकी हस्ती को
फर्श पर पहुंचा देता है।
यह नाम ,पहचान ,वजूद को
मिट्टी में मिला देता है।


०६/०५/२०२५.
देश
अब युद्ध के लिए
तैयार है ,
अब शत्रु पर
प्रहार के लिए
इंतज़ार है।

इस के लिए
हमें क्या रसद का
संग्रह करना चाहिए ?
इस बाबत
अपने बुजुर्ग से
पूछता हूँ...
उत्तर मिलता है
बिल्कुल नहीं !
देश पहले भी
आधी रोटी खाकर
युद्ध को लड़ चुका है।
इससे कुछ अधिक ही
देश भक्ति
और जिजीविषा का जज़्बा
देशवासियों में भर चुका है।
अब रणभेरी का इंतज़ार है।
युद्ध में जीतने का जुनून
सब पर सवार है।
देखना है अब आर पार की लड़ाई
किस करवट बैठेगी ?
विजयश्री किस प्रकार से
देशवासियों के अंतर्मन में झांकेगी ?
शहादत कितने युद्धवीरों की बलि मांगेगी ?
अब युद्ध
विशुद्ध युद्ध होगा।
इस युद्ध से जनमानस
प्रबुद्ध होगा।
हर जीत के बाद
देशवासियों का अंतर्मन
नैतिकता की दृष्टि से
शुद्ध होगा !
यह बिछड़े देशवासियों से
पुनर्मिलन का
एक ऐतिहासिक अवसर होगा।
सभी परिवर्तन के स्वागतार्थ आगे बढ़ेंगे।
वे अवश्य ही
विजयोत्सव की खातिर चिंतन मनन करेंगे ,
जीवन के आदर्शों की कसौटी पर
खरा उतरने की कोशिश करेंगे।
०६/०५/२०२५.
पहले आदमी की सोच
नैतिकता से जुड़ी थी।
उसे हेराफेरी चोरी चकारी से
घिन आती थी।
आजकल
उसे यह सब आम लगता है।
वह अनैतिक भी हो जाए,
तो उसे बुरा नहीं लगता है।
उसकी सोच बन गई है कि
आजकल सब अच्छा बुरा चलता है।
कम से कम आदमी को आराम तो मिलता है।
मरने के बाद देखा जाएगा।
आज को तो ढंग से जी लो।
कल नाम कलह का,
वर्तमान को सुविधाजनक बना लो।
यही वजह है कि घूस का कीड़ा
आदमी के भीतर इस हद तक गया है घुस,
जो घूस लेता नहीं, वह आदमी लगने लगता मनहूस।
हेराफेरी,चोरी सीनाजोरी,लड़ना झगड़ना,
मकर फ़रेब, लूटमार,हत्या, बलात्कार तक के
दुष्परिणामों को वह नज़रअंदाज़ करता है,
उसे संवेदना के धरातल पर कुछ नहीं होता महसूस।
पशु भी संवेदना से बंधा है,
पर आज का आदमी निरा गधा बन चुका है।
आजकल वह चौबीसों घंटे अपना स्वार्थ साधने में लगा है।
०६/०५/२०२५.
बेहयाई
बेशक मन को ठेस
पहुंचाए
परन्तु
यह समाज में
व्याप्त
गन्दगी और बदबू
जितनी खतरनाक नहीं।
पहले इस की सफ़ाई पर
ध्यान देंगे,
फिर बेहयाई पर
किसी हद तक
रोक लगाएंगे।
तन ,मन,धन की शुचिता
पर अपनी ऊर्जा और ध्यान केंद्रित
करने का प्रयास करेंगे।
अपने को संयमित कर
जीवन शैली को संतुलित कर
मानवीय गरिमा का वरण करेंगे ,
जीवन यात्रा को सार्थक करेंगे
ताकि सब स्व से जुड़ सकें !
आत्मानुसंधान करते हुए आगे बढ़ सकें !!
०६/०५/२०२५.
किसी की शक्ति
यदि छीन जाए
तो वह क्या करे ?
वह बस मतवातर डरे !
ऐसा ही कुछ
पड़ोसी देश के साथ हुआ है।
वह बाहर भीतर तक हिल गया है।

खोखला करता है
बहुत ज़्यादा ढकोसला।
वह भी क्या करे ?
भीतर बचा नहीं हौंसला।
अशक्त किस पर हो आसक्त ?
वह आतंक को दे रहा है बढ़ावा,
इस आस उम्मीद के साथ
ज़ोर आजमाइश करने से
बढ़ जाए उसको मिलने वाला चढ़ावा
वह एक लुटेरा देश है।
धर्म के नाम पर वह अलग हुआ,
कुछ खास तरक्की नहीं कर सका।
यही उसके अंदर का क्लेश है।
अशक्त देश किस पर हो आसक्त ?
क्या धर्म पर या फिर ठीक उल्टा आतंकी मंसूबों पर ?
वह कोई फ़ैसला नहीं कर पा रहा।
इसी वज़ह से खोखला देश
हिम्मत और हौंसला छोड़
आतंक और विघटनकारी ताकतों को
दे रहा मतवातर बढ़ावा।
वह भीतर ही भीतर विभक्त होने की राह पर है।
आज वह हार की कगार पर है।
०५/०५/२०२५.
Always dream about
a pollution free social setup.
Keep courage to say shut up
to pollutant minds in life
for cleanliness
and the safe journey of human beings.
05/05/2025.
अपनी मातृ भाषा में
क्रिकेट कमेन्ट्री सुनकर मज़ा आ गया !
इसका लुत्फ़ हंसी-मज़ाक से भी ज़्यादा आया !!
अब जब भी मन करेगा मैं इस खेल की
कमेन्ट्री हरियाणवी में सुनूंगा।
अपने भीतर खुशियां लबालब भरूंगा।
यदि आप हिंदी और हरियाणवी को समझते हैं
तो खेल की कमेन्ट्री हिंदी में न सुनकर
हरियाणवी में सुन लीजिए,
अपने भीतर भरपूर प्रसन्नता भर लीजिए ।
तनिक  जीवन में उदासी को भूल कर
थोड़ा बहुत हंसी मज़ाक का तड़का जीवन में लगा कर
अपनी स्वाभाविक खिलखिलाहट से दोस्ती कर लीजिए।
कम से कम थोड़े समय के लिए तनावमुक्त हो लीजिए।
इस जीवन में हंसी मज़ाक,
ठहाकों  और कहकहों का आनन्द अवश्य लीजिए।
यही नहीं अपने जीवन की कमेन्ट्री भी  
कभी कभी खुद किया कीजिए।
ज़िन्दगी को जिन्दादिली से जीने का तोहफा दीजिए।
०४/०५/२०२५.
May 4 · 58
बदस्तूर
तोड़ने शत्रुओं का गुरूर
अंदर ही अंदर
देश दुनिया की फिजाओं में
बदस्तूर
ज़ारी है युद्ध का फितूर।
देश कब हमला करेगा ?
करेगा भी कि नहीं ?
इस बाबत कोई भी
निश्चय पूर्वक  
कह नहीं सकता।
सब कुछ भविष्य के
गर्भ में है।
हां ,यह जरूर है कि
देश निश्चिंत हैं ...
शत्रु नाश होकर रहेगा।
उन्होंने सर्वप्रथम
कायराना हमला किया था।
देश भी निश्चय ही
पलटवार
अपना समय लेकर
अपने ढंग से करेगा,
शत्रु पक्ष
आगे से कुछ
करने से पहले
गहन सोच-विचार करेगा।
वह निश्चय ही कभी न कभी
बिन आई मौत मरेगा।
भीतर ही भीतर
देर तक डरता रहेगा।
खुद-ब-खुद
शत्रु को
उसका अपना ही आंतरिक डर
सर्पदंश सरीखा जख्म दे देगा।
फिर वह कैसे जीवित  रहेगा ?
असंतोष और असंयम ही
अब  उसकी पराजय की वज़ह बनेगा।
फिर कैसे वह लड़ने की हिमाकत करेगा ?
०४/०५/२०२५.
May 4 · 79
Belongingness
The feeling of belongingness keeps us
fit and fertile in the race of survival.
Otherwise we all behave
like passionless animals
who moves aimlessly in life.
A sense of security is always required in life.
Belongingness  usually provides us such protection
and keeps us secured.
04/05/2025.
May 4 · 49
आरोप
आदमी पर
आरोप लगने
कोई नई बात नहीं।
बेशक वह कितना भी सही
क्यों न रहा हो ?
आरोप
आर से लगें
या पार से लगें ,
ये बस किसी आधार पर लगें।
झूठे और मिथ्या आरोप
किसी पर मढ़े न जाएं।
आरोप प्रत्यारोप की रस्सी पर
आदमी संतुलन बना कर चले
ताकि वह अचानक
कभी औंधे मुंह नहीं गिरे।
जीवन पर्यन्त
वह कालिख रहित  बना रहे।
वह पतन के गड्ढे में गिरने से
सुरक्षित बना रहे
और वह जीवन पथ पर डटा रहे।
वह निरंतर आगे बढ़ने का प्रयास करता रहे।
०४/०५/२०२५.
आदमी को
मयस्सर होती रहे
ज़िन्दगी में
कामयाबी दर कामयाबी
बनी रहती भीतर
ठसक।
जैसे ही कामयाबी का
सिलसिला
कहीं पीछे छूटा ,
लगने लगता कि भाग्य भी
अचानक ही रूठा।
आदमी की
न चाहकर भी
टूट जाती ठसक।
भीतर ही भीतर
बढ़ती जाती कसक।
बेचैनी के बढ़ने से
झुंझलाहट बढ़ जाती !
ज़िन्दगी में उलझनें भी बढ़ने लगती !
ज़िन्दगी जी का जंजाल बन कर तड़पाने लगती !
ज़िन्दगी में भागदौड़ यकायक बढ़ जाती ,
आदमी एक अंतर्जाल में फंसता चला है जाता।
वह दिन हो या रात,
कभी भी सुकून का अहसास नहीं कर पाता।
०४/०५/२०२५.
वैसे तो लोग और देश
आपस में लड़ते हैं,
कभी हारते हैं तो कभी जीतते भी हैं।
मेरा देश आज़ादी के बाद
चार युद्ध लड़ चुका है ,
वह अपने पड़ोसी से शांति चाहता रहा है।
पर उसे अशांति ही मिलती रही है।

अब पांचवीं लड़ाई की तैयारी है ।
यह कभी भी शुरू हो सकती है।
कोई भी देश जीते या फिर हारे।
अवाम हर हाल में बदहाल होगी।
देश की प्रगति दशकों पीछे जाएगी।
फिर भी किसी को सुध बुध नहीं आएगी।
कुछ वर्ष ठहर कर क्या फिर से युद्ध लड़ा जाएगा ?
नेतृत्व का अहम् विकास को धराशाई करता नजर आएगा।
जीता हुआ देश हारे  हुए देश को चिढ़ाएगा।
हमारा अपना देश दुर्दिन और दुर्दशा झेलता देखा जाएगा।
व्यवस्था परिवर्तन के बावजूद किसी के हाथ पल्ले कुछ नहीं आएगा।
०३/०५/२०२५.
कभी चिकन
खाने वाला नेक भी होगा
ऐसा कभी सोचा नहीं।
अर्से से चर्चा में है
उत्तर पूर्वी हिस्से को
मुख्य भूमि से अलगाने के निमित्त
चूज़े की गर्दन पर
आक्रमण करवाया जाए।
देश की अस्मिता को दबाया जाए।
यही नहीं
विस्तृत बांग्ला देश का सपना भी
अब कुछ विघटनकारी ताकतों द्वारा देखा जा रहा है।
उत्तर पूर्वी भू भाग को आतंक की चपेट में
लाने के प्रयास भी हो रहे हैं।
म्यांमार के विद्रोहियों को भी उकसाया जा रहा है।
क्यों न भारत भी
बांग्ला देश को
उसकी ही जुबान में
उत्तर दे।
उन्हें संदेश मिठाई खाने को विवश करे ।
ताकि  खुद भी
वह चिकन नैक बनने की संभावना से बचे।
वह अकारण शांतिप्रिय देश के
आत्म सम्मान से खिलवाड़ न करे।
किसी देश को खंडित करने के मंसूबों से गुरेज़ करे ।
03/05/2025.
आजकल
लोग अपने पास
नगदी नहीं रखते।
वे अदायगी आन लाइन करते हैं।
क्या इससे जेबकतरों का धंधा
मंदा नहीं पड़ गया होगा ?
जेब खाली
तो कहां से बजेगी ताली ?
इस बाबत
एक पिता ने
अपनी पुत्री से प्रश्न किया।
तत्काल उत्तर मिला ,
" अरे पापा! अब चोर भी
हाइटेक हो गए हैं।
वे चोरी के नए नए ढंग खोजते हैं।
अब साइबर ठगी का जमाना है।
अतः सब को संभल कर रहना है।"
यह सब सुनकर पिता दंग रह गया।
वह सोचता रह गया कि
जमाना अब
देखते ही देखते
बहुत आगे तक बह गया है।
दक़ियानूसी का मारा
आदमी भी अब
यकायक
अचम्भित,
ठगा हुआ सा रह गया है।
आज का आदमी
समय की धारा में
तीव्र गति से
आगे बढ़ने को उद्यत है।
समय की दौड़ में
पीछे रह गया
मानुष अत्यंत व्यग्र है !
वह अत्याधिक उग्र है !!
०२/०५/२०२५.
एक अराजक समय में
जीवन बिताते हुए
पड़ोस अच्छा होने के बावजूद
हरदम मनमुटाव होने का खटका बना रहता है ,
जबकि मेरे पड़ोसी
सहयोग और सद्भाव बनाए रखें हैं।
मैं अपनी मानसिकता की बाबत क्या कहूं ?
यह भी सच है कि यदि कोई
विनम्रता पूर्वक आग्रह करे,
तो मैं सहर्ष अपार कष्ट सहने को तैयार हूं
और कोई बेवजह धौंस पट्टी जमाना चाहे
तो उसे मुंह तोड़ जवाब दूं ,
अन्याय हरगिज़ न सहन करूं।

एक अराजक समय में
जीवन गुजारने के लिए
मेरे देशवासी मजबूर हैं ,
बेशक उनके इरादे बेहद मजबूत हैं।
आंतक और आंतकवाद से
जूझते हुए उन्होंने संताप झेला है।
इस वजह से उनका जीवन बना झमेला है।
मेरे दो पड़ोसी देश
आज बने हुए
चोर चोर मौसेरे भाई हैं।
May 2 · 75
लालच
लाभ की उत्कंठा
अपनी सीमा को लांघ कर
लोभ को उत्पन्न कर
व्यक्ति के व्यक्तित्व पर
चुपचाप करती रहती है
आघात प्रतिघात।
जैसे जैसे व्यक्ति लाभान्वित होता है ,
वैसे वैसे लालच भी बढ़ता है
और यह विवेक को भी हर लेता है।
समझिए कि व्यक्ति अक्ल से अंधा हो जाता है।
उसके भीतर अज्ञान का अंधेरा पसरता जाता है।
वह एक दिन सभ्यता का लुटेरा बन जाता है।
वह हर रंग ढंग से लाभ कमाना चाहता है।
बेशक उसे धनार्जन के लिए कुछ भी करना पड़े।
नख से शिखर तक कुत्सित , दुराचारी , अंहकारी  बनना पड़े ।
लाभ और लोभ की खातिर किसी भी हद तक शातिर बनना पड़े।
यहां तक कि अपने आप से भी लड़ना और झगड़ना पड़े।
०२/०५/२०२५.
युद्ध
अभी विधिवत
शुरू हुआ नहीं कि
युद्ध विराम की ,
की जा रही है बात
कौन है वह देश ?
जो नहीं चाहता कि
युद्ध हो।

अभी
जन आक्रोश
उफान पर है ,
यदि किसी दबाव वश
हमला नहीं हुआ ,
तब अवश्य
जन विश्वास ख़तरे में है।
इसे कैसे खंडित होने से
बचाया जाए ?
इस बाबत भी
सोचा जाए।
मन के भीतर
उमड़ते-घुमड़ते
तूफ़ान को न रोका जाए ।
आओ मंज़िल की ओर बढ़ा जाए।
युद्ध भूमि में डटा जाए
बेशक मौत दे दे मात !
यह भी होगी
वक्त के हाथों से
सब के लिए
अद्भुत सौगात!

अब युद्ध अपरिहार्य है !
युद्धवीर !
क्या तुम्हें यह स्वीकार्य है ?
कुछ कर गुजरने से पहले
युद्ध विराम
हरगिज़ नहीं चाहिए।
इस बाबत
नेतृत्व को भी
समझना चाहिए।
शांति स्थापना के लिए
युद्ध की नियति कोई नई नहीं।
इस सत्य को सब समझें तो सही।
०२/०५/२०२५.
असली आज़ादी को
कौन
मौन रहकर
भोग पाता है ?
एक योगी या फिर कोई भोगी ?? ‌
या फिर
जिसने जीवन में
शेरनी का दूध पिया है ?
अभी अभी
पढ़ा है कि
दुनिया में
कोई विरला ही होता है ,
जिसे असल में
यानी कि सचमुच
शेरनी का दूध पीने का
सौभाग्य मिला हो।
एक या दो चम्मच से ज्यादा
शेरनी का दूध
पीने से
यह आदमी को यमपुरी की राह ले जा सकता है
क्यों कि
इस दूध की तासीर गर्म है ,
इसे पचाना है जरा मुश्किल।
वैसे भी दूध पर पहला हक
पशु के शावक का है ,
जिससे उन्हें वंचित रखा जाता है।

बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर जी ने
शिक्षा को
शेरनी का दूध कहा है।
यदि इस दूध को
शोषित मानस पीये
और स्वयं को
इस योग्य बना ले
कि वह अपना संतुलित विकास कर ले
तो वह अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत होकर
सिंहनाद करने में हो सकता है सक्षम।
वह समर्थ बनकर
देश दुनिया और समाज का
कह सकता है भला।
ऐसा शिक्षा रूपी
शेरनी का दूध पीकर
सब निर्भीक बनें ,
ताकि सभी आत्म सम्मान से जीवनयापन कर सकें,
जीवन रण को
संघर्ष के बलबूते
समस्त वंचित जन जीत सकें।
आओ आज हम सब इस बाबत मंगल कामना करें।
कोई भी शिक्षा से महरूम न रहे।
सब
स्वपोषित साधनों से
सजगता और जागरूकता को फैलाकर ,
शेर सरीखे बनकर
देश , दुनिया और समाज को
सुख , समृद्धि और सम्पन्नता की राह पर ले जाएं ,
जीवन पथ पर किसी को भी हारना न पड़े।
ऐसे लक्ष्य को
हासिल करने के निमित्त
सब एकजुट होकर आगे बढ़ें।
०२/०५/२०२५.
अब कभी किसी से
मिलने का मन करता है ,
तो उससे मुलाकात करने का
सबसे बढ़िया ढंग
दूरभाष
या फिर
मोबाइल फोन से
वार्तालाप करना है।

मुलाकात आजकल
संक्षिप्त ही होती है ,
मतलब की बात की ,
अपना पक्ष रखा
और अपनी राह ली।

पहले आदमी में
आत्मीयता भरी रहती थी ,
अब जीवन की दौड़ धूप ने
आदमी को अति व्यस्त
कर दिया है ,
उसे किसी हद तक
स्वार्थी बना दिया है ,
मतलबपरस्ती ने
आदमी के भीतर को
नीरसता से भर दिया है ,
और जीवन में
मुलाकात के आकर्षण को
लिया है छीन।
मिलने और मिलाने के
जादू को कर दिया है क्षीण।
आदमी अब मुलायम करने से
बहुधा बचना चाहता है।
ले देकर पास उसके बचा है यह विकल्प
मन किया तो मोबाइल फोन पर
बतिया लिया जाए।
दर्शन की अति उत्कंठा होने पर
वीडियो कान्फ्रेंसिंग से
संवाद रचा लिया जाए।
हींग लगे न फिटकरी
रंग भी चोखा होय , की तर्ज़ पर
घर बैठे बैठे बिना कोई कष्ट उठाए
बगैर अतिथि बने
मुलाकात कर ली जाए
और हाल चाल पूछ कर
अपने जीवन में
दौड़ धूप कर
अपनी उपस्थिति दर्ज की जाए।
मुलाकात आजकल
सिमट कर रह गई है ,
जीवन की अत्याधिक
दौड़ धूप
मनुष्य की
समस्त आत्मीयता को
खा गई है।
इस बाबत अब
क्या बात करूं ?
मन के आकाश में
उदासीनता की बदली
छाई हुई है।
मुलाकात की चाहत
छुई-मुई सी हुई ,हुई
मुरझाई और उदास है।
जाने कहां गया
जीवन में से मधुमास है ?
फलत: जीवन धारा
लगने लगी कुछ उदास है !
अब लुप्त हुआ हास परिहास है !!
०२/०५/२०२५.
May 2 · 55
यात्रा
जीवन
एक यात्रा है।
इसे ईमानदार रह कर
जारी रखा जाना चाहिए।
इस दौरान
लोभ लालच और बेईमानी से
हरपल बचा जाए
तो ही अच्छा।
जीवन यात्रा के दौरान
आदमी बनाए रखें
आत्म सम्मान।
वह करें जीवन की बाबत
चिंतन मनन
और जीवन के आदर्शों का अनुकरण करे
ताकि जीवन यात्रा का समापन
सुखद अहसास के साथ हो !
जीवन की परिणति
सार्थक और सकारात्मक सोच के साथ हो !!
आदमी
फिर से
एक नई यात्रा की तैयारी कर सके।
वह जन्म दर जन्म
आध्यात्मिक उन्नति करता रहे।
०२/०५/२५.
May 1 · 63
खामोशी
युद्ध से
पहले
देर तक  
खामोशी बनी रहे।
यहाँ तक कि
हवा भी न बहे।
बस हर पल
यह लगे कि
कुछ निर्णायक होने वाला है।
अन्याय का साम्राज्य
शीघ्र ध्वस्त होने वाला है।
उसे मुक्ति से पहले
चिंतन मनन करने दो।
शायद युद्ध रुक जाए।
देश दुनिया और समाज संभल पाएं।
वरना महाविनाश सुनिश्चित है।
अनिश्चितता के बादल छाएंगे
और ये दिशा भ्रम की
प्रतीति कराए
बिना नहीं रहेंगे।
ठीक
कुछ इसी क्षण
खामोशी टूटेगी
और युद्ध का आगाज़ होगा ,
भीतर सहम भर चुका होगा ,
आदमी बेरहम बन रहा होगा धीरे धीरे।
वह युद्ध का शंखनाद
सुनने को व्यग्र हो रहा होगा।
अस्त व्यस्तता और अराजकता के माहौल में
सन्नाटा
सब के भीतर  पसर कर
वह भी युद्ध से पहले
जी भर कर सो लेना चाहता है।
फिर पता नहीं !
कब सुकून  मिले ?
मिलेगा भी कि नहीं ?
भयंकर पीड़ा
और विनाश
युद्ध से पूर्व ही
सर्वनाश होने की
प्रतीति कराने को हैं व्यग्र।
हर कोई उग्र दिख पड़ता है ।
पता नहीं यह विनाशकारी युद्ध कब रुकेगा ?
युद्ध से पूर्व की ख़ामोशी
सभी से कहना चाहती है
परन्तु सब युद्ध के उन्माद में डूबे हैं।
कौन उसकी सुने ?
वैसे भी ख़ामोशी से संवाद रचा पाना
कतई आसान नहीं।
युद्ध की आहट
सन्न करने वाला सन्नाटा
या कोई बुद्ध ही समझ पाता है।
किसी हद तक संयम रख पाता है।
०१/०५/२०२५.
Apr 30 · 81
Cancellation
Sometimes
Cancellation is far better
in spite to pursue a cause because
nobody likes inconvenience.
30/04/2025.
मुझे सच में
पता नहीं था कि
जिगरी यार
कर जाएगा
यार मार।
वह बरगला ले जाएगा
मेरा प्यार।
सच !
अब मुझे
यारी दोस्ती पर
एतबार नहीं रहा।
आजतक
अर्से तक
अंदर ही अंदर
एक अनाम दर्द सहता रहा ,
जब रहा नहीं गया
तो थक हार कर
अपना दुखड़ा कहा।
यार मार
किसी भी मामले में
जज़्बात की हत्या से कम नहीं,
यार मार करने में कोई किसी से कम नहीं।
आज यह बन चुकी रवायत है,
मुझे इस बाबत ही आप सभी से करनी शिकायत है।
दोस्त!
यार मार से बच ,
कभी तो अपना किरदार गढ़
और जीवन धारा में
सार्थक दिशा में बढ़ ,
भूल कर भी
किसी से अपेक्षा न रख ,
न ही अपने भीतर के इन्सान से लड़।
सच से रूबरू होने की खातिर
दिल से प्रयास कर।
ताकि फिर से यार मार करने से बच सके!
जीवन में प्यार के मायने को समझ सके!!
३०/०४/२०२५.
धीर गंभीर ही
बन सकते हैं युद्धवीर।
युद्ध की उत्तेजना को
जो अपने भीतर जज़्ब कर लेते हैं ,
मन ही मन में
शत्रु से लड़ने की
योजना को गढ़ लेते हैं ,
ऐसे योद्धा युद्धवीर कहलाते हैं।
ऐसे युद्धवीरों को सलाम।
ऐसे रण बांकुरों को
कोटि कोटि प्रणाम।
युद्धवीर धैर्य धारण कर
जीवन रण को लड़ते हैं।
वे अनेक उतार चढ़ावों के बावजूद
अपना डंका बजाते हैं ,
शत्रु की लंका को
अंगद बन कर जलाते हैं।
तुम भी जीवन रण में
युद्धवीर बनो।
भीतर और बाहर के शत्रुओं से
दो दो हाथ करो।
धैर्य और शौर्य के बल पर
शत्रु के मनसूबों को
धराशाई करो ,
चुपके चुपके
शत्रु खेमे में सेंध लगाकर
डर भर दो।
उन्हें गोरिल्ला युद्धनीति से
हक्का बक्का कर दो।
उन्हें अपनी रणनीति से
धूल चटा दो।
30/04/2025.
हम जंग के बाद भी
देश दुनिया और समाज में
टिके रहें ।
इसलिए अपरिहार्य है
हम युद्धाभ्यास के लिए
स्वयं को तैयार करें।

यह ठीक है कि
युद्ध देश विशेष की
सेनाएं लड़ती हैं।
उन्हें युद्धाभ्यास करने की
जरूरत होती है ,
परन्तु युद्ध में
सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए
आम जन बल का उत्साहवर्धन
बेहद ज़रूरी है।

युद्ध सीधे तौर पर
आपातकाल को न्योता देना है।
यह मंहगाई को
आमंत्रण देना भी है।
आज यह अस्तित्व रक्षा के लिए
अपरिहार्य लग रहा है।
आओ हम शपथ लें कि
हम संयमित रहकर
जीवन यापन करेंगे ,
अपने खर्चे कम करेंगे।
इससे जो धनराशि बचेगी ,
उसे राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के हेतु
दान करेंगे।
यही नहीं ,
यदि जरूरत पड़ी तो
देश की अस्मिता की खातिर
स्वयं को कुर्बान करेंगे।
हम संकटकाल में
कार सेवा करते हुए
अपने जीवन को सार्थक करेंगे।
हम सर्वस्व के हितार्थ
युद्ध स्तर पर
सकारात्मक और सार्थक पहल करेंगे।
हम युद्धोपरांत
स्व राष्ट्र और पर राष्ट्र के कल्याणार्थ
नव निर्माण का कार्य  करेंगे
और युद्ध की भरपाई भी
तन ,धन ,मन से करेंगे
ताकि जीवन धारा पूर्ववत बह सके।
शांति की बयार देश दुनिया में बहे।
कोई भी अन्याय सहने को अभिशप्त न रहे।
३०/०४/२०२५.
कर्म चक्र
समय से पहले
कभी भी
आगे बढ़ने की
प्रेरणा नहीं देता।
आदमी
कितना ही
ज़ोर लगा लें ,
मन को समझा लें।
मन है कि यह
साधे नहीं सधता।
यह अड़ियल
बना रहता है।
अकारण
तना रहता है ,
खूब नाच नचाता है।

समय आने पर
यह भटकना
छोड़ देता है ,
अटकना और मचलना
रोक कर
यह स्वयं को
अभिव्यक्त करने की
पुरजोर कोशिश करता है ,
अपने भीतर कशिश भरता है।
ठीक इसी क्षण
आदमी के
प्रारब्ध का शुभारंभ होता है।
हर रुका हुआ काम
सम्पन्न होने लगता है ,
जिससे तन मन में
प्रसन्नता भरती जाती है।
यह आगे बढ़ने के
अवसरों को ढंग से
बटोर पाती है।
यह सब कुछ न केवल
आदमी को सतत्
कामयाबी की अनुभूति कराता है ,
बल्कि सुख समृद्धि और सम्पन्नता के
जीवन में आगमन से
व्यक्ति जीवन दिशा  को
भी बदल जाता है।
यही प्रारब्ध का शुभारंभ है ,
जहां सदैव रहते आए
उत्साह ,जोश और उमंग  की तरंगें हैं।
इन्हीं के बीच सुन पड़ती
जीवन की अंतर्ध्वनियां हैं।
३०/०४/२०२५.
बूढ़ा हो चुका हूँ ।
अभी भी
मन के भीतर
गंगा जमुनी तहज़ीब का
जुनून बरकरार है ।
भीतर की मानसिकता
घुटने टेकने
क्षमा मांगने वाली रही है ,
फलत:अब तक
मार खाता रहा हूँ ।

अभी अभी
पहलगाम का
दुखांत सामने आया है ,
जिसने मुझे
मेरे अंत का मंज़र
दिखाया है।
अगर अब भी इस
गंगा जमुनी तहज़ीब के
जाल में फंसा रहा
तो यकीनन बहेलिए के
जाल में ,
उस द्वारा फेंके गए
दानों के लोभ में
ख़ुद को फंसा हुआ पाऊंगा,
कभी छूट भी नहीं पाऊंगा।
बस उस के जाल में
फड़फड़ाता रह जाऊंगा।
शाम तक
रात के भोजन का
निवाला बनने के निमित्त
हांडी पर पकाया जाऊंगा।
यह ख्याल
अभी अभी
जेहन में आया है।
मुझे शत्रु बोध की
अनुभूति होनी चाहिए।
मुझे मिथ्या सहानुभूति
कतई नहीं चाहिए।
कब तक अबोध बना रहूंगा ?
बूढ़ा होने के बावजूद
बच्चों सा तिलिस्मी माया जाल में
फंसा हुआ तिलमिलाता रहूंगा।
कब मेरे भीतर शत्रु बोध पैदा होगा ?
.... और ‌मैं अस्तित्व रक्षा में सफल रहूंगा।
आप भी अपने भीतर शत्रु बोध  को जागृत कीजिए।
अपने प्रयासों से जिजीविषा को तीव्रता से अनुभूत कीजिए।
सुख समृद्धि और सम्पन्नता से नाता जोड़ लीजिए।
२९/०४/२०२५.
शब्द ब्रह्म का मूल है
पर यही शब्द
बिना विचारे प्रयुक्त हो
तो कभी कभी
लगने लगता है
अपशब्द !
जो कर देता है
अचानक हतप्रभ !
आदमी एकदम से
भौंचक्का रह जाता है।
उसे पहले पहल
कुछ भी समझ
नहीं आता है ,
जब भी समझ आता है,
वह खिन्न नजर आता है।
लगता है कि उसे अचानक
किसी ने चुभो दिए हों शूल।
शब्द अपने मंतव्य को
ठीक से व्यक्त कर दे ,
बस इसे ध्यान में रखकर
शब्द को प्रयुक्त कीजिए।
बिना विचारे इस शब्द ब्रह्म का
इस्तेमाल भ्रम फैलाने के लिए
हरगिज़ हरगिज़ न कीजिए।
इसे सोच समझकर प्रयुक्त करें ,
ताकि यह भूले से भी कभी
अपशब्द बनता हुआ न लगे !
आदमी को चाहिए कि
ये सदैव मरहम बनकर काम करें!
बल्कि ये अशांत मानस को
शीतलता का अहसास करा कर शांत करें।
२८/०४/२०२५.
ज़िन्दगी के बहाव में
आदमी कुछ भी न कर पाए
वह बस बहता चला जाए
आदमी ऐसे में क्या करे ?
क्या वह हाथ पांव मारना छोड़ दे ?
अपनी डोर परमात्मा की रज़ा पर छोड़ दे !
क्यों न वह संघर्ष करे !
विपरीत हालातों के
अनुकूल होने तक
वह धैर्य बनाए रखे।
दुर्दिन सदैव रहते नहीं।
बेशक ज़िन्दगी में
कुछ भी न हो रहा हो सही।
आदमी अपने आप को सकारात्मक
बनाए रखे  तो सही।
जीवन यात्रा में हरेक जीव
अपने गंतव्य तक पहुंचता है।
यह स्वयं का दृढ़ विश्वास ही है
जो जीवन के वृक्ष को सतत सींचता है।
कुछ भी सही न होने के बावजूद
आदमी जीवन धारा के साथ बहता चले,
वह निराशा और हताशा से बचता हुआ
खुद से संवाद रचाता हुआ
निरन्तर आगे बढ़ता रहे ,
ताकि गतिशीलता बनी रहे ,
जीवन में जड़ता बाधा न बन सके।
जब कुछ भी सही न हो !
तब भी आदमी हिम्मत और हौंसला बनाए रखे ,
वह स्वयं को निरन्तर चलायमान रखे।
चलते चलते दुर्गम रास्ते भी
आसान लगने लग जाते हैं।
गतिशील कदम मंजिल पर पहुँच ही जाते हैं।
२८/०४/२०२५.
स्कूल, कॉलेज , यूनिवर्सिटी में
दाखिला लेने के लिए
कभी कभी अभ्यर्थी को देना पड़ता है
साक्षात्कार।
यही हाल  होता है
नौकरी ढूंढते ,
बिजनेस डील करते समय ,
आजकल
साक्षात्कार
बेहद ज़रूरी हो गया है।
आज अभी अभी
हम गुड़िया के अम्मी अब्बा
उसकी वैवाहिक जीवन का
आगाज़ करवाने के गर्ज से
देकर आए हैं साक्षात्कार
लड़के के अम्मी अब्बा के सम्मुख।
देखें क्या नतीजा निकलता है !
अभी अभी हमारा हुआ है इंटरव्यू !
फिर  लड़के वाले आयेंगे !
तत्पश्चात लड़का और लड़की
परस्पर साक्षात्कार की प्रक्रिया से गुज़र कर
एक निष्कर्ष तक पहुंचेंगे।
आज साक्षात्कार जीवन में
हरेक को क़दम क़दम पर देना पड़ता है ,
तभी जीवन चक्र आगे बढ़ पाता है।
देखिए जिन्दगी में समय क्या क्या गुल खिलाता है !
वह किस किस की झोली में क्या कुछ भरेगा  ,
यह कोई भी नहीं जानता ,
साक्षात्कार कर्ता तक नहीं !
इंटरव्यू में कभी कभी कुछ भी सही नहीं होता।
आदमी सोचता है कि काश ! थोड़ी तैयारी और कर लेता।
तब शायद चित्त भी मेरा और पट भी मेरा होता।
२७/०४/२०२५.
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