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Mar 17 · 42
जंगल राज
जंगल राज का ताज
जिसके पुरखों के सिर पर
कभी सजा था ,
उस वंश के
नौनिहाल के
मुखारविंद से
सुनने को मिले कि
राज में कानून व्यवस्था
चौपट है ।
यह सब कई बार अजीब सा
लगता है।
शुक्र है कि यह नहीं कहा गया ...
यह जंगलराज
राज के नसीब में
लिखा गया लगता है।
हर दौर में
व्यवस्था सुधार की और
बढ़ती है,परंतु कुटिलता
विकास को पटरी से
उतार दिया करती है।
ऐसे में सुशासन भी
कुशासन की प्रतीति
कराने लगता है !
यह आम आदमी के भीतर
डर पैदा कर देता है।
आदमी बदलाव के स्वप्न
देखने लगता है।
बदलाव हो भी जाता है ,
यह बदलाव बहुधा
जंगल राज लेकर आता है ,
इसका अहसास भी  बहुत देर बाद होता है ,
तब तक चमन लुटपिट चुका होता है,
जीवन का हरेक कोना
अस्त व्यस्त हो चुका होता है।
अच्छा है कि
नेतागण बयान देने से पहले
अपने गिरेबान में झांकें ,
और तत्पश्चात देश समाज और राज्य को
विकसित करने का बीड़ा उठाएं।
जीवन को सुख, समृद्धि और संपन्नता से भरपूर बनाएं।
जीवन को जंगल राज के गर्त में जाने से बचाएं।
१७/०३/२०२५.
इस बार होली पर
खूब हुड़दंग हुआ ,
पर मैं सोया रहा
अपने आप में खोया रहा।
कोई कुछ नया घटा ,
आशंका का कोई बादल फटा!
यह सब सोच बाद दोपहर
टी.वी.पर समाचार देखे सुने
तो मन में इत्मीनान था ,
देश होली और जुम्मे के दिन शांत रहा।
होली रंगों का त्योहार है ,
इसे सब प्रेमपूर्वक मनाएं।
किसी की बातों में आकर
नफ़रत और वैमनस्य को न फैलाएं।

बालकनी से बाहर निकल कर देखा।
प्रणव का मोटर साइकिल रंगों से नहाया था।
उस पर हुड़दंगियों ने खूब अबीर गुलाल उड़ाया था।

इधर उमर बढ़ने के साथ
रंगों से होली खेलने से करता हूँ परहेज़।
घर पर गुजिया के साथ शरबत का आनंद लिया।
इधर हुड़दंगियों की टोली उत्साह और जोश दिखलाती निकल गई।

दो घंटे के बाद प्रणव होली खेल कर घर आया था।
उसके चेहरे और बदन पर रंगों का हर्षोल्लास छाया था।
जैसे ही वह खुद को रंगविहीन कर बाथरूम से बाहर आया,
उसकी पुरानी मित्र मंडली ने उसे रंगों से कर दिया था सराबोर।

मैं यह सब देख कर अच्छा महसूस कर रहा था।
मन ही मन मैंने सौगंध खाई ,अगली होली पर
मैं कुछ अनूठे ढंग से होली मनाऊंगा।
कम से कम सोए रहकर समय नहीं गवाऊंगा।
कैनवास पर अपने जीवन की स्मृतियों को संजोकर
एक अद्भुत अनोखा अनूठा कोलाज बनाने का प्रयास करूंगा।

और हाँ, रंग पंचमी से एक दिन पूर्व होलिका दहन पर
एक  संगीत समारोह का आयोजन घर के बाहर करवाऊंगा।
उसमें समस्त मोहल्ला वासियों को आमंत्रित करूंगा।
उनके उतार चढ़ावों भरे जीवन में खुशियों के रंग भरूंगा।
१७/०३/२०२५.
वह इस भरे पूरे
संसार में
दुनियावी गोरखधंधे सहित
अपने वजूद के
अहसास के बावजूद
कभी कभी
खुद को
निपट अकेलेपन से
संघर्ष करते ,
जूझते हुए
पाता है ,
पर कुछ नहीं कर
पाता है,
जल्दी ही
थक जाता है।
वह ढूंढ रहा है
अर्से से सुख
पर...
उसकी चेतना से
निरन्तर दुःख लिपटते जा रहे हैं ,
उसे दीमक बनकर
चट करते जा रहे हैं।
जिन्हें वह अपना समझता है,
वे भी उससे मुख मोड़ते जा रहे हैं।
काश! उसे मिल सके
जीवन की भटकन के दौर में
सहानुभूति का कोई ओर छौर।
मिल सके उसे कभी
प्यार की खुशबू
ताकि मिट सके
उसके अपने किरदार के भीतर
व्यापी हुई बदबू और सड़ांध!
वह पगलाए सांड सा होकर
भटकने से बचना चाहता है ,
जीवन में दिशाहीन हो चुके
भटकाव से छुटकारा चाहता है।

कभो कभी
वह इस दुनियावी झंझटों से
उकता कर
एकदम रसविहीन हो जाता है ,
अकेला रह जाता है,
वह दुनिया के ताम झाम से ऊब कर
दुनिया भर की वासनाओं में डूबकर
घर वापसी करना चाहता है,
पर उस समझ नहीं आता है,
क्या करे ?
और कहां जाए ?
वह दुनिया के मेले को
एक झमेला समझता आया है।
फलत:
वह भीड़ से दूर
रहने में
जीवन का सुख ढूंढ़ रहा है,
अपना मूल भूल गया है।
वह अपने अनुभव से
उत्पन्न गीत
अकेले गाता आया है,
अपनी पीड़ा दूसरों तक नहीं
पहुँचा पाया है।
सच तो यह है कि
वह आज तक
खुद को व्यक्त नहीं कर पाया है।
यहाँ तक कि वह स्वयं को समझ नहीं पाया है।
खुद को जानने की कोशिशों को
मतवातर जारी रखने के बावजूद
निराश होता आया है।
वह नहीं जान पाया अभी तक
आखिर वह चाहता क्या है?
उसका होने का प्रयोजन क्या है?
निपट अकेला मानुष
कभी कभी
किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है,
वह खुद को असंमजस में पाता है।
अपनी बाबत कोई निर्णय नहीं कर पाता है।
सदैव उधेड़ बुन में लगा रहता है।
१६/०३/२०२५.
( १६/१२/२०१६).
Mar 16 · 34
काला दौर
आज से सालों पहले
मेरे विद्यार्थी जीवन के दौर में
मेरा शहर और राज्य
आतंक से ग्रस्त था ,
इससे हर कोई त्रस्त था।
किसान धरना लगाने के बहाने
शहर की सड़कों पर उतर आते थे,
जमकर उत्पात मचाते थे।
हम स्कूल और ट्यूशन से भागकर
तमाशा देखने जाते थे।
आगजनी, पथराव ,भाषणबाजी का
लुत्फ़ उठाते थे।
इससे भी पहले नक्सली लहर का
रहा सहा असर थोड़ा बहुत दिख जाता था,
उसके बाद पड़ोसी देश के साथ युद्ध ,
ब्लैक आउट डेज,
महंगाई ,
गरीबी हटाओ के नारे की आड़ में
गरीब हटाओ का काम ,
लड़ाई , झगड़ा , असंतोष ,
मिट्टी के तेल से खुद को आग लगाने का सिलसिला,
समाज में बढ़ता गिला शिकवा और शिकायत
और अंततः आपातकाल का दौर ,
फिर समाज में सत्ता परिवर्तन लेकर आया था नई भोर।
कुछ इस तरह के कालखंड से निकल
कॉलेज में पहुँचा था
तो उस समय आतंकवाद
चरम पर था,
हरेक के भीतर
डर भर गया था ,
जन साधारण को बसों से उतार
मारा जाने लगा था।
कुछ ऐसे उथल पुथल के
दौर से गुजरते हुए
अचानक एक समय
उच्च शिक्षा भी गई थी रुक।
और...
बेरोजगारी के दौर से गुज़र
एक अदद नौकरी का मिलना,
तन मन का खिलना
अब बीता समय हो गया है।
पर इस सब से पिछड़ने का अहसास
अब सेवा निवृत्ति के बाद भी
कभी कभी मन को अशांत करता है।

आज पॉडकास्ट का समय है
अभी अभी सुना है कि
विगत चार माह में
सूबे में आतंक की बारह के लगभग
बंब विस्फोट ,आतंक , आगजनी,कत्ल की वारदात
घटने और उसका प्रशासन पर दुष्प्रभाव की बाबत
सुन रहा था विचार विमर्श।
इसके साथ ही
पुलिस कर्मियों पर मुकदमा चलाए जाने ,
कुछ मामलों में आला और साधारण पुलिस कर्मियों के कैदी बनने की बात चली
तो मुझे आतंक के दमन का वह सुनहरा दौर याद आया ,
जब कांटे को कांटे से हटाया गया था,
धीरे धीरे अमन चैन , सामान्य हालात को क़ायम किया गया था।
आज भी उस नेक काम का दुष्परिणाम लोग भुगत रहे हैं ,
अब भी राज्य की अर्थ व्यवस्था कर्ज़े के जाल में धंसी है।
इस हालात में कौन प्रशासनिक नियन्त्रण क़ायम करे ?
वोट बैंक की राजनीति के चलते
मुफ़्त के लाभ देकर , ढीला ढाला शासन चलाया जा रहा है।
कोई मुख्य मंत्री को कोस रहा है तो कोई अधिकारियों को।
जबकि हकीकत यह है कि अच्छा काम करने वाला बुरा बनता है और पिटता है।
उस समय का काला दौर अब भी ज़ारी है।
यह दौर रोका जा सकता है!
अपराधी को टोका जा सकता है!!
जैसे को तैसा की नीति से ठोका जा सकता है!!!
पर सब के मन में डर है !
अच्छा करने के बावजूद यदि उपहास और त्रास मिला तो क्या होगा ?
स्वार्थों से चालित इस व्यवस्था का अंजाम दलदल में धंसने जैसा तो नहीं होगा !
सो काला दौर ज़ारी है।
अच्छे और सच्चे दौर की आमद के लिए
जन जागरण का हो रहा है इंतजार !
यह सच है कि देश दुनिया और समाज शुचिता की ओर बढ़ रहा है।
काला दौर भी किसी हद तक अपनी समाप्ति से भीतर ही भीतर डर रहा है।
१६/०३/२०२५.
हरेक को समझनी होगी
अपनी जिम्मेदारी।
हर पल करनी नहीं होगी
चालाकी और होशियारी।
यदि चाहते हैं सब,
जीवन पथ पर
आगे बढ़ना,
संघर्ष करना।
जीवन कभी नहीं रहा सरल,
बेशक इसमें बहुत कुछ दिख पड़ता है जटिल।
जिम्मेदारी का निर्वाह
जीवन के प्रवाह को गतिमान रखता है।
यह जीवन धारा को आगे बढ़ाने का कार्य करता है।
जिम्मेदार बनो।
इससे न टलो।
जवाबदेह बनो।
कर्मठ बनकर सम्पन्नता को
अपने जीवन में ले आओ।
दरिद्रता से छुटकारा पाने की करो कोशिश !
ताकि जीवन में बनी रहे गरिमा और कशिश !!
१६/०३/२०२५.
जीवन में
किसी से अपेक्षा रखना
ठीक नहीं,
यह है
अपने को ठगना।
यदि कोई आदमी
आपकी अपेक्षा पर
खरा उतरता नहीं है,
तो उसकी उपेक्षा करना,
है नितांत सही।
कभी कभी अपेक्षा
आदमी द्वारा
अचानक ही जब
जीवन की कसौटी पर
परखी जाती है
और यह सौ फीसदी
खरी उतरती नहीं है,
तब अपेक्षा उपेक्षा में बदल कर
मन के भीतर विक्षोभ
करती है उत्पन्न !
आदमी रह जाता सन्न !
वह महसूसता है स्वयं को विपन्न !
ऐसे में अनायास
उपेक्षा का जीवन में
हो जाता है प्रवेश!
जीवन पथ के
पग पग पर
होने लगता है कलह क्लेश !!

आदमी इस समय क्या करे ?
क्या वह निराशा में डूब जाए ?
नहीं ! वह अपना संतुलन बनाए रखे।
वह मतवातर खुद को तराशता जाए।
वह स्वयं को वश में करे !
वह उदास और हताश होने से बचे !
अपने इर्द गिर्द और आसपास से
हर्गिज़ हर्गिज़ उदासीन होने की
उसे जरूरत नहीं।
ऐसी किसी की कुव्वत नहीं कि
उसे उपेक्षा एक जिंदा शव में बदल दे ।
ऐसा होने से पहले ही आदमी अपने में
साहस और हिम्मत पैदा करे ,
वह अपनी आंतरिक मनोदशा को दृढ़ करे।
वह जीवन के उतार चढ़ावों और कठिनाइयों से न डरे।

अच्छा यही रहेगा कि वह कभी भी
अपेक्षा और उपेक्षा के पचड़ों में न ही पड़े ,
ताकि उसे ऐसी कोई अकल्पनीय समस्या
जीवन नदिया में बहते बहते झेलनी ही न पड़े।
मनुष्य को सदैव यह चाहिए कि
वह जीवन में किसी से भी
कभी कोई अपेक्षा न ही करे ,
जिससे समस्त मानवीय संबंध सुरक्षित रहें !
उसके सब संगी साथी जीवन की रणभूमि में डटे रहें !!
१५/०३/२०२५.
मटर छिलते समय
कभी नहीं आते आंसू ,
जबकि प्याज काटते समय
आँखें आंसुओं को बहाती है !
ऐसा क्यों ?
कुदरत भी अजीब है,
यह सब और सच के करीब है !
कोई बनता है मटर ,
कोई रुलाने वाला,
कोई कोई प्याज और टमाटर भी।
यह सब कुदरत का है खेल।
इसे देखता जा, और सीखता जा।
जीवन सभी से कहता है,
वह मतवातर समय के संग बहता है।

मटर छिलते समय
कोई कोई दाना छिपा रह जाता है,
मटर के छिलके
कूड़ेदान में फेंकते समय
मटर का दाना
अचानक दिख जाता है ,
आदमी सोचता है कभी कभी
यह कैसे बच गया ?
बिल्कुल इसी तरह
सच भी
स्वयं को
अनावृत्त करने से
रह जाता है,
वह मटर के दाने की तरह
पकड़ में आने से बच जाता है।
15/03/2025.
छोटी और लाडली कार को
होली का कोई हुड़दंगी
चोट पहुँचा गया
जब अचानक,
दर्द से बेहाल
अंदर से
आवाज़
आई तब,
"होली मुबारक !"
मन में
उस समय
क्रोध उत्पन्न हुआ ,
मैं थोड़ा सा खिन्न हुआ !
मैंने खुद से  कहा ,
" कमबख्त पाँच हज़ार की
चपत लगा गया !
होली के दिन
मन के भीतर
सुख सुविधा से उत्पन्न
अहंकार की वाट लगा गया !"
मेरी तो होली हो ली जी!
अब सी सी कर के
क्या मिलेगा जी!
यह सोच मन को समझा लिया
और पल भर में
दुनियादारी में
मन लगा
लिया।
१४/०३/२०२५.
यदि कोई अच्छा हो या बुरा ,
वह पूरा हो या आधा अधूरा।
उसे कोसना कतई ठीक नहीं ,
संभव है वह धूरा बने कभी।

हर जीव यहाँ धरा पर है कुछ विशेष
अच्छे के निमित्त,हुआ हो वह अवतरित।
हो सकता है वह अभी भटक रहा हो ,
उसे मंज़िल पर पहुंचाओ, करें पथ प्रदर्शित।

सब लक्ष्य सिद्धि को हासिल कर सकें ,
आओ , हम उनकी राह को आसान करें।
हम उनकी संभावना को सदैव टटोलते रहें ,
इसके लिए सब मतवातर प्रयास करते रहें।

किसी को कोसना और कुछ करने से से रोकना,
कदापि सही नहीं, हम प्रोत्साहित करें तो सही।
१४/०३/२०२५.
कभी कभी
रंगों से गुरेज़ करने वाले को
अपने ऊपर
रंगों की बौछार
सहन करनी पड़ती है।
यही होली की
मस्ती है।
अपने को एक कैनवास में
बदलना पड़ता है
कि कोई चुपके से आए ,
रंग लगाए ,
अपनी जगह बनाए ,
और रंग लगा
चोरी चोरी
खिसक जाए ,
इस डर से
कि कोई सिसक न जाए।
विरह में सिसकारी ,
मिलन में पिचकारी ,
होली के रंग ही तो हैं।
ये अबीर और गुलाल बनकर
कब अंतर्मन को रंग देते हैं !
पता ही नहीं चलता !!
कभी कभी
होली आती है
और हो ली होकर
निकल जाती है।
पता ही नहीं चलता !
जब तक मन में
मौज है,
उमंग तरंग है ,
खेल ली जाए होली ।
जीवन में रंगों और बेरंगों के
बीच चलती रहे
आँख मिचौली !
ऐसी  कामना कीजिए !
अबीर की सौगात
ख़ुशी ख़ुशी
जिन्दगी की झोली में
डालिए
और हो सके तो
आप अपने भीतर
जीवन के रंगों सहित
अपने भीतर झांकिए
ताकि अंतर्मन से मैल धुल जाए !
चेहरा भी मुस्कुराता हुआ खिल पाए !!
अब की होली सब डर
पीछे छोड़कर
मस्ती कर ली जाए!
क्या पता अनिश्चितता के दौर में
कब आदमी की
हस्ती मिट जाए!
क्या पता पछतावा भी
हाथ न आए !
क्यों न जिन्दगी खुलकर
जी ली जाए !
होली भी हो ली हो जाए !!
१४/०३/२०२५.
आदमी
जब तक
नासमझ बना
रहता है ,
छोटी छोटी बातों पर
अड़ा रहता है ।
जैसे ही
वह समझता है
जीवन का सच ,
वह एक सुरक्षा कवच में
सिमट जाता है ,
जिंदगी में
समय रहते
समझौता करना
सीख जाता है ,
सुखी और सुरक्षित
रहता है।
भूल कर भी
बात बात पर
अकड़ दिखाने से
करता है गुरेज।
वह जीवन की
समझ निरंतर
बढ़ाता रहता है।
एक समय आता है ,
वह समझौता
बेहद आसानी से
कर पाता है ,
वह बिना कोई हेर फेर किए
स्वयं को संतुलित और
समायोजित कर लेता है ,
शांत रहना सीख जाता है ,
दिल और दिमाग से
समझौताबाज़ बन जाता है।
वह किसी भी हद तक
सहनशील बना रहता है ,
फल स्वरूप जीवन भर
फलता फूलता जाता है ,
समझौता करने में
गनीमत समझता है।
अतः सुख का आकांक्षी
जीवन में समझौता कर ले ,  
समय रहते समझदारी वर ले।
यह सच है कि
यदि वह समय पर समझौता कर ले ,
तो स्वत: स्वयं को सुखी कर ले।
१४/०३/२०२५.
" हमें
जीवन में  
ज़ोर आजमाइश नहीं
बल्कि
जिन्दगी की
समझाइश चाहिए ।"
सभी से
कहना चाहता है
आदमी का इर्द गिर्द
और आसपास ,
ताकि कोई बेवजह
जिन्दगी में न हो कभी जिब्ह ,
उसके परिजन न हों कभी उदास।
पर कोई इस सच को
सुनना और मानना नहीं चाहता।
सब अपने को सच्चा मानते हैं
और अपने पूर्वाग्रहों की खातिर
अड़े खड़े हैं, वे स्वयं को
जीवन से भी बड़ा मानते हैं।
और जीवन उनकी हठधर्मिता को
निहायत गैर ज़रूरी मानता है ,
इसलिए
कभी कभी वह
नाराज़गी के रुप में
अपनी भृकुटि तानता है ,
पर जल्दी ही
चुप कर जाता है।
उसे आदमी की
इस कमअक्ली पर तरस आता है।
पर कौन
उसकी व्यथा को
समझ पाता है ?
क्या जीवन कभी
हताश और निराश होता है ?
वह स्वत: आगे बढ़ जाता है।
जीवन धारा का रुकना मना है।
जीवन यात्रा रुकी तो समय तक ख़त्म !
इसे जीवन भली भांति समझता है,
अतः वह आगे ही आगे बढ़ता रहता है।
समय भी उसके साथ क़दम ताल करता हुआ
अपने पथ पर  सतत अग्रसर रहता है।
Mar 13 · 81
फीकी चाय
जिन्दगी से मिठास
यकायक चली जाए
तो यह किसे भाए ?
यह फीकी चाय जैसी हो जाए।
कीजिए आप सब
अपने सम्मिलित प्रयासों से
जीवन में मधुरता लाने का उपाय।
जिन्दगी से मिठास
कभी भी यकायक
नहीं जाया करती ,
यह जाने से पहले
दिनचर्या से जुड़े
छोटे छोटे इशारे
अवश्य है किया करती।
यह भी सच है कि
जिन्दगी अपनी रफ़्तार
और अंदाज़ से
है सदैव
आगे बढ़ा करती।
आप से अनुरोध है कि
जीवन में
न किया कीजिए
सकारात्मक सोच का विरोध
बात बात पर
ताकि सहिष्णुता बची रहे ,
जिन्दगी में उमंग तरंग बची रहे।
जीवन की मिठास आसपास बनी रहे।
जीवन यात्रा में सुख समृद्धि की आस बनी रहे।
१३/०३/२०२५.
आज किसान बेचारा नज़र आता है।
वह शोषण का शिकार बनाया जा रहा है।
ऐसा क्यों ? सोचिए , इस बाबत कुछ करिए ज़रा।
किसान कब तक बना रहेगा बेचारा और बेसहारा ?

उसकी मदद कैसे हो ?
उसकी लाचारी कैसे दूर हो ?
यदि उस की उपज खेत से
सीधे बाज़ार भाव पर खरीद ली जाए ?
और थोड़ा खर्चा करके उपभोक्ता से वसूल ली जाए
तो क्या हो ?
कम से कम किसान इससे सुखी रहेगा।
उपभोक्ता अपने द्वारा की गई
अनावश्यक भोजन की बर्बादी को रोक ले ,
तो यकीनन देश की आर्थिकता दृढ़ होगी।
किसान की चिंताएं धीरे धीरे खत्म होंगी।
इसके साथ ही भ्रष्टाचार में भी शनै: शनै: कमी होगी।
किसान की मदद
उपभोक्ता की सदाशयता से
बिना किसी तनाव ,दुराव ,छिपाव के की जा सकती है।
इस राह पर बढ़ कर ही किसान और समाज की तक़दीर
बदली जा सकती है।
संपन्नता,सुख , समृद्धि और सुविधाएं
बगैर किसी देरी किए खोजी जा सकती हैं।
१३/०३/२०२५.
सच है
आजकल
हर कोई
कर्ज़ के जाल में
फँस कर छटपटा रहा है ,
वह इस अनचाहे
जी के जंजाल से
बच नहीं पा रहा है।

दिखावे के कारण
कर्ज़ के मर्ज में जकड़े जाना,
किसी अदृश्य दैत्य के हाथों से
छूट न पाना करता है विचलित।
कभी कभी
आदमी
असमय
अपनी जीवन लीला
कर लेता है
समाप्त ,
घर भर में
दुःख जाता है
व्याप्त।
आत्महत्या है पाप ,
यह फैलाता है समाज में संताप।
सोचिए , इससे कैसे बचा जाए ?
क्यों न मन पर पूर्णतः काबू पाया जाए ?
दिखावा भूल कर भी न किया जाए ।
जिन्दगी को सादगी से ही जीया जाए।
कर्ज़ लेकर घी पीने और मौज करने से बचा जाए।
क्यों बैठे बिठाए ख़ुद को छला जाए ?
क्यों न मेहनत की राह से जीवन को साधन सम्पन्न किया जाए ?
कर्ज़ के मर्ज़ से
जहां तक संभव हो , बचा जाए !
महत्वाकांक्षाओं के चंगुल में न ही फंसा जाए !
कर्ज़ के पहाड़ के नीचे दबने से पीछे हटा जाए !!
कम खाकर गुजारा बेशक कर लीजिए।
हर हाल में कर्ज़ लेने से बचना सीखिए।
१३/०३/२०२५.
यदि किसी आदमी को
अचानक पता चले कि
उसकी लुप्त हो गई है संवेदना।
वह जीवन की जीवंतता को
महसूस नहीं कर पा रहा है ,
बस जीवन को ढोए चला जा रहा है ,
तो स्वाभाविक है , उसे झेलनी पड़े वेदना।
एक सच यह भी है कि
आदमी हो जाता है काठ के पुतले सरीखा।
जो चाहकर भी कुछ महसूस नहीं कर पाता ,
भीतर और बाहर सब कुछ विरोधाभास के तले दब जाता।
आदमी किसी हद तक
किंकर्तव्यविमूढ़ है बन जाता।
वह अच्छे बुरे की बाबत नहीं सोच पाता।
१३/०३/२०२५.
Mar 13 · 36
Heart's Warning
One must protect his heart
from the toughness of heartlessness.
All that happens due to insensitivity of the human mind.
One must listen the heart' s warnings
from time to time
during the journey of life .
Because of  worst living style  as well as the tensions in the  lives of  human beings.
Heart is always remain special for all of us,
as compare to the brain.
Because in normal life,
heart always dominates over the access of the brain.
There is always a danger of brain drain due to greed and
insensitivity of common man.
One must listen the voices of the heart
to avoid critical adversities in the life...to survive...
and to  revive the amazing patterns exisiting in human beings.
One must be serious to listen
the heart' s warning regarding failure
to secure existence.
13/03/2025.
माँ , माँ
होती है।
उससे
बेटी का दुःख
देखा नहीं जाता।
बेटी को दुःखी देख कर
माँ का मन है भर आता।
माँ सदैव चाहती है कि
बिटिया रानी सदैव सुखी रहे ,
यदि कोई उतार चढ़ाव और कष्ट
बिटिया की राह में आन पड़े ,
तो भी वह बिटिया का सहारा बने।
बेशक उसे रूढ़ियों और ज़माने से
लड़ना पड़े !
वह संतान सुख की खातिर
दुनिया भर से संघर्ष करे !!
बिटिया की रक्षार्थ वह शेरनी बन
विपदाओं का सामना ख़ुशी ख़ुशी करे !!
माँ सदैव बिटिया रानी की खातिर
अपना जीवन कुर्बान करने के लिए तत्पर रहे।
१२/०३/२०२५.
Mar 12 · 41
खरोंच
आज साल शुरू हुए
लगभग इकहत्तर दिन हुए हैं
और नई कार लिए
छियासठ दिन।
अभी अभी अचानक
कार की हैड लाइट के पास
पड़ गई है नज़र।
वहां दिख गई है
एक खरोंच।
मेरे तन और मन पर
अनचाहे पड़ गई है
एक और नई खरोंच ।
जैसे अचानक देह पर
लग गई हो किरच
और वहां पर
रक्त की बूंदें
लगने लगी हो रिसने।
भीतर कुछ लगा हो सिसकने।
यह कैसा बर्ताव है
कि आदमी निर्जीव वस्तुओं पर
खरोंच लगने पर लगता है सिसकने
और किसी हद तक तड़पने ?
वह अपने जीवन में
जाने अनजाने
कितने ही संवेदनशील मुद्दों पर
असहिष्णु होकर
अपने इर्द-गिर्द रहते
प्राणियों पर कर देता है आघात।
सचमुच ! वह अंधा बना रहता ,
उसे आता नहीं नज़र
कुछ भी अपने आसपास !
यदि अचानक निर्जीव पदार्थ और सजीव देह पर
उसे खरोंच दिख जाए तो वह हो जाता है उदास।
क्या आदमी के बहुत से क्रियाकलाप
होते नहीं एकदम बकवास और बेकार ?
१२/०३/२०२५.
Mar 12 · 46
मर्यादा
मनुष्य
जब तक स्वयं को
संयम में
रखता है
मर्यादा बनी रहती है ,
जीवन में
शुचिता
सुगंध बिखेरती रहती है,
संबंध सुखदायक बने रहते हैं
और जैसे ही
मनुष्य
मर्यादा की
लक्ष्मण रेखा को भूला ,
वैसे ही
हुआ उसका अधोपतन !
जीवन का सद्भभाव बिखर गया !
जीवन में दुःख और अभाव का
आगमन हुआ !
आदमी को तुच्छता का बोध हुआ ,
जिजीविषा ने भी घुटने टेक दिए !
समझो आस के दीप भी बुझ गए !
मर्यादाहीन मनुष्य ने अपने कर्म
अनमने होकर करने शुरू किए !
सुख के पुष्प भी धीरे धीरे सूख गए !!
मर्यादा में रहना है
सुख , समृद्धि और संपन्नता से जुड़े रहना !
मर्यादा भंग करना
बन जाता है अक्सर
जीवन को बदरंग करना !
अस्तित्व के सम्मुख
प्रश्नचिह्न अंकित करना !!
मन की शांति हरना !!
१२/०३/२०२५.
Mar 11 · 39
परवाज़
जीवन में
अपने बच्चों को
आज़ादी दे कर
उन्मुक्त रहकर उड़ने दो।
उन्हें जीवन में एक लक्ष्य दो।
फिर उन्हें बगैर हस्तक्षेप
मंज़िल की ओर बढ़ने दो।
उन्हें जी भरकर
अपने रंग ढंग से
जीवनाकाश में
परवाज़ भरने दो।

समय रहते
मोह के बंधनों से
उन्हें मुक्त कर दो
ताकि वे अपने परों को
भरपूर जीवन शक्ति से
खोल सकें,
मन माफ़िक दिशा में
उड़ारी भर सकें।
जीवन यात्रा में
अपनी मंज़िल को
सहर्ष वर सकें।


तनाव रहित जीवन चर्या से
अच्छे से परवाज़ भरी जाती है,
अतः बच्चों के भीतर
आत्मविश्वास भरने दो,
उन्हें अपने सपने साकार करने दो।
उन्हें परवाज़ के लिए खुले छोड़ दो
ताकि उनका जीवन यात्रा पथ के लिए
अपने को कर सके समय रहते तैयार।
वे करें न कभी आप से
कभी कोई शिकवा और शिकायत।
उन्हें मिलनी ही चाहिए
ऊर्जा भरपूर रवायत ,
परवाज़ भरने की !
मंज़िल वरने की !!
११/०३/२०२५.
Mar 10 · 102
संवाद
जिन्दगी में
संवाद के अभाव में
अक्सर हो जाया करता है
मन मुटाव ,
अतः परस्पर
संवाद रचाया जाए ।
एक दूसरे तक
अपनी चाहतों को
शांत रहकर
पहुंचाया जाए ,
ताकि समय रहते
सब संभल जाएं ।
वे सब अपने मनोभाव
सहजता से
अभिव्यक्त कर पाएं ।
संवाद स्थापना को
विवादों से ऊपर रखा जाए ,
अनावश्यक असंतोष को
बेवजह तूल न दिया जाए ,
बल्कि जीवन में
अपने को बेहतर करने के लिए
प्रयास किए जाएं ,
हो सके तो मतभेद मिटा दिए जाएं।
संवाद स्थापना की ओर
अपनी समस्त संवेदना
और सहृदयता के साथ बढ़ा जाए।
इसके लिए अपरिहार्य है कि
जीवन को विषमताओं से बचाया जाए ,
जीवन पथ को कंटकविहीन बनाया जाए।
१०/०३/२०२५.
Mar 9 · 55
फैसला
अपने जीवन में
उतार चढ़ावों के
बीच से गुजरते हुए
फैसला लेना
कतई होता नहीं आसान।
जब आप ले लेते हैं
बहुत सोच विचार के बाद
अपनी बाबत
कोई सटीक फैसला
और वह मुफीद भी बैठता है ,
आप मन ही मन में
होते हैं खुश और संतुष्ट।
समय पर लिया गया
फैसला आदमी के जीवन में
सार्थक बदलाव ला देता है ,
यह किसी हद तक
आप को विशिष्ट बना देता है।
यह सब निर्भर करता है
आपके शैक्षणिक कौशल पर।
यही योग्यता देती है
आदमी को फैसला लेने का हुनर !
तभी तो कहा जाता है कि
शिक्षा ही है इन्सान का सच्चा जेवर !
जिसे यह मिल जाए जीवन में,
उसके देखते ही बनते हैं तेवर।
वह जीवन में सार्थकता का
अहसास पग पग पर कर पाता है।
जीवन में स्वत: आगे बढ़  पाता है।
०९/०३/२०२५.
कभी कभी
कैलेंडर को
मज़ाक करने का
मौका हो
जाता है मयस्सर।
आदमी की गलती
बन जाया करती है
कैलेंडर के
मज़ाक करने का सबब।
आज शनिवार को
मुझे एकादशी का व्रत
पिछले महीने की तिथि के
अनुसार आधे दिन तक रखना पड़ा।
यह तो अचानक
श्रीमती ने फोन पर
एकादशी के
सोमवार को होने की
बाबत बताया।
मैं जब घर आया
तो दीवार पर टंगे
कैलेंडर पर
फरवरी के महीने वाला
पृष्ठ नजर आया,
जबकि महीना मार्च का
चल रहा था।
आज आठ मार्च है ,
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस।
मैं महीने के ख़त्म होने पर भी
अगले महीने को इंगित करने वाला
पृष्ठ पलट नहीं पाया था।
फलत: कैलेंडर को
मज़ाक करने का
मिल गया था अवसर
और मैं एकादशी होने के
भ्रम का शिकार।
घर पर सभी सदस्यों ने
कैलेंडर के संग
मुझे हँसी मज़ाक का
पात्र बनाया था।
मैं सचमुच खिसिया गया था।
०८/०३/२०२५.
मनुष्य के समस्त  कार्यकलापों का
है आधार,
भावनाओं का व्यापार।
कोई भी
व्यवसाय को
देखिए और समझिए,
एक सीधा सा
गणित नज़र आता है,
वह है
भावनाओं को समझना
और तदनुरूप
अपना कार्य करना ,
अपने को ढालना।
यह भावनाएं ही हैं
जो हमें जीवन धारा से
जोड़े रखती हैं,
हमारे भीतर जीवंतता
बनाए रखती हैं।
जिसने भी
इन्हें समझ लिया,
उसने अपना उन्नति पथ
प्रशस्त कर लिया।
यह वह व्यापार है
जो कभी फीका नहीं पड़ता,
इसे करने वाला
जीवन में न केवल प्रखर
है होता रहता ,
बल्कि वह संतुलित दृष्टिकोण से
निरन्तर आगे ही आगे है बढ़ता।
भावनाओं का व्यापारी
दर्शन और मनोविज्ञान का
है ज्ञाता होता ,और वह सतत्
अपना परिष्कार करता रहता,
जीवन यात्रा को
आसानी से गंतव्य तक पहुंचाता।
०८/०३/२०२५.
दोस्त!
अगले सप्ताह
आज के दिन
यानिकि
शुक्रवार अर्थात् जुम्मे को
बहुप्रतीक्षित
रंगों का त्योहार
होली है।
इस बार
हम सब होली खेलेंगे ,
मगर सलीके से !
पर्यावरण को ध्यान में
रखते हुए !
मानसिक शांति को
अपने मानस में
संभल संभल कर
धरते हुए !
ताकि फिर से
देश में संभल को
दोहराया न जा सके।
देश दुनिया के
सौहार्द पूर्ण वातावरण को
प्रदूषित न किया जा सके।

होली सभी का त्योहार है ,
अच्छा रहेगा इसे सब मनाएं ,
पर यदि किसी को रंगे जाना
दिल ओ दिमाग से पसंद नहीं ,
उसे बिल्कुल न रंगा जाना होगा सही।
बाहर से भले ही हम रंगों से करें गुरेज़!
कोशिश करें हम भीतर से रंगे जाएं !
हरगिज़ हरगिज़ नहीं
हम जीवन में किसी को
रंगे सियार से नज़र आएं !
हम दिल से होली का त्योहार मनाएं ,
बेशक हम किसी को जबरन रंग न लगाएं।
रंग जीवन के चारों तरफ़ फैले हुए हैं ,
मन को हम पावन रखें ,
हम करतार के रंगों से रंगे हुए हैं।
स्व निर्मित अनुशासन से बंधे हुए हैं।
हमारे क़दम संस्कारों से सधे हुए हैं।
जीवन में हम सब जिद्दी न बने।
आज देश दुनिया अराजकता के मुहाने पर है।
बहुतों की अक्ल ठिकाने पर नहीं है ,
अतः सब होली की सद्भावना को चुनें ,
किसी के उकसावे में आकर कतई न लड़ें!
परस्पर तालमेल कायम करते हुए सब आगे बढ़ें।
०७/०३/२०२५.
Mar 7 · 50
मुस्कान
आदमी
मुख से
कुछ न कहे ,
तब भी उसकी
मुस्कान बहुत कुछ
चुपके से
सब कुछ कह देती है।
इसका अहसास
आज मुझे हुआ
जब ऑटो चालक
राज कुमार के संग
कर रहा था मैं यात्रा ,
साथ में मेरे साहिल बैठा था
जो मेरा विद्यार्थी था
और जिसे मैंने
बल्लोवाल सौंखड़ी में
आयोजित क्षेत्रीय कृषि मेले को
देखने के लिए अपने साथ ले लिया था
ताकि वह कृषि से संबंधित उत्पादों को जान ले,
और आगे चलकर कृषि को
अपनी रोजी रोटी का जरिया बना ले।

पास ही राजकुमार की
परिचिता दुकान में बैठी हुई थी
वह मुस्कुराईं ,
ऑटो चालक राजकुमार ने भी
मुस्कान के साथ
हल्के से सिर
दिया था हिला।
दोनों में से बोला कोई भी नहीं,
पर कुशल क्षेम का
हो गया था आदान-प्रदान।
ऑटो चालक रुका नहीं,
परिचिता भी उठी नहीं,
परंतु
उनकी मुस्कान ने
दिल का हाल चाल
बख़ूबी दिया था बता।
दोनों ने अपनी गहरी मुस्कान से
जीवन का सौंदर्य बोध
सहज ही दिया था जता।
मैं इस मूक मुस्कान के
आदान प्रदान से
मन ही मन हो गया था प्रसन्न।
मैने सहजता से
मुस्कान का जादू जान लिया था।

आप भी हर हाल में मुस्कुराया कीजिए!
अपने भीतर और आसपास की जीवंतता का
अहसास मौन रहकर किया कीजिए।
इस दुनिया में बहुत से लोग हैं परेशान,
पर यदि आदमी हर पल मुस्कराए
तो स्वत: ही देखा देखी
बहुत से लोग मुस्कुराना जाएं सीख!
और उनकी चेतना जीवन का सौंदर्य
अर्थात मुस्कान को आत्मसात कर पाए ,
और जीवन में आदमी
कठिनाइयों का सामना
ख़ुशी ख़ुशी सहजता से
मुस्कान सहित करता देखा जाए।

०७/०३/२०२५.
Mar 6 · 274
Adversity
Adversity must become
our advantage in the life.
There is no need to say anything about the difficulties , ultimately winner knows the reward of struggles.
A winner thinks  and act according to experiences of previous life.
There is no need to cry over the toughness of life, because life of an individual prepares itself  for forthcoming challenges of life with a deep smile!
०६/०३/२०२५.
इस दुनिया का
सब से खतरनाक मनुष्य
अशिष्ट व्यक्ति होता है,

जो अपने व्यवहार से
आम आदमी और ख़ास आदमी तक को
कर देता है शर्मिन्दा।
वह अचानक
सामने वाले की इज्ज़त
अपने असभ्य व्यवहार से
कर देता है तार तार!
सभ्यता का लबादा उतार देता है।
अपने मतलब की जिन्दगी जीता है।

अभी अभी
मेरे शहर के बाईस बी सेक्टर के
भीड़ भरे बाज़ार में
एक शख़्श
अपने दोनों हाथों में
एक तख्ती उठाए
रक्तदान के लिए प्रेरित करते हुए
घर घर गली गली घूमते देखा गया है।
उसकी तख्ती पर लिखा है,
" रक्त दानी विशिष्ट व्यक्ति होता है,
जो प्राण रक्षक होता है।"
यह देख कर मुझे अशिष्ट व्यक्ति का
आ गया है ध्यान !
जो कभी भूले से भी नहीं दे सकता
किसी जरूरतमंद को प्राण दान !
बल्कि वह अपने अहम् की खातिर
बन जाता है शातिर
और हर सकता है
छोटी-छोटी बात के लिए प्राण।

इसलिए मुझे लगता है कि
अशिष्ट व्यवहार करने वाला
न केवल असभ्य बल्कि वह
होता है सबसे ख़तरनाक
जो जीवन में कभी कभी
न केवल अपनी नाक कटा सकता है,
यदि उसका वश चले
तो वह अच्छे भले व्यक्ति को
मौत के घाट उतरवा सकता है।
अशिष्ट व्यक्ति से समय रहते किनारा कीजिए!
खुद को जीवनदान दीजिए !!
०६/०३/२०२५.
Mar 5 · 43
पछतावा
काश! यह जीवन
एक तीर्थ यात्रा समझ कर
जीना सीख पाता
तो नारकीय जीवन से
बच जाता।
इधर उधर न भटकता फिरता।
चिंता और तनाव से बचा रहता।
जीवन के लक्ष्य को भी
हासिल कर लेता।
अब पछतावा भी न होता।
पछतावा
विगत की गलतियों का
परछावा भर है।
आदमी समय रहते
संभल जाए ,
यही इसका हल है।
पछताने और इसकी वज़ह को
समझ कर
समय रहते
निदान करने से
आदमी का बढ़ जाता
आत्मबल है।
जो बनता जीने का
संबल है।
०५/०३/२०२५.
चारों ओर बुराइयों को देख
व्यर्थ की बहसबाजी में उलझने से
अच्छा है कि कोई पहल की जाए ,
सोच समझ कर बुराई के हर पहलू को जाना जाए ,
और तत्पश्चात उसे दूर करने के प्रयास किए जाएं।
बुरे को बुरा , अच्छे को अच्छा कहने में
कोई हर्ज़ नहीं , बस सब अपने फ़र्ज़ समझें तो सही।
फ़र्ज़ पर टिके रहना वाला ,
कथनी और करनी का अंतर मिटाने वाला
अक्सर जीवन के कठिन हालातों से जूझ पाता है।
वह जीवन के उतार चढ़ावों के बावजूद
सकारात्मक सोच के साथ पहल कर पाता है।
वह जीवन की भाग दौड़ में विजेता बनकर
नए बदलाव लेकर आता है।
अपनी अनूठी पहल के बूते
पहले स्थान को हासिल कर जाता है।
वह जीवन के संघर्षों में अग्रणी होकर
अपनी पहचान बना जाता है।
पहले पहले पहल करने वाला
जीवन के सत्य को जान लेने से
बौद्धिक रूप से प्रखर बन जाता है।
वह स्वतः मान सम्मान का
अधिकारी बन जाता है।
वह जन जीवन से खुद को जोड़ जाता है।
वह हरदम अपने पर भरोसा करके
अपनी उपस्थिति का अहसास करवाता रहता है।
पहल करने वाला प्रखर होता है ,
वह अपनी संभावना खोजने के लिए
सदैव तत्पर रहता है।
०५/०३/२०२५.
कलयुग है ,
आजकल भाई
आपस में
छोटी छोटी बातों पर
लड़ पड़ते हैं ,
वे मरने मारने पर
उतारू हो जाते हैं !
काला उर्फ़ सुरिंदर ने
दो दिन पहले
बातों बातों में कहा था कि
जो भाई शादी से पहले
एक दूसरे की रक्षा में
गैरो से लड़ने को रहते हैं तैयार !
वही भाई समय आने पर
एक दूसरे को मारने पर
हो जाते हैं आमादा,
एक दूसरे के पर्दे उतार
शर्मसार कर देते हैं।
अब रामायण काल नहीं रहा !
लक्ष्मण सा भाई विरला ही मिलता है।
बल्कि भाई भाई का ख़ून कर
बन जाया करता है क़ातिल।

अभी यह सब सुने महज दो दिन हुए हैं कि
इसे प्रत्यक्ष घटित होते
अख़बार के माध्यम से जान भी लिया।
अख़बार में एक खबर सुर्खी बन छपी है ,
" ढाबे पर ट्रक चालक ने शराब के नशे में
बड़े भाई को पीट पीटकर मार डाला..."

सनातन में "रामायण " में
आदर्श भाइयों के बारे में
उनके परस्पर प्रेम और सौहार्दपूर्ण
जीवन बाबत दर्शाया गया है।
वहीं "महाभारत" में
कौरवों और पांडवों के बीच
भाइयों भाइयों में होने वाले
विवाद और संवाद की बाबत
विस्तार से कथा के रूप में
बताया गया है,
आदमी की समझ को
बढ़ाने की खातिर
एक मंच सजाया गया है।

मैं इस बाबत सोचता हूँ
तो आता है ख्याल।
आज कथनी और करनी के अंतर ने ,
रिश्तों में स्वार्थ के हावी होने ने
भाई को भाई का वैरी बना दिया है।
स्वार्थ के रिश्तों ने
रामायण के आदर्श भाइयों को
महाभारत करने के लिए उकसाया है।
पता नहीं कहाँ भाई भाई का प्यार जा छुपाया है ?
आदर्श परिवार को भटकाव के रास्ते पर दिया है छोड़ !
पता नहीं कब तक भाई
अपने रिश्ते को एक जुट रख पाएंगे !
या फिर वे भेड़चाल का शिकार होकर
आपस में लड़ कर समाप्त हो जाएंगे !!
आज भाईचारा बचाना बेहद ज़रूरी है ,
ताकि समाज बचा रहे !
देश स्वाभिमान से आगे बढ़ सके !!
०४/०३/२०२५.
बचपन में
मां थपकी दे दे कर
बुला देती थी
निंदिया रानी को ,
देने सुख और आराम।
अब मां रही नहीं,
वे काल के प्रवाह में बह गईं।
अब बुढ़ापे में
निंदिया रानी
अक्सर झपकी बन
रह रह कर देती है सुला,
किसी हद तक
अवसाद देती है मिटा।
अब निंदिया रानी
लगने लगी है मां,
जो देने लगती है
सुख और आराम की छाया!
जिससे हो जाती है ऊर्जित
जीवन की भाग दौड़ में थकी काया !!
अब निंदिया रानी बन गई है मां!
जो सुकून भरी थपकी दे दे कर ,
मां की याद दिलाने लगती है,
सच में मां के बगैर
जिन्दगी आधी अधूरी सी लगती है।
अब निंदिया रानी अक्सर
कुंठा और तनाव से दिलाने निजात
मीठी मीठी झपकी की दे देती है सौगात।
आजकल निंदिया रानी मां सी बन कर
जीवन यात्रा में सुख की प्रतीति कराती है,
यह आदमी को बुढ़ापे में
असमय बीमार होने से बचाया करती है।
०४/०३/२०२५.
Mar 3 · 42
विदूषक
आदमी
कभी कभी
अपनी किसी
आंतरिक कमी की
वज़ह से विदूषक जैसा
व्यवहार न चाहकर भी करता है ,
भले ही वह बाद में पछताता रहे अर्से तक।
भय और भयावह अंजाम की दस्तक मन में बनी रहे।

विदूषक भले ही
हमें पहले पहल मूर्ख लगे
पर असल में वह इतना समझदार
और चौकन्ना होता है कि उसे डराया न जा सके ,
वह हरदम रहता है सतर्क ,अपने समस्त तर्क बल के साथ।
विदूषक सदैव तर्क के साथ क़दम रखता है ,
बेशक उसके तर्क आप को हँसाने और गुदगुदाने वाले लगें।

आओ हम विदूषक की मनःस्थिति को समझें।
उसकी भाव भंगिमाओं का भरपूर आनंद लेते हुए बढ़ें।
कभी न कभी आदमी एक विदूषक सरीखा लगने लगता है।
पर वह सदैव सधे कदमों से
जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश करता है ,
यही सब उसके व्यक्तित्व के भीतर कशिश भरता है।
उसे निरर्थकता में भी सार्थकता खोजने का हुनर आता है!
तभी वह बड़ी तन्मयता से
तनाव और कुंठा ग्रस्त व्यक्ति के भीतर
हंसी और गुदगुदाहट भर पाता है।
ऐसा करके वह आदमी को तनावरहित कर जाता है !
यही नहीं वह खुद को भी उपचारित कर पाता है !!
०३/०३/२०२५.
Mar 3 · 47
यात्रा
जीवन यात्रा में
कब लग जाए विराम ?
कोई कह नहीं सकता !
और आगे जाने का
बंद हो जाए रास्ता।
आदमी समय रहते
अपनी क्षमता को बढ़ाए,
ताकि जीवन यात्रा
निर्विघ्न सम्पन्न हो जाए।
मन में कोई पछतावा न रह जाए।
सभी जीवन धारा के अनुरूप
स्वयं को ढाल कर
इस यात्रा को सुखद बनाएं।
हरदम मुस्कान और सुकून के साथ
जीवन यात्रा को गंतव्य तक पहुँचाएं।
०३/०३/२०२५.
Mar 3 · 60
भूलना
हवा में झूलने
जैसा हो गया है
अब उम्र बढ़ने से ,
याददाश्त कमज़ोर होने से ,
बार बार भूलना ,
और किसी नज़दीकी का
याद दिलाना ,
याद दिलवाने की
प्रक्रिया रह रहकर दोहराना ।
आदमी का
फिर भी भूलते जाना ।
स्मृतियों का हवा हवाई हो जाना ,
भीतर तक
कर देता है बेचैन !
बरबस
कभी कभी
बरस जाते हैं नैन !
जिन्दगी की धूप छाँव में
स्मृति की बदलियां
कभी कभी
बरस जाती हैं ,  
याददाश्त की किरणें
अचानक मन के भीतर
प्रवेश कर
आदमी को सुकून दे जाती हैं ,
मन को कमल सा खिला देती हैं।
भूलना लग सकता है
आदमी को शूल
मगर यह जिंदगी का स्वप्निल दौर भी
कभी हो जाता है
समय की धूल जैसा।
जिसे कोई स्मृति अचानक कौंध कर
कर देती है साफ़ !
सब कुछ याद आने लगता है ,
फिर झट से आदमी
अपना आस पास जाता है भूल,
उसकी चेतना पर पड़ जाती अचानक समय की धूल,
आदमी जाता भूल, अपना मूल !
यहीं है जीवन पथ पर बिखरे शूल !!
भूलना हवा में
झूलने जैसा हो गया है,
ऐसा लगता है कभी कभी
जीवन पथ कहीं खो गया है ,
चेतन तक  
कहीं नाराज़ होकर सो गया है।
भूलना हवा में झूलने जैसा होता है जब,
आदमी अपना अता पता खोकर,
लापता हो जाता है।
कभी कभी ही वह लौट पाता है !
वापसी के दौरान वह फिर अपनी सुध बुध भूल
कहीं भटकने लगता है।
ऐसी दशा देख कर
कोई उसका प्यारा
तड़पने लगता है।
०३/०३/२०२५.
जब पहले पहल
नौकरी लगी थी
तब तनख्वाह कम थी
पर बरकत ज़्यादा थी।
अब आमदनी भी
पहले की निस्बत ज़्यादा,
पर बरकत बहुत ही कम!
कल थरमस खरीदी,
दाम दिए हजार रुपए से
थोड़े से कम !
पहली नौकरी में
महीना भर काम करने के
उपरांत मिले थे
पगार में लगभग नौ सौ रुपए।
मैं बहुत खुश था !
कल मैं सन्न रह गया था !
निस्संदेह
महंगाई के साथ साथ
संपन्नता भी बढ़ी है।
पर इस नक चढ़ी
महंगाई ने
समय बीतते बीतते
अपने तेवर
दिखाए हैं!
कम आय वर्ग को
ख़ून के आँसू रुलाए हैं !
बहुत से मेहनतकश
बेरहम महंगाई ने
जी भर कर सताए हैं !!
आओ कुछ ऐसा करें!
सभी इस बढ़ती महंगाई का सामना
अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करते हुए करें।
सब ख़ुशी ख़ुशी नौकरी और काम धंधा करें,
वे इस बढ़ती महंगाई को विकास का नतीजा समझें ,
इससे कतई न डरें !
वे महंगाई के साथ साथ
जीवन संघर्ष में जुटे रहें !!
०३/०३/२०२५.
जो चोर है
वही करता शोर है,
इस दुनिया में
अत्याचार घनघोर है!
साहस दिखाने का
जब समय आता है,
अपना चोर भाई!
पीछे हट जाता है।
शायद तभी
वह शातिर कहलाता है।
अचानक
भीतर से एक आवाज़ आई
सच को उजागर करती हुई,
"पर ,कभी कभी
सेर को सवा सेर
टकरा जाता है।
वह चुपके से
चकमा दे जाता है,
अच्छे भले को
बेवकूफ़ बना जाता है।"
बेचारा चोर भाई !
मन ही मन में
दुखियाता रहता है,
वह कहां सुखी रह पाता है ?
एक दिन वह चुप ही हो जाता है।
वह शोर करना भूल जाता है।
जब समय आता है,
तब वह वही शोर करने से
बाज़ नहीं आता है।
इसमें ही उसे लुत्फ़ और मज़ा आता है।
वह इसी रंग ढंग से ज़िन्दगी जी कर
टाटा बाय बाय कर जाता है।
उसके जाने के बाद सन्नाटा भी
कुछ उदास हुआ सा पसर जाता है।
वह भी चोर के शोर मचाने का
इंतज़ार करने लग जाता है
कि कोई आए और जीवन को करे साकार।
वह भरपूर जिंदगी जीते हुए
लौटाए
जिन्दगी को
चोरी की हुई
जिंदगी की
लूटी हुई बहार ,
जीवन में लेकर आए
सहज रहकर करना सुधार
और निर्मित करना जीवनाधार।



०२/०३/२०२५.
Mar 1 · 89
खलना
उम्र जैसे जैसे बढ़ी
मुझे ऊंचा सुनने लगा है ।
जब कोई कुछ कहता है,
मैं ठीक से सुन पाता नहीं।
कोई मुझे इसका कराता है
चुपके चुपके से अहसास।
मैं पास होकर भी हो जाता हूं दूर।
यह सब मुझे खलता है।
वैसे बहुत कुछ है
जो मुझे अच्छा नहीं लगता।
पर खुद को समझाता हूं
जीवन कमियों के साथ
है आगे मतवातर बढ़ता।
इस में नहीं होना चाहिए
कोई डर और खदशा।
०१/०३/२०२५.
जब आप किसी के
ख़िलाफ़  कुछ कहने का
साहस जुटाने की
ज़ुर्रत करते हैं ,
आप जाने अनजाने
कितने ही
जाने पहचाने और अनजाने चेहरों को
अपना विरोधी बना लेते हैं !
जिन्हें आजकल लोग
दुश्मन समझने की भूल करते हैं !
आज दोस्त बनाने और दुश्मन कहलाने का
किस के पास है समय ?
यदि कभी समय मिल ही जाए
तो क्यों न आदमी इसे अपने
निज के विकास में लगाए ?
वह क्यों किसी से उलझने में
अपनी ऊर्जा को लगाए ?
वह निज से संवाद रचा कर
मन में शान्ति ढूंढने का
करना चाहे उपाय।
आज देखा जाए तो अश्लील कुछ भी नहीं !
क्योंकि आज एक छोटे से बच्चे के हाथ में
मोबाइल फोन दे दिया जाता है ,
ताकि बच्चा रोए न !
मां बाप की आज़ादी में
भूल कर दखल दे न !
जाने अनजाने अश्लीलता बच्चे के अवचेतन में
छाप छोड़ जाती है।
जबकि बच्चे को ढंग से
अच्छे बुरे का विवेक सम्मत फ़र्क करना नहीं आता।

आजकल
इंटरनेट का उपयोग बढ़ गया है,
इसका इस्तेमाल करते हुए
यदि भूल से भी
कुछ गलत टाइप हो जाए
तो कभी कभी अवांछित
आंखों के सामने
चित्र कथा सरीखा मनोरंजक लगकर
अश्लीलता का चस्का लगा देता है ,
जीवन के सम्मुख एक प्रश्नचिह्न लगा देता है।
आज सच को कहना भी अश्लील हो गया है !
झूठ तो खैर अश्लीलता से भी बढ़कर है।
हम अश्लीलता को तिल का ताड़ न बनाएं,
बल्कि अपने मन पर नियंत्रण करना खुद को सिखाएं।
यदि आदमी के पास मन को पढ़ने का हुनर आ जाए ,
तो यकीनन अश्लीलता भी शर्मा जाए ।
भाई भाई के बीच नफ़रत और वैमनस्य भर जाए ।
रामकथा के उपासक भी
महाभारत का हिस्सा बनते नज़र आएं।
क्यों न हम सब सनातन की शरण में जाएं।
वात्स्यायन ऋषि के आदर्शों के अनुरूप
समाज को आगे बढ़ाएं।
हमारा प्राचीन समाज कुंठा मुक्त था।
यह तो स्वार्थी आक्रमणकारियों का दुष्चक्र था,
जिसने असंख्य असमानता की
पौषक कुरीतियों को जन्म दिया,
जिसने हमारा विवेक हर लिया ,
हमें मानवता की राह से भटकने पर विवश कर दिया।
सांस्कृतिक एकता पर
जाति भेद को उभार कर
दीन हीन अपाहिज कर दिया।
अच्छे भले आदमियों और नारियों को
चिंतनहीन कर दिया ,
चिंतामय कर दिया।
सब तनाव में हैं।
आपसी मन मुटाव से
कमज़ोर और शक्तिहीन हो गए हैं।
आंतरिक शक्ति के स्रोत
अश्लीलता ने सुखा दिए हैं,
सब अश्लीलता के खिलाफ़
फ़तवा देने को तैयार बैठे हैं,
बेशक खुद इस समस्या से ग्रस्त हों।
सब भीतर बाहर से डर हुए हैं।
कोई उनका सच न जान ले !
उनकी पहचान को अचानक लील ले !!

अश्लीलता के खिलाफ़
सब को होना चाहिए।
इस बाबत सभी को
जागरूक किया जाना चाहिए।
ताकि
यह जीवन को न डसे !
बल्कि
यह अनुशासित होकर सृजन का पथ बने !!
२८/०२/२०२५.
भोजन भट्ट
खा गया चटपटे खाद्य पदार्थ !
ले ले कर स्वाद
झटपट !
अब ले रहा है
नींद में झूट्टे
और थोड़ी थोड़ी देर के बाद
बदल रहा है करवट,
रेल सफर के दौरान।
चेहरा उसका बता रहा
वह ज़िन्दगी के सफर में भी है
संतुष्ट !
आदमी जिसे
भोजन से मिल जाए
परम संतुष्टि !
हे ईश्वर!
ऐसे देव तुल्य पुरुष पर
बनाए रखना
सर्वदा सर्वदा
अपनी कृपा दृष्टि !
देश दुनिया के बाशिंदों को
दिलाते रहना हमेशा
खाद्य संतुष्टि !
हम जैसे प्राणी भी
श्रद्धापूर्वक करते रहें
ईश्वरीय चेतना की स्तुति
ताकि सभी संतुष्ट जन
जीवन यात्रा के दौरान
अनुभूत कर सकें
दिव्यता से परिपूर्ण
अनुभूति !
वे खोज सकें
मार्ग दर्शक विभूति !!
२७/०२/२०२५.
बचपन में
परिश्रम करने की
सीख
अक्सर दी जाती है,
परिश्रम का फल
मीठा होता है,
बात बात पर
कहा जाता है।
बचपन
खेल कूद ,
शरारतों में बीत जाता है।
देखते देखते
आदमी बड़ा होते ही
श्रम बाज़ार में
पहुँच जाता है,
वहाँ वह दिन रात खपता है,
फिर भी उसे मीठा फल
अपेक्षित मात्रा में
नहीं मिलता है,
परिश्रम के बावजूद
मन में कुछ खटकता है।
श्रम का फल
ठेकेदार बड़ी सफाई से
हज़म कर जाता है।
यहाँ भी पूंजीवादी
बाज़ी मार ले जाता है।
मेहनत मशक्कत करनेवाला
प्रतिस्पर्धा में टिकता ज़रूर है।
शर्म छोड़कर बेशर्म बनने वाला
बाज़ार में सेंध लगा लेता है,
हाँ,वह मज़दूर से तनिक ज़्यादा कमा लेता है !
नैतिकता की दृष्टि से वह भरोसा गंवा लेता है!!
शर्म छोड़कर कुछ जोखिम उठाने वाला
श्रमिक की निस्बत
अपना जीवन स्तर थोड़ा बढ़िया बना लेता है !
वह अपनी हैसियत को ऊँचा उठा लेता है !!
आज समाज भी श्रम की कीमत को पहचाने।
वह श्रमिकों को आगे ले जाने,
खुशहाल बनाने की
कभी तो ठाने।
वे भी तो कभी पहुंचें
जीवन की प्रतिस्पर्धा में
किसी ठौर ठिकाने।
आज सभी समय रहते
श्रम की कीमत पहचान लें ,
ताकि जीवन धारा नया मोड़ ले सके।
श्रमिक वर्ग में असंतोष की ज्वाला कुछ शांत रहे ,
वे कभी विध्वंस की राह चलकर अराजकता न फैलाएं।
काश! सभी समय रहते श्रमिक को
श्रम की कीमत देने में न हिचकिचाएं।
वे जीवन को सुख समृद्धि और संपन्नता तक पहुँचाएं।
२७/०२/२०२५.
बेशक
कटाक्ष काटता है!
यह कभी कभी क्या अक्सर
दिल और दिमाग पर खरोचें लगाकर
घायल करता है !
पर स्वार्थ रंगी दुनिया में
क्या इसके बगैर कोई काम सम्पन्न होता है ?
आप कटाक्ष करिए ज़रुर !
मगर एक सीमा में रहकर !!
यदि कटाक्ष ज्यादा ही काम कर गया
तो कटाक्ष का पैनापन सहने के लिए
संयम के साथ
स्वयं को रखिए तैयार !
ताकि जीवन यात्रा का
कभी छूटे न आधार।
कभी क्रोधवश
आदमी करने लगे उत्पात।
२६/०२/२०२५.
आदमी
अपने इर्द गिर्द के
घटना चक्र को
जानने के निमित्त
कभी कभी
हो जाता है व्यग्र और बेचैन।
भूल जाता है
सुख चैन।
हर पल इधर उधर
न जाने किधर किधर
भटकते रहते नैन।
यदि वह स्वयं की
अंतर्निहित
संभावनाओं को
जान ले ,
उसका जीवन
नया मोड़ ले ले।
आदमी
बस
सब कुछ भटकना छोड़ कर
खुद को जानने का
प्रयास करे !
ताकि जीवन में
सकारात्मक घटनाक्रम
उजास बन कर
पथ प्रदर्शित कर सके !
मन के भीतर से
अंधेरा छंट सके!!
२५/०२/२०२५.
हरेक की चाहत है कि
उसके जीवन में
कभी न रहे
कोई कमी।
उसे मयस्सर हों
सभी सुख सुविधाएं
कभी न कभी।
लेकिन जीवन यात्रा में
शराब की लत
आदत में
शुमार हो जाती है,
तब यह एक श्राप सी होकर
जोंक की तरह
आदमी का खून पीने के निमित्त
उसके वजूद से
लिपट जाती है।

यही नहीं
कभी कभी
शबाब भी उसकी
चेतना से लिपट जाता है,
उसे अपनी खूबसूरती पर
अभिमान हो जाता है,
उसे अपने सिवा कोई दूसरा
नज़र नहीं आता है,
वह औरों के वजूद को
कभी न कभी
नकारने लग जाता है,
आदमी की अकाल पर
पर्दा पड़ जाता है।
उसे हरपल मदिरा से भी
अधिक नशीला नशा भाता है,
वह शानोशौकत और आडंबर में
निरन्तर डूबता जाता है।
इस दौर में आदमी का
सौभाग्य
हरपल हरक़दम उसे
विशिष्टता का अहसास कराता है,
वह एक मायाजाल में फंसता चला जाता है।

शराब और शबाब
जिन्दगी का सत्य नहीं !
इस जैसा भ्रम
झूठ में भी नहीं !!
इस दौर के
आदमी का सच यह है कि
आज जीवन में
सच और झूठ
मायावी संसार को लपेटे
झीने झीने पर्दे हैं
जिनसे हमारे जीवनानुभव जुड़े हैं।
हम सब दुनिया के
मायावी बाज़ार में
लोभ और संपन्नता के आकर्षणों से
बंधे हुए निरीह अवस्था में खड़े हैं।
कभी कभी
अज्ञानतावश
हम आपस में ही लड़ पड़ते हैं,
अनायास जीवन में दुःख पैदा कर
जीवन यात्रा में जड़ता उत्पन्न कर देते हैं।
ये हमारे जीवन का
विरोधाभास है
जो हमें भटकाता रहा है,
अच्छी भली जिंदगी को
असहज बनाता रहा है।
इस मकड़जाल से बचना होगा।
कभी न कभी
नकारात्मकता छोड़
सकारात्मकता से जुड़ना होगा।
हमें जीवन ऊर्जा को संचित करने के लिए
सादा जीवन, उच्च विचार की
जीवन पद्धति की ओर लौटना होगा,
ताकि जीवन के प्रवाह में
बेपरवाह होने से बच सकें,
जीवन को पूरी तन्मयता से
जीने का सलीका सीख सकें।
...और कभी जीवन में
कोई कमी हमें खले नहीं!
सभी सुख समृद्धि
और
संपन्नता को छूएं तो सही!!
२४/०२/२०२५.
यह जीवन अद्भुत है।
इसमें समय मौन रहकर
जीव में समझ बढ़ाता है।
यहाँ कठोरता और कोमलता में
अंतर्संघर्ष चलता है।
कठोर आसानी से कटता नही,
वह बिना लड़े हार मानता नहीं,
उसे हरदम स्वयं लगता है सही।
कोमल जल्द ही पिघल जाता है,
वह सहज ही हिल मिल जाता है,
वह सभी को आकर्षित करता है।
उसके सान्निध्य में प्रेम पलता है।
कठोर भी भीतर से कोमल होता है,
पर जीवन में अहम क़दम क़दम पर
उसका कभी कभी आड़े आ जाता है।
सो ,इसीलिए वह खुद को
अभिव्यक्त नहीं कर पाता है।
कठोर कोमलता को कैसे सहे?
सच है, उसके भीतर भी संवेदना बहे।
कठोरता दुर्दिनों में बिखरने से बचाती है,
जबकि कोमलता जीवन धारा में
मतवातर निखार लेकर आती रही है।
कठोर कोमलता को कैसे सहे ?
वह बिखरने से बचना चाहता है,
वह हमेशा अडोल बना रहता है।
24/02/2025.
देखते देखते
जीवन के रंगमंच पर
बदल जाता है
परिदृश्य।
जीवन
जो कभी लगता है
एक परिकथा जैसा,
इसमें
स्वार्थ का दैत्य
कब कर लेता है
प्रवेश,
ख़ास भी आम
लगने लग जाता है,
देखते देखते
मधुमास पतझड़ में
तब्दील हो जाता है,
जीव में भय भर जाता है।
वह मृत्य के
इंतज़ार में
धीरे धीरे गर्क हो जाता है।
अब तो बस
स्वप्नावस्था में
वसंत आगमन का
ख्याल आता है।
देखते देखते ही
जीवन बीत जाता है,
नव आगंतुकों के स्वागतार्थ
यह जीवन का
अलबेला रंगमंच
खाली करना पड़ जाता है,
प्रस्थानवेला का समय
देखते देखते आन खड़ा होता है
जीवन के द्वार पर
यह जीवन का दरबार
बिखर जाता है।
कल कोई नया राजा
अपना दरबार लगाएगा,
जीवन का परिदृश्य
चित्रपट्ट की
चलती फिरती तस्वीरों के संग
फिर से एक नई कहानी दोहराएगा।
इसका आनंद और लुत्फ़
कोई तीसरा उठाएगा।
समय ऐसे ही बीतता जाएगा।
वह सरपट सरपट दौड़ रहा है।
इसके साथ साथ ही वह
जीवन से मोह छोड़ने को कह रहा है।
२४/०२/२०२५.
अब तक सभी
अपने अपने कर्म चक्र से
बंध कर
जीवन को साधे हुए हैं ,
आगे बढ़ने के लिए
संयम के साथ
स्वयं को
तैयार कर रहें हैं।
सभी को पता है अच्छी तरह से ,
जो बीजेंगे , वही काटेंगे !
यदि कर्म नहीं करेंगे ,
तो आगे कैसे बढ़ेंगे !
जीवन चक्र से मुक्ति की राह में
अनजाने ही एक बाधा खड़ी कर लेंगे।
सो सब अपनी सामर्थ्य से
भरपूर काम कर रहे हैं ,
इस जीवन में सुख के बीज बो रहे हैं ,
बल्कि आगे की भी तैयारी कर रहे हैं।
सनातन में कर्म चक्र
सतत चलायमान है ,
जन्म मरण का खेल भी
कर्म के मोहरों से चल रहा है।
अरे मन ! इस जीवन सत्य को समझ के
आगे बढ़ , कर्म करने से पीछे न हट।
व्यर्थ ठाली बैठे रहने से टल।
कर्म करने से न डर, मतवातर आगे बढ़।
आगे बढ़ने की लगन अपने भीतर भर!
इस जन्म को यों ही न व्यर्थ कर !!
२३/०२/२०२५.
श्राद्ध पक्ष में
परंपरा है देश में
अपने पुरखों को याद करते हुए
भोजन जिमाने की !
अपने पुरखों से जुड़ जाने की !

किसी ने कहा था ,
" गुरु जी! हम ब्राह्मण हैं। ..."
मेरे मुखारविंद से
बरबस निकल पड़ा था ,
" यहां पढ़ने वाले
ब्रह्मचारी ही असली ब्राह्मण है
चाहे ये किसी भी समूह से संबद्ध हों।
अतः क्षमा करें।"
यह कह मैं अपने काम में
हो गया था तल्लीन।
फिर अचानक मन में
कुछ दया भाव उत्पन्न हुआ।
बाहर जाकर देखा तो वह भद्र पुरुष जा चुका था।
सेवा का एक मौका हाथ से निकल चुका था।
मैं देर तक पछताया था।
मैंने याचक को अज्ञानवश द्वार से लौटाया था।
एक घटना ने घट कर मुझे कुछ सिखाया था
कि आगे से अज्ञान की पोटली  
मन और चेतना में लिए न फिरो,
बल्कि अपने को मेरे तेरे के भावों से ऊपर उठाओ,
धरा को समरसता की दृष्टि संचित कर अनुपम बनाओ।
हो सके तो लोक जीवन के साथ
स्वार्थहीन होकर रिश्ता जोड़ जाओ।
२३/०२/२०२५.
स्वप्न में घटी घटना की स्मृति पर आधारित ।
आज समाज में
असंतोष की आग
दावानल बनी हुई
सब कुछ भस्मित करती
जा रही है ,
उसके मूल्य
दिनोदिन
अवमूल्यन की राह
बढ़ चले हैं,
सब भोग विलास की राह पर
चल पड़े हैं।
सभी के भीतर
डर,आक्रोश, सनसनी
उत्पन्न होती जा रही है ,
हर वर्ग में तनातनी
बढ़ती जा रही है।
ऐसे समय में
समाज क्या करे ?
वह अपने नागरिकों में
कैसे सार्थक सोच विकसित करे ?
वह किन से
सुख समृद्धि और संपन्नता की आस करे
ताकि उसका मूलभूत ढांचा
सकारात्मकता को
बरकरार रख सके ,
इसमें दरारें न आ सकें।
इसमें और अधिक बिखराव न हो।
कहीं कोई गुप्त तनाव न हो ,
जिससे विघटन की रफ्तार कम हो सके ,
समाज में मूल्य चेतना बची रह सके।

आज समाज
क्यों न स्वयं को
पुनर्संगठित करे !
समाज
निज को
समयोचित बनाकर
अपने विभिन्न वर्गों में
असंतोष की ज्वाला को
नियंत्रण में रखने के लिए
निर्मित कर सके कुछ सार्थक उपाय !
वह समायोजन की और बढ़े !
इसके साथ ही वह अंतर्विरोधों से भी लड़े !!
ताकि सब साम्य भाव को अनुभूत कर सकें !!
२३/०२/२०२५.
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