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यदि आदमी कभी
अपनी जेहादी मानसिकता को भूल जाए ,
तो कितना अच्छा हो
उसका रोम रोम भीतर तक
कमल सा खिल जाए !
वह बगैर किसी कुंठा और तनाव के
जीवन पथ पर आगे बढ़ पाए !
कितना अच्छा हो
आदमी बस खुद को समझ जाए ,
तो उसका जीवन स्वयंमेव सुधर जाए।
वह निर्मलता का मूल जान जाए ।
वह मन की मलिनता को दूर कर पाए।
वह बाहर और भीतर के प्रदूषण से लड़ पाए।
वह जीवन में कुंदन बन जाए।
२१/०२/२०२४.
मेरा पुत्र
जो है पूरा देसी
पर नाम है जिसका
अंग्रेज सिंह।
कुछ समय पहले
ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जाने की
थी जिसकी ख्वाइश!
बहुत सारा धन कमाने का
था जिसका ख्वाब!
घर पर अपने ही ढंग से रहता था ।
जिस का रहन सहन
उसके मां बाप को तनिक नहीं भाता था।
आजकल थोड़ा अक्लमंद बन गया है।

जब से अमेरिका से
मेरे भारतीय भाई लोग
डोनाल्ड ट्रंप की
अमेरिका फर्स्ट की
नीति की वज़ह से
भारत वापसी को हुए हैं
मजबूर !
जो अच्छे मज़दूर और
कामयाब व्यापारी बनने की
योग्यता रखते हैं !
उम्मीद है
वे अब सही राह चलेंगे ,
भारत की तरक्की के लिए
दिन रात उद्यम करेंगे !
भारत को
भारत प्रथम की नीति पर
चलने की राह दिखा कर
फिर से
सुख , समृद्धि और संपन्नता की
ओर ले जाने का प्रयास करेंगे।

अंग्रेज सिंह
अब भारत में रहकर
अपना काम धंधा जमाना चाहता है,
वह ज़माने के पीछे न भाग
अपना दिमाग लगा
जीवन में
कुछ करना चाहता है ,
मेहनत कर के कुछ निखरना चाहता है।

अपने अंग्रेज सिंह के
दादा स्वदेश सिंह
अब उसे कहते हैं कि
अंग्रेज !तुम इतना धन संचित करो
कि डोनाल्ड ट्रंप के देश ही नहीं ,
दुनिया भर के देशों में
टूरिस्ट बन सैर सपाटा करो।
उनकी आर्थिकता को अपने ढंग से बढ़ाओ।
यह नहीं कि विदेश से शर्मिंदा हो कर
अपने देश में लौट के आओ।
बल्कि अपने साथ
एक विदेशी नौकर
मेहनत मशक्कत करने के लिए
लेकर आओ।
भारत का आदर और सम्मान
फिर से बढ़ाओ।
२०/०२/२०२५.
आज गुड़िया
पहली बार जा रही है
गुरु की नगरी
अमृतसर
वहां वह अपने साथियों के साथ
भगत पूर्ण सिंह की
कर्मस्थली जाएगी।
अपने भीतर
वंचितों , शोषितों , अपाहिजों के
प्रति करुणा और सद्भावना की
अमृत बूंदें लेकर आएगी ,
अपने भीतर संवेदना का
अमृत संचार लेकर आएगी।

पहली बार
जब मैं दरबार साहिब गया था
तो मुझे वहां दिव्य अनुभूति हुई थी।
उम्मीद है कि
गुड़िया वहां से दिव्य दृष्टि लेकर आएगी ,
सच्चा इंसान बनकर
अपना जीवन सेवा कार्यों में लगाएगी।

वहीं जालियां वाला बाग भी है
देश की आज़ादी में
एक विलक्षण घटना का साक्षी।
एक देशभक्तों का वध स्थल
जिसने देश समाज और दुनिया को
दिया था झकझोर !
और फिर जल्दी आई थी
आज़ादी की भोर !

वहीं पास ही है
दुर्ग्याना मंदिर
जहां बहता है
आस्था का सैलाब
जिससे जीवन में
आ सकता है ठहराव
आदमी समय के बहाव को
महसूस कर
जीवन में
आगे बढ़ने का निश्चय कर
बना सकता है स्वयं को
समाजोपयोगी और निडर।

गुड़िया
आज अभी अभी गई है
पावन नगरी
अमृतसर।
उम्मीद है कि
वह जीवन के लिए
वहां से
उपयोगी
जीवन दृष्टि संचित करके आएगी,
अपने जीवन को सार्थकता से
जोड़ पाएगी ,
स्वयं को सकारात्मक बनाएगी।
२०/०२/२०२५.
जब चाहकर भी
नींद नहीं आती,
सोचिए जरा
उस समय
क्या जिन्दगी में
कुछ अच्छा लगता है ?
जिन्दगी का पल पल
थका थका सा लगता है।
नींद की चाहत
शेयर मार्केट की तेज़ी सी
बढ़ जाती है।
ऐसे समय में
सोना अर्थात नींद की चाहत
सोने से भी
अधिक मूल्यवान लगने लगती है।
आंखों की पलकों पर
नींद की खुमारी दस्तक
देने लगे तो सब कुछ
अच्छा अच्छा लगता है।
समय पर सो पाना ही
जीवन में सच्चा
और आनन्ददायक ,
सुख का अहसास
होने की प्रतीति कराने लगता है।
समुचित नींद न मिल पाए
तो सचमुच आदमी को
झटका लगता है ,
उसे जीवन में
सब कुछ भटकाता हुआ ,
खोया खोया सा लगता है।
पल पल मन में कुछ खटकता है।
जीवन यात्रा में भीतर धक्का लगता सा लगता है।
नींद का इंतज़ार बढ़ जाता है।
आदमी को कुछ भी नहीं भाता है ,
भीतर का सुकून कहीं लापता हो जाता है।
१९/०२/२०२५.
ਇਹ ਦਰਦ ਦਾ ਅਹਿਸਾਸ ਹੀ ਹੈ
ਜੋ ਸਾਨੂੰ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ ਖ਼ਾਸ।
ਰਿਸ਼ਤਾ ਦਰਦ ਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਜੀਬੋ ਗ਼ਰੀਬ
ਜਿੰਨਾ ਦਰਦ ਵੱਧਦਾ ਹੈ ,
ਇਨਸਾਨ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਹਕੀਕਤ ਦੇ ਕਰੀਬ।
ਭਾਵੇਂ ਦਰਦ ਦਿਲ ਦਾ ਹੋਵੇ ਜਾਂ ਪਿੱਠ ਦਾ ਹੋਵੇ ,
ਇਹ ਆਪਣਾ ਇਲਾਜ ਲੱਭ ਲੈਂਦਾ ਹੈ,
ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਅੱਗੇ ਵਧਣ ਦੀ ਰਾਹ ਲੱਭ ਲੈਂਦਾ ਹੈ।
ਬੁੜਾਪੇ ਵਿੱਚ ਦਰਦ ਉਦਾਸੀ ਦੀ ਵਜ੍ਹਾ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ,
ਜਵਾਨੀ ਵਿੱਚ ਦਰਦ ਸਾਨੂੰ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ ,
ਬਚਪਨ ਦਾ ਦਰਦ ਸੁਪਨਿਆਂ ਵਿੱਚ ਆ ਆ ਕੇ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਜਿਉਣ ਦੀ ਵਿਉਂਤ ਦੱਸਦਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਦਰਦ ਇਨਸਾਨ ਦਾ ਦੁਸ਼ਮਣ ਨਹੀਂ ਦੋਸਤ ਹੈ ,
ਇਹ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੀ ਰਾਹਾਂ ਵਿੱਚ ਅਕਲਮੰਦ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ।
ਇਹ ਸੁੱਖ ਦੀ ਭਾਲ ਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਬਣ ਕੇ
ਜੀਵਨ ਯਾਤਰਾ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਵਧਾਉਂਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ।
ਇਹ ਦਰਦ ਹੀ ਹੈ
ਜਿਹੜਾ ਇਨਸਾਨ ਨੂੰ
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਸਿਖਾਉਂਦਾ ਹੈ ,
ਇਹ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਮੰਜ਼ਿਲ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਾਉਂਦਾ ਹੈ।

ਕਈ ਵਾਰੀ ਦਰਦ ਦਾ ਰਿਸ਼ਤਾ
ਇਨਸਾਨਾਂ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ
ਇੱਕ ਦਵਾ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ,
ਇਹ ਅੰਦਰੋਂ ਟੁੱਟੇ ਹੋਏ ਇਨਸਾਨਾਂ ਦੇ ਅੰਦਰ
ਜਿਉਣ ਦੀ ਤਾਂਘ ਪੈਦਾ ਕਰ
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸੰਚਾਰ ਕਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ,
ਦਰਦ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਜੀਵਨ ਜਾਂਚ ਸਿਖਾਉਂਦਾ ਹੈ।
ਦਰਦ ਸਿਰਜਣਾ ਦਾ ਮੂਲ ਹੈ ,
ਕਦੀ ਕਦੀ ਇਸ ਦੇ ਅੱਗੇ
ਸਾਰੇ ਸੁੱਖ ਤੇ ਆਰਾਮ
ਲੱਗਣ ਲੱਗਦੇ ਸਮੇਂ ਦੀ ਧੂੜ ਹਨ।
18/02/2025.
आदमी
दुनिया में
अकेला न रहे
इसके लिए
वह खुद को
अपने जीवन में
छोटे छोटे कामों में
व्यस्त रखने का
प्रयास करता रहे
ताकि जीवन में
अकेलापन
दोधारी तलवार सा होकर
पल प्रति पल
काटता हुआ सा न लगे।

अभी अभी
अखबार में
एक हृदय विदारक
ख़बर पढ़ी है कि
शहर के एक वैज्ञानिक ने
अपने आलीशान मकान में
अकेलपन को न सहन कर
आत्महत्या कर ली है।
परिवार विदेश में रहता है
और वह अकेले अपने घर में
एक निर्वासित जीवन कर
रहे थे बसर,
वे जीवन में
निपट अकेले होते चले गए ,
फलत: मौत को गले लगा गए।

हम कैसी
सुख सुविधा और संपन्नता भरपूर
जीवन जीने को हैं बाध्य
कि जीवन बनता जा रहा है कष्ट साध्य ?
आदमी सब कुछ होते हुए भी
दिनोदिन अकेला पड़ता जा रहा है।
वह खुल कर खुद को
अभिव्यक्त नहीं कर पा रहा है।
वह भीतर ही भीतर
अपनी तन्हाई से घबराकर
मौत को गले लगा रहा है।

हमारे यहां
कुछ जीवन शैली
इस तरह विकसित होनी चाहिए
कि आदमी अकेला न रहे ,
वह अपने इर्द गिर्द बसे
मानवों से हँस और बतिया सके।
कम से कम अपने मन की बात बता सके।
१८/०२/२०२५.
आदमी के इर्द गिर्द
जब अव्यवस्था फैली हो
और उसने विकास को
लिया हो जड़ से जकड़।
हर पल दम घुट रहा हो
तब आदमी के भीतर
गुस्सा भरना जायज़ है ।
उसे प्रताड़ित करना
एकदम नाजायज़ है।

देश अति तीव्र गति से
सुधार चाहता है ,
इस दिशा में
संकीर्ण सोच और स्वार्थ
बन जाते बहुत बड़ी बाधाएं हैं,
जिन्हें लट्ठ से ही साधा जा सकता है।

नाजायज़ खर्चे
अराजकता को
बढ़ावा देते हैं ,
ये विकास कार्यों को
रोक देते हैं।
अर्थ व्यवस्था की
श्वास को
रोकने का
काम करते हैं ,
ये व्यर्थ के अनाप शनाप ख़र्चे
न केवल देश को  
मृत प्रायः करते हैं ,
बल्कि
ये देश को निर्धन करते हैं।
ये देश दुनिया को निर्धन रखने का
दुष्चक्र रचते हैं ,
इसे रोकने का
प्रयास किया जाना चाहिए ,
ताकि देश
विपन्नावस्था से
बच सके ,
आर्थिक दृष्टि से
मजबूती हासिल कर सके।


देश हर हाल में
सुख सुविधा, संपन्नता और समृद्धि को बढ़ाए
इसके लिए सब यथा शक्ति प्रयास करें ,
अन्यथा जीवन नरक तुल्य लगने लगेगा
इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
बस इस डर से
आम और ख़ास आदमी का
गुस्सा करना एकदम जायज़ है,
इस सच से आँखें मूंदे रहना ठीक नहीं।
समय रहते नहीं चेतना , सोए रहना नाजायज है।

अव्यवस्था और अराजकता
अब किसी को बरदाश्त नहीं।
इससे पहले की गुस्सा विस्फोटक बने ,
सब समय रहते अपने में सुधार करें
ताकि देश और समाज पतन के गड्ढे में गिरने से बच सकें।
सब गुस्सा छोड़ शांत मना होकर जीवन पथ पर बढ़ सकें।
१७/०२/२०२५.
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