जन्म से अब तक
समय को
खूब खूब
टटोला है
मगर
कभी अपना मुंह
सच के
सम्मानार्थ
नहीं खोला है
बेशक
आत्मा के धुर अंदर
जो समझता रहा
अज्ञानतावश
खुद को
धुरंधर।
अचानक
ठोकरें लगने से
जिसकी आंखें
अभी अभी खुली हैं।
सच से सामना
बेशक सचमुच
कड़वा होता है ,
यह कभी-कभी सुख की सुबह
लेकर आता है ,
जीवन को
सुख समृद्धि और सम्पन्नता भरपूर
कर जाता है।
अब
मेरे भीतर पछतावा है।
कभी कभी
दिखाई देता
अतीत का परछावा है।
मैं खुद को
सुधारना चाहता हूं ,
मैं बिखरना नहीं चाहता हूं।
इसके लिए
मुझे अपने भीतर पड़े
डरों पर
विजय पानी होगी ,
सच से जुड़ने की
उत्कट अभिलाषा
जगानी होगी।
तभी डर कहीं पीछे छूट पाएगा।
वह सच के आलोक को
अपना मार्गदर्शक
बनता अनुभूत कर पाएगा।
दोस्त !
यह सही समय है ,
जब डर से छुटकारा मिले ,
सच से जुड़ने का
संबल और नैतिक साहस
भीतर तक
जिजीविषा का अहसास कराए
ताकि जीवन सकारात्मक सोच से जुड़ सके ,
यह सार्थक दिशा में मुड़ सके,
यह भटकने से बच सके।
ऐसा कुछ कुछ
अचानक
समय ने चेताते हुए कहा ,
और मैं संभल गया ,
यह संभलना ही
अब संभावना का द्वार बना है।
१८/०४/२०२५.