Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
अहं जरूरी है
मगर
इतना भी
जरूरी नहीं कि
वह सही को
करने लगे
मटिया मेट।
अहंकार भरा मन
कभी न कभी
आदमी को
औंधे मुंह गिरा देता है ,
वह भटकने के लिए
कभी भी कर सकता है बाध्य।
फिलहाल इसे कर लो सांध्य
ताकि गंतव्य तक
बिना किसी बाधा के
पहुंच सको ,
जीवन धारा के
अंग संग बह सको।
जीवन में
उतार चढ़ाव और कष्टों को
चंचल मन के भीतर
संयम भर कर सह सको।
अहंकार भरे मन पर काबू
सहिष्णु बन कर पाया जाता है ,
सतत प्रयास करते हुए
निज को
जीवन रण में
विजयी बनाया जाता है ,
जीवन को उत्कृष्टता का
संस्पर्श कराया जाता है ,
इसे सकारात्मक और सार्थक दिशा देकर
सुख समृद्धि और सम्पन्नता
भरपूर बनाया जा सकता है।
अंहकार भरा मन
किसी काम का नहीं ,
बल्कि इसे
विनम्रता से
जीवन में आगे बढ़ने की
दो सीख
ताकि यह सके रीत ,
खुद को खाली कर
रख सके स्वयं को ठीक।
वरना पतन निश्चित है !
जीवन में भय का आगमन
कर ही देगा
एक दिन
सर्वस्व को असुरक्षित।
फिर कैसे रख पाएंगे हम सब
संस्कृति व संस्कारों को
संरक्षित और संवर्धित?
२१/०४/२०२५.
अचानक
अप्रत्याशित
कुदरत का कहर
जब तब , कभी टूटता है।
यह सबसे पहले
नास्तिक का गुरूर तोड़ता है।
आस्तिक फिर भी
दुःख के बावजूद
अपने मन को समझाता है।
वह जल्दी से
जीवन को
पुनर्व्यवस्थित
करने में जुट जाता है।
कुदरत के कहर को
सहने के अलावा
क्या हम सब के पास
कोई चारा है ?
आदमी तो बस बेचारा है !
है कि नहीं ?
जीवन में कुदरत से
तालमेल बनाकर चलो ,
ताकि कुदरत के
प्रकोप और कहर से बच सको।
२०/०४/२०२५.
कितना अच्छा हो
सब कुछ सन्तुलन में रहे।
कोई भी अपने आप को
असंतुलित न करे।
इसके लिए
सब अपने मूल को जानें,
भूल कर भी
अज्ञान को चेतना पर
हावी न होने दें।
सब कुछ स्वाभाविक गति से
अपने मंतव्य और गंतव्य की ओर बढ़ें।
सब शांत रहें।
शांति को अपने भीतर समेट
परम की बाबत
चिंतन मनन करें।
सब संत बन कर
सद्भावना से
अपने आस पास को प्रेरित करें।
वे ज्ञान की ज्योति को
सभी के भीतर जागृत करें।
वे सभी को समझाएं कि
इस धरा पर उपस्थित आत्माएं
सब दीप हैं।
सब अपने प्रयासों से
अपने भीतर ज्ञान  का प्रकाश भरें
ताकि अज्ञान जनित भय कुछ तो कम हो सके।
लोग अधिक देर तक सोये न रहें।
वे जागृत होकर सुख समृद्धि और सम्पन्नता को वर सकें।
वे कण कण में परम की उपस्थिति को अनुभूत कर सकें।
वे अपना जीवन सार्थक कर सकें।
वे जीवन सत्य को जान सकें।
वे अपनी मूल पहचान से वंचित न रहें।
वे यथासमय अपनी शक्तियों और सामर्थ्य को संचित कर सकें।
वे संतुलित जीवन को जीना सीख सकें।
वे यह जीवन सत्य समझें कि
जीवन में
यदि संतुलन है
तो ही सुरक्षा है ,
अन्यथा फैल सकती
चहुं ओर अव्यवस्था है।
अराजकता कभी भी
जीवनचर्या को असंतुलित कर सकती है ,
सुख समृद्धि और सम्पन्नता को लील सकती है।
यह शांति के मार्ग को अवरूद्ध कर सकती है।
यह आदमी को आदमी के विरुद्ध खड़ा कर सकती है।
अतः जीवन में संतुलन जरूरी है।
मनुष्य के जीवन में संयम अपरिहार्य है।
जो सबको स्वीकार्य होना चाहिए।
इसके लिए
सभी को अपना अहंकार भुलाकर
संत समाज से जुड़ना होगा
क्यों कि
संत संयमित जीवन को जीते हैं,
वे शांतमय मनोदशा में की निर्मिति करते हैं।
वे मनुष्य को उसकी स्वाभाविक परिणति तक ले जाने में सक्षम हैं।
वे संतुलित
जीवन दृष्टि को
स्पष्ट रूप से
अपनी कथनी और करनी से
एक करते हुए दिखलाते हैं ,
उसे व्यावहारिक बनाते हुए जीवन यात्रा को आगे बढ़ाते हैं।
२०/०४/२०२५.
वक़्फ के मायने क्या हैं ?
वक़्फ हुआ कि बवाल हुआ ?
यह सवाल क्यों अब जेहन में
एक पन्ने सा है फड़फड़ा रहा ?
क्या वाक़िफ है जो वक़्फ का ,
उसे अवाम का अहसास उकसा रहा?
वाक़िफ हो अगर तुम ख़ुदा के
तो उसकी दुनिया में क्यों आग लगा रहे ?
सड़कों पर उतर कर क्यों अराजकता फैला रहे ?
यकीन तुम निज़ाम के फैसलों पर
पहले करो जरा।
निज़ाम अवाम के खिलाफ़ नहीं है ,
वह ज़हालत के खिलाफ़ जरूर है ,
इसने तरक्की की राह में रुकावट खड़ी की हुई है।
वह मुफलिसों को उनके हक़ की बाबत
अहसास कराना चाहता है।
उनके हकों पर
जिन उमरा अमीरों ने
आज तक कब्ज़ा कर रखा है ,
निज़ाम उन्हें आज़ादी का अहसास करवाना चाहता है।
भले उसे कोई बड़ी भारी कुर्बानी देनी पड़े।
बाकी ज़िंदगी ग़ुरबत में बितानी पड़े।
कौम कुर्बानियों से मुस्लसल आगे बढ़ी है।
आज तारीख़ में एक ख्याल जुगनू सा जगमगा कर
चिराग़ तले अंधेरे के सच को ढूंढने निकला है,
आप उसका दिल से एहतराम कीजिए।
वाक़िफ हो  अगर तुम ख़ुदा के
तो उसके बन्दों पर यकीन कीजिए।
खुद को मौकापरस्ती और फिरकपरस्ती के
कैदखानों में हरगिज़ हरगिज़ न बंद कीजिए।
वक़्त की नाजुकता को महसूस कर के कोई फ़ैसला कीजिए।
१९/०४/२०२५.
बेशक
आपकी निगाह
कितनी ही
पाक साफ़ हों ,
जाने अनजाने ही सही
यकायक
यदि कोई गुनाह
हो ही जाए तो
यक़ीनन
मन और तन में
तनाव
मतवातर बढ़ता जाता है ,
इस गुनाहगार होने का वज़न
ज़िन्दगी को असंतुलित
करता जाता है।
सच
बोलने से पहले
अपने आप को तोलने से
गुनाह करने के अहसास से
झुके
मन के पलड़े को
संतुलित
करता जाता है।
यह जिंदगी
बगैर मकसद
एकदम बेकार है।
कर्म करना ,
फल की चिंता न करना
जीवन को सार्थकता की ओर
ले जाता है ,
यह निरर्थकता के
अहसास
और गुनाहगार
बनने से भी बचाता है।
ऐसा जीवन ही
हमें जीवन सत्य से
सतत जोड़ता जाता है ,
जीवन पथ को
निष्कंटक बनाता है।
गुनाह का लगातार अहसास
आदमी को
भटकाता रहा है ,
यह मन पर वज़न बढ़ा कर
आत्मविश्वास को
खंडित कर देता है ,
आदमी को
अपरोक्ष ही
दंडित कर देता है।
इस अहसास का शिकार
न केवल कुंठित हो जाता है
बल्कि वह बाहर भीतर तक
कमजोर पड़कर
जीवन रण में हारता जाता है।
१९/०४/२०२५.
जन्म से अब तक
समय को
खूब खूब
टटोला है
मगर
कभी अपना मुंह
सच के
सम्मानार्थ
नहीं खोला है
बेशक
आत्मा के धुर अंदर
जो समझता रहा
अज्ञानतावश
खुद को
धुरंधर।
अचानक
ठोकरें लगने से
जिसकी आंखें
अभी अभी खुली हैं।
सच से सामना
बेशक सचमुच
कड़वा होता है ,
यह कभी-कभी सुख की सुबह
लेकर आता है ,
जीवन को
सुख समृद्धि और सम्पन्नता भरपूर
कर जाता है।
अब
मेरे भीतर पछतावा है।
कभी कभी
दिखाई देता
अतीत का परछावा है।
मैं खुद को
सुधारना चाहता हूं ,
मैं बिखरना नहीं चाहता हूं।
इसके लिए
मुझे अपने भीतर पड़े
डरों पर
विजय पानी होगी ,
सच से जुड़ने की
उत्कट अभिलाषा
जगानी होगी।
तभी डर कहीं पीछे छूट पाएगा।
वह सच के आलोक को
अपना मार्गदर्शक
बनता अनुभूत कर पाएगा।

दोस्त !
यह सही समय है ,
जब डर से छुटकारा मिले ,
सच से जुड़ने का
संबल और नैतिक साहस
भीतर तक
जिजीविषा का अहसास कराए
ताकि जीवन सकारात्मक सोच से जुड़ सके ,
यह सार्थक दिशा में मुड़ सके,
यह भटकने से बच सके।
ऐसा कुछ कुछ
अचानक
समय ने चेताते हुए कहा ,
और मैं संभल गया ,
यह संभलना ही
अब संभावना का द्वार बना है।

१८/०४/२०२५.
अचानक
यदि कोई किसी को
रंगे हाथ
गड़बड़ी करते हुए
पकड़ ले ,
तो यह अहसास
आदमी के भीतर
उत्पन्न कर देता है
सकपकाहट।
आदमी को
झिझक होने लगती है ,
वह ठीक से
काम करता है ,
और जल्दी से
लापरवाही भी
नहीं करता।
वह समय रहते
है संभल जाता।
उसका जीवन
हैं बदल जाता।
सकपकाना भी
जीवन का हिस्सा है ,
यह सच में
आदमी को
सतर्क करता है ,
ताकि
वह
हड़बड़ी करने से
खुद को
रोक पाए ,
बिना किसी रुकावट
मंजिल तक
पहुंच पाए।
१७/०४/२०२५.
Next page