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दोस्त,
करो कुछ ऐसा उपाय
उदास और हताश चेहरे
कमल से खिल जाएं।
उनमें जीने की ललक उभरे।
वे छोटी सी बात पर न भड़कें।
वे शांत रहें
और अवसरों की
तलाश के लिए
तत्पर बने रहें।
उनमें जिजीविषा बनी रहे।
उनमें सुख समृद्धि और संपन्नता की
अभिलाषा जगी रहे।
उन्हें यह जीवन किसी जन्नत से
कम  न लगे।
वे इस जन्नत में बने रहनेके लिए
निरन्तर अथक संघर्ष करते रहें ।
१२/०५/२०२५.
दुनिया के भीतर
आदमी का सुरक्षा कवच
होती है मां
और मां को सुरक्षा
देता है उसका पुत्र।
मां ही
पुत्र की दृष्टि में
दुनिया के भीतर
सबसे सुंदर होती है
क्योंकि कि
मां पुत्र की
पहली शिक्षिका होती है
जिसके सान्निध्य में
जीवन का बीज
अंकुरित होता है
और यह पुष्पित पल्लवित भी
मां की अपार कृपा से होता है।
ममत्व की मूर्ति मां की आत्मा
पुत्र में बसती है
और पुत्र की कमज़ोरी
उसकी मां होती है।
पुत्र मां को दुखी नहीं देख सकता।
उसके लिए वह लड़ भी है पड़ता।
एक सच कहूं
पुत्र की नज़र में
मां की सुन्दरता
अनुपम होती है।
मां में कायनात बसती है।
मां में जीवन की खुशबू रहती है।
मां के न रहने पर
सुध बुध सुख की गठरिया
बिखर जाती है।
अकेले होने पर
मां बहुत याद आती है।
उसकी अनुभूति
जीवन की शुचिता की
प्रतीति कराती है।
मां होती है सबसे सुंदर
उसकी यादों में बसता है
भावनाओं  का समन्दर।
११/०५/२०२५.
दो देशों के
युद्ध विराम में राष्ट्रीय प्रवक्ता के
प्रेस विज्ञप्ति देने से पूर्व ,
प्रेस वार्ता में कुछ कहने से पहले
किसी तीसरे राष्ट्र के
राष्ट्रपति ने युद्ध विराम की बाबत
ट्वीट कर दिया
और सारा श्रेय
ख़ुद लेने का प्रयास किया।
इस बाबत
आप क्या सोचते हैं ?
क्या यह सही है ?
मेरे यहां कुछ कहावतें हैं...
दाल भात में मूसल चंद..!
परायी शादी में अब्दुल्ला दीवाना...!
इस तीसरे कौन के संबंध में
हम सब को
नहीं रहना चाहिए मौन
वरना हमारी हैसियत
होती जाएगी गौण।
हमें मूसल चंद और अब्दुल्ला के
हस्तक्षेप से बचना होगा।
मित्र राष्ट्र और शत्रु राष्ट्र को
द्विपक्षीय संवाद से
अपना पक्ष
एक दूसरे के सम्मुख
रखना होगा।
तीसरे की कुटिलता से
स्वयं को बचाना होगा।
वरना धोखा मिलता रहेगा।
सरमायेदार अपना घर भरता रहेगा।
देश दुनिया और समाज पिछड़ता रहेगा।
आम आदमी सिसकता रहेगा।
११/०५/२०२५.
कल
अचानक राष्ट्र
जीतते जीतते हार गया।
गाय भक्त देश
कसाई से कट गया।
तृतीय पक्ष
बन्दर कलन्दर
बिल्लियों के
हिस्से की रोटी को
छीनने का
जुगाड़ कर गया।
साधन सम्पन्न देश
खुद को विपन्न
सिद्ध कर गया।
कल कोई
बुद्धू के सुख को
हड़प कर गया।
उसे लाचार कर गया।
११/०५/२०२५.
कितना सही कहते हैं ...
हमारे लोग
आदमी कितनी भी
रवायती पढ़ाई लिखाई कर ले,
वह निरा अव्यावहारिक बना ‌रहता है,
जब तक कि
वह नौकरी अथवा काम-धंधे में क़दम न रख लें,
वह पढ़ा लिखा नौसीखिया कहलाता है,
जीवन में धक्के खाता रहता है ।


आज देश में
युद्ध अराजक शक्तियों के कारण
थोपा गया है ,
देश को पड़ोसी देश ने
धोखा दिया है।
फलत: देश में आपातकाल लागू है।
यदि यह न हो तो
हर ऐरा गैराज नत्थू खैरा
बेकाबू होकर
अराजकता का नाच नचा दे,
देश दुनिया और समाज की
व्यवस्था को पंगु ‌बना दे,
विकास के पहिए को चरमरा दे।
ऐसे हालात में
देश क्या करें ?
क्यों न वह हरेक आम और खास पर
सख़्ती बढ़ा दें !
सभी को
अनुशासन का पाठ पढ़ा दे,
जीवन की गतिशीलता को बढ़ा दें,
आपातकाल में ढंग से रहना सिखा दे।

आपातकाल
आफत काल
कतई नहीं है
बल्कि यह वह अवसर है
जिससे सब कुछ सही हो सकता है,
देश दुनिया और समाज
अपने गंतव्य तक
सफलता पूर्वक पहुंच सकता है,
भले ही जीवन धारा में
कुछ उतार चढ़ाव आएं
सब अपने लक्ष्य को हासिल कर पाएं।

आपातकाल
अनुशासन पर्व
बन सकता है ,
यह सभी को सकारात्मक बनाता है ।
यह कठिनाइयों के बीच
जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा बनकर
जन गण को नित्य नूतन दिशा में जाने की
प्रतीति कराता है।
बेशक यह देश का
ताना-बाना हिला दे
सत्ता के गलियारों में
तानाशाही के रंग ढंग दिखला दे ।
निकम्मों को
दिन में तारे दिखला दे।

आपातकाल की सीख
कोई नहीं है भीख
बल्कि यह भीड़ तंत्र को
काबू में रखने का गुर और गुण है
इसे मुसीबत समझना ही
आज बना एक अवगुण है।
फलत: देश आपातकाल
झेलने को है विवश।
इस पर किसका है वश ?
११/०५/२०२५.
शत्रु से लड़ने के दौर में
महाराणा प्रताप
चेतक पर सवार  
जंगल में भटकते हुए
संघर्ष रत रहे
घास की रोटियां खाकर
जीवन यात्रा को ज़ारी रखा।
भामाशाह जैसे दानवीर भी
भारत के इतिहास में हुए।


जीतते जीतते
भारत समझौते को
राजी क्यों हुआ ?
यह सब ठीक नहीं।
हम अपने किरदार को सही करें।
हम सब राणा प्रताप
और भामाशाह प्रभृति बनकर
समय की हल्दी घाटी में
संघर्ष करें , जीवन पथ पर आगे बढ़ें।
सहर्ष कुर्बानी दें।
सर्वस्व बलिदान करने से
कभी भी पीछे न हटें।
हम हारी हुई मानसिकता दिखाकर
आत्म समर्पण क्यों करें ?
हम दिवालिया होने तक
शत्रु से जी जान से लड़ें , आगे बढ़ें।

अभी भी समय हैं ,
हम अपनी शर्तों पर
जीवन पथ पर अग्रसर हों ,
ना कि घुटने टेक पराजित हों।
अब भी समय है
अपनी ग़लती सुधारने का।
शत्रु बोध कर
शत्रुओं को
ललकारने का !
युद्धवीर बनने का !!
अपनी डगर पर चलने का !!!
११/०५/२०२५.
बचपन की कहानी का
रंगा सियार
आज
मैंने अनुभूत किया ।
आजकल
वह सत्ता के सिंहासन पर  
आसीन  है
और हरेक विरोधी को
गिदड़ भभकी दे रहा है ,
और इसके साथ ही
अपने आका के आगे
नाच रहा है।
वह शीघ्रता से
मौत का तांडव करने
शहर शहर
यार मार करने आ रहा है ,
मेरा दिल बैठा जा रहा है।
रंगा सियार
अराजकता के दौर में
रंगारंग कार्यक्रम
प्रस्तुत करना चाहता है।
पर कोई विरला ही
उसकी पकड़ में आता है।
वह हर किसी से मिलना चाहता है,
वह अपने रंगे जाने का दोष
हर ऐरे गैरे नत्थू खैरे के सिर
मढ़ना चाहता है।
११/०५/२०२५.
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