भाई भाई
आज आपस में क्यों लड़े ?
इस बाबत
क्या कभी किया है
किसी ने विचार विमर्श ?
भाई भाई
बचपन में परस्पर लड़ने से
करते थे गुरेज
बल्कि यदि कोई
उन से लड़ने का प्रयास करता
तो वे सहयोग करते ,
विरोधी पर टूट पड़ते।
अब ऐसा क्या हो गया है ,
भाई भाई का वैरी हो गया है।
दो बिल्लियों के बीच
मनभेद होने पर
बन्दर की मौज हो जाती है ,
इसे आज तक भी
वे समझ नहीं पाई हैं।
समसामयिक संदर्भों में
अब इसे समझा जाए ,
दो पड़ोसी देश
जिनका सांझा विरसा है ,
द्विराष्ट्र सिद्धान्त से
जिन्हें पूंजीवादी देश ने
गुलामी के दौर से लेकर
आजतक चाल चलकर
हर रंग ढंग से छला है।
उन्हें कमज़ोर रखने के निमित्त
उनको न केवल विभाजित किया गया
बल्कि उनमें
आपसी समन्वय न होने देने की ग़र्ज से ,
उन्हें प्रगति पथ पर बढ़ने से रोकने के लिए
बरगलाया गया है।
उनके अहम् के गुब्बारे को फुलाकर
उन्हें अक्लबंद बनाया गया है।
यदि वे अक्लमंद बन जाते ,
तो कैसे सरमायेदार देश
उन्हें भरमाते , फुसलाकर,
निर्धनता के जाल में फंसा पाते ?
आज के बदलते दौर में
बन्दर अब
एक न होकर
अनेक हैं ,
यह सच है कि
उनके इरादे
कभी भी नेक नहीं रहे हैं।
वे भाइयों को लड़वा सकते हैं।
जरूरत पड़ने पर
सुलह और समझौता भी
करवा सकते हैं ,
अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए
उनको फिर से विभाजन की राह
पर ले जाकर मूर्ख भी बना सकते हैं।
बन्दर कलन्दर बन कर राज कर रहा है।
वह बन्दर पूंजीवादी भी हो सकता है
और कोई तानाशाह समाजवादी भी।
यह बिल्लियों को देखना है कि
वे किस पाले में जाना पसंद करेंगी ?
या फिर अक्लमंद बन कर सहयोग करेंगी ??
आज ये लड़ने पर आमादा हैं।
पता नहीं ये कब तक लड़ती रहेंगी ?
शत्रु की शतरंजी चालों में फंसकर
अपने सुख ,समृद्धि और सम्पन्नता को
बन्दर बांट करने वालों तक पहुंचाती रहेंगी।
आज भाई परस्पर न लड़ें।
वे समझ लें जीवन का सच कि
लड़ाई तो बस जग हंसाई कराती है।
यह दुनिया भर में निर्धनता को बढ़ाती है।
०९/०५/२०२५.