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Jul 2015
इस सुनसान रास्ते पे चलने की,
जैसे आदत सी पड़ गयी है|
अब सूखी सी इस मिटी पर,
जब आशा के फूल खिलते हैं,
और इस अंधेरे से भरी दूनिया मे,
जब सूरज की किरन पड़ती है,
तो गमों को गिनने की,
जैसे आदत सी पद गयी है|

दूसरों की खुशियों मे अपनी खुशी ढूनडते,
येह ज़िंदगी गुज़र गयी है|
हर मोड़ पे निराशा का मिलना,
हर काम मे आशा का बिखरना,
घर से बाहर निकलने के ख्याल पर,
हज़ार बार सोचना,
इस सोचने के च्कर मे ही,
ज़िंदगी गुज़र गयी है|
My attempt at hindi poetry :)
Gaurav Luthra
Written by
Gaurav Luthra  Canada
(Canada)   
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