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Fatma zaid Aug 15
मां का आंचल आज भी ढूंढते हैं हम,,
मां की गोद को बहुत तरसते हैं हम,,
काश मां के साए से ही लिपट जाते,,
अपनी मां के पैरों की आहट ही सुन पाते,,
ऐ ज़िंदगी तू किसी पे तरस नहीं खाती,,
काश मैं अपनी मां को जाने से रोक पाती।।

— The End —