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 Nov 2024 Vanita vats
Nemusa
River streams whisper,
Unconscious dreams cascading,
Infertile, fall fades.
हो  सके
तो  विवाद  से  बच
ताकि
झुलसे  न  कभी
अंतर्सच ।

यदि
यह  घटित  हुआ
तो  निस्संदेह  समझ
जीवन  कलश  छलक  गया  !
जीवन  कलह से  ठगा गया  !

हो  सके
तो  जीवन  से   संवाद   रच  ,
ताकि   जीवन  में  बचा  रहे   सच  ।
प्राप्त होता रहे  सभी को  यश ....न  कि  अपयश  !

    २९/११/२००९.
मुझे
अपने पास
बुलाता रहता है
हर पल
कोई अजनबी।
वह मुझे लुभाता है,
पल प्रति पल देता है
प्रलोभन।

वह
मृत्यु को सम्मोहक बताता है,
अपनी गीतों और कविताओं में
मृत्यु  के नाद की कथा कहता है
और  अपने भीतर उन्माद जगाकर
करता रहता है भयभीत।

यह सच है कि
मुझे नहीं है मृत्यु से प्रीत
और कोई मुझे...
हर पल मथता है ,
समय की चक्की में दलता है।


कहीं जीवन यात्रा
यहीं कहीं जाए न ठहर
इस डर से लड़ने को बाध्य कर
कोई मुझे थकाया करता है।

दिन रात, सतत
अविराम चिंतन मनन कर
अंततः चिंता ग्रस्त कर
कोई मुझे जीवन के पार
ले जाना चाहता है।
इसलिए वह
वह रह रह कर मुझे बुलाता है ।

कभी-कभी
वह कई दिनों के लिए
मेरे ज़ेहन से ग़ायब हो जाता है।
वे दिन मेरे लिए
सुख-चैन ,आराम के होते हैं।
पर शीघ्र ही
वह वापसी कर
लौट आया करता है।
फिर से वह
मुझे आतंकित करता है ।


जब तक वह या फिर मैं
सचमुच नहीं होते बेघर ।
हमें जीवन मृत्यु के के बंधनों से
मिल नहीं जाता छुटकारा।
तब तक हम परस्पर घंटों लड़ते रहते हैं,
एक दूसरे को नीचा दिखाने का
हर संभव किया करते हैं प्रयास,
जब तक कोई एक मान नहीं लेता हार।
वह जब  तब
मुझे
देह और नेह  के बंधनों से
छुटकारे का प्रलोभन देकर
लुभाया करता है।

हाय !हाय!
कोई मुझ में
हर पल
मृत्यु का अहसास जगा कर

और
जीवन में  मोहपाश से बांधकर
उन्माद भरा  करता है ,
ज़िंदगी के प्रति
आकर्षण जगा कर ,
अपना वफादार बना कर ,
प्रीत का दीप जलाया करता है।
कोई अजनबी
अचानक से आकर
मुझे
जगाने के करता है  
मतवातर प्रयास
ताकि वह और मैं
लंबी सैर के लिए जा सकें ।
अपने को भीतर तक थका सकें।
जीवन की उलझनों को
अच्छे से सुलझा सकें।
  २२/०९/२००८.
आज सड़क पर
जीवन के रंग मंच पर
जिंदाबाद मुर्दाबाद की नारेबाजी
सुनकर लगता है,
अब कर रही है
जांबाज़ों की फ़ौज ,
अपने ही देश के
ठगों, डाकुओं, लुटेरों के ख़िलाफ़ ,
अपनी आखिरी जंग
लड़ने की तैयारी।

पर
मन में एक आशंका है,
भीतर तक
डर लगता है ,
कहीं सत्ता के बाजीगरों
और देश के गद्दारों का
आपस में  न हो जाए गठजोड़ ।

और और देश में होने लगे
व्यापक स्तर पर तोड़-फोड़।
कहीं चोर रास्ते से हुई उठा पटक
कर न दे विफल ,
हकों की खातिर होने वाली
जन संघर्षों और जन क्रान्ति को।
कहीं
सुनने न पड़ें
ये शब्द  कि...,
' जांबाज़ों ने जीती बाज़ी,
आंतरिक कलह ,
क्लेश की वज़ह से
आखिरी पड़ाव में
पहुंच कर हारी।'

देश मेरे , यह कैसी लाचारी है?
जनता ने आज
जीती बाजी हारी है ।
इस जनतंत्र में बेशक जनता कभी-कभी
जनता जनार्दन कहलाती है, ... लोकतंत्र की रीढ़ !
पर आज जनता 'अलोक तंत्र' का होकर शिकार ,
रही है अपनी अपनी जिंदगी को किसी तरह से घसीट।
अब जनता दे रही है  दिखाई, एकदम निरीह और असहाय।
महानगर की सड़कों पर भटकती,
लूट खसोट , बलात्कार, अन्याय से पीड़ित ,
एक पगली  सी होकर , शोषण का शिकार।

देश उठो, अपना विरोध दर्ज करो ।
समय रहते अपने फ़र्ज़ पूरे करो।
ना कि निष्क्रिय रहकर, एक मर्ज  सरीखे दिखो।
अपने ही घर में निर्वासित जिंदगी बिता रहे
अपने  नागरिकों के भीतर
नई उमंग तरंग, उत्साह, जोश , जिजीविषा भरो।
उन्हें संघर्षों और क्रांति पथ पर
आगे बढ़ने हेतु तैयार करो।  
  २६/११/२००८.
महंगाई ने
न केवल किया है,
जनसाधारण को
भीतर तक परेशान ,
बल्कि
इसने पहुंचाया है
आर्थिकता को भारी-भरकम
नुक्सान ।

दिन पर दिन
बढ़ती महंगाई ,
ऊपर से
घटती कमाई ,
मन के अंदर भर
रही आक्रोश ,
इस सब की बाबत
सोच विचार करने के बाद
आया याद ,
हमारी सरकार
जन कल्याण के कार्यक्रम
चलाती है,
इसकी खातिर बड़े बड़े ऋण भी
जुटाती है।
इस ऋण का ब्याज भी
चुकाती है।
ऊपर से
हर साल लोक लुभावन
योजनाएं जारी रखते हुए
घाटे का बजट भी पेश
करती है।


यही नहीं
शासन-प्रशासन के खर्चे भी बढ़ते
जा रहे हैं ।
भ्रष्टाचार का दैत्य भी अब
सब की जेबें
फटाफट ,सटासट
काट रहा है।

चुनाव का बढ़ता खर्च
आर्थिकता को
तीखी मिर्च पाउडर सा रहा है चुभ।

यही नहीं बढ़ता
व्यापार घाटा ,
आर्थिकता के मोर्चे पर
पैदा कर रहा है
व्यक्ति और देश समाज में
सन्नाटा।


ऊपर से तुर्रा यह
कर्ज़ा लेकर ऐश कर लो।
कल का कुछ पता नहीं।
व्यक्ति और सरकार
आमदनी से ज़्यादा खर्च करते हैं,
भला ऐसे क्या खज़ाने भरते हैं?

फिर कैसे मंहगाई घटेगी?
यह तो एक आर्थिक दुष्चक्र की
वज़ह बनेगी।
जनता जनार्दन कैसे
मंहगाई के दुष्चक्र से बचेगी ?
देखना , शीघ्र ही इसके चलते
देश दुनिया में अराजकता और अशांति बढ़ेगी।
व्यक्ति और व्यक्ति के भीतर असंतोष की आग जलेगी।

२९/११/२०२४.
यह हक़ीक़त है कि
जब तक रोशनी है ,
तब तक परछाई है ।
आज तुम
खुद को रोशनी की जद में पहुंचा कर
परछाई से
जी भरकर लो खेल।
अंधेरे ने
रोशनी को
निगला नहीं कि
सब कुछ समाप्त!
सब कुछ खत्म!
पटाक्षेप !


और
है भी एक हक़ीक़त,
जो इस जीवन रूपी आईने का
भी है सच कि
जब तक अंधेरा है,
तब तक एक्स भी नजर नहीं आएगा।
अंधेरा है तो नींद है,
अंधेरे की हद में
आदमी भले ही
देर तक सो ले ,
अंधेरा छंटा नहीं कि
उसे जागना पड़ता है।

अंधेरा छंटा नहीं ,
समझो सच की रोशनी ने
आज्ञा के अंधेरे को निगला कि
सब कुछ जीवित,
जीवन भी पूर्ववत हुआ
अपनी पूर्व निर्धारित
ढर्रे पर लौटता
होता है प्रतीत।

जीवन  वक्त के संग
बना एक हुड़दंगी सा
आने लगता है नज़र।
वह समय के साथ
अपनी जिंदादिल होने का
रानी लगता है
अहसास,
आदमी को अपना जीवन,
अपना आसपास,
सब कुछ लगने लगता है
ख़ास।
बंधुवर,
आज तुम जीवन का खेल समझ लो।
जीवन समय के साथ-साथ
सच  को आग बढ़ाता जाता है ,
जिससे जीवन धारा की गरिमा
करती रहे यह प्रतीति कि
समय जिसके साथ
एक साथी सा बनकर रहता है,
वह जीवन की गरिमा को
बनाए रख पाता है ,
जीवन की अद्भुत, अनोखी, अनुपम,अतुल छटा को
जीवन यात्रा के क़दम क़दम पर  
अनुभूत कर पाता है ,
समय की लहरों के संग
बहता जाता है ,
अपनी मंजिल को पा जाता है ।

घटतीं ,बढ़तीं,मिटतीं, बनतीं परछाइयां
रोशनी और अंधेरे की उपस्थिति में
पदार्थ के इर्द-गिर्द
उत्पन्न कर एक सम्मोहन
जीवन के भीतर भरकर एक तिलिस्म
क़दम क़दम पर मानव से यह कहती हैं अक्सर ,
तुम सब रहो मिलकर परस्पर
और अब अंततः अपना यह सच जान लो कि
तुम भी एक पदार्थ हो,
इससे कम न अधिक... जीवन पथ के पथिक।
मत हो ,मत हो , यह सुनकर चकित ।
सभी पदार्थ अपने जीवन काल को लेकर रहते भ्रमित
कि वे बने रहेंगे इस धरा पर चिरकाल तक।
परंतु जो चीज बनी है, उसका अंत भी है सुनिश्चित।

२०/०५/२००८.
I beg for you to message
It seems I haven't learned my lesson
Still selfish in my worldly pursuits
Self-absorbed and bored

I don't allow time for grief
At least thats what I've come to think
I allow the fire to burn within my heart
Allow myself to be ignored and gored
Time! Time!
Wash out my timidness.
I want to be a good person for the dignity of life.
But my timidness is a hurdle in my way.
So wash out my timidness.
To find the way of lost happiness.
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