बूढ़ा हो चुका हूँ । अभी भी मन के भीतर गंगा जमुनी तहज़ीब का जुनून बरकरार है । भीतर की मानसिकता घुटने टेकने क्षमा मांगने वाली रही है , फलत:अब तक मार खाता रहा हूँ ।
अभी अभी पहलगाम का दुखांत सामने आया है , जिसने मुझे मेरे अंत का मंज़र दिखाया है। अगर अब भी इस गंगा जमुनी तहज़ीब के जाल में फंसा रहा तो यकीनन बहेलिए के जाल में , उस द्वारा फेंके गए दानों के लोभ में ख़ुद को फंसा हुआ पाऊंगा, कभी छूट भी नहीं पाऊंगा। बस उस के जाल में फड़फड़ाता रह जाऊंगा। शाम तक रात के भोजन का निवाला बनने के निमित्त हांडी पर पकाया जाऊंगा। यह ख्याल अभी अभी जेहन में आया है। मुझे शत्रु बोध की अनुभूति होनी चाहिए। मुझे मिथ्या सहानुभूति कतई नहीं चाहिए। कब तक अबोध बना रहूंगा ? बूढ़ा होने के बावजूद बच्चों सा तिलिस्मी माया जाल में फंसा हुआ तिलमिलाता रहूंगा। कब मेरे भीतर शत्रु बोध पैदा होगा ? .... और मैं अस्तित्व रक्षा में सफल रहूंगा। आप भी अपने भीतर शत्रु बोध को जागृत कीजिए। अपने प्रयासों से जिजीविषा को तीव्रता से अनुभूत कीजिए। सुख समृद्धि और सम्पन्नता से नाता जोड़ लीजिए। २९/०४/२०२५.