बेशक जीवन में धूम धड़ाका सब को अच्छा लगता है पर इसका आधिक्य बाधा भी उत्पन्न करता है। धूम धड़ाका घूम घूम कर धड़धड़ाता हुआ कभी कभार खूनी साका भी रच जाता है, यह तबाही के मंज़र भी दिखला जाता है।
आदमी एक सीमा के बाद इसे अपने जीवन में करने से बचे। कम से कम वह अपनी खुशियों का अपहरण स्वयं तो न करे , वह थोड़ा सा गुरेज़ करे।
कभी कभी धूम धड़ाके जैसा आडंबर का सांप चेतना और विवेक को न डस सके। आदमी सलीके से अपने स्वाभाविक ढंग से इस बहुआयामी दुनिया के मज़े दिल से ले सके। उसकी राह में कोई अड़चन न पैदा हो सके। वह अपने परिवार के संग ख़ुशी ख़ुशी जीवन का आनंद उठा सके। वह कभी धूम धड़ाका करने के चक्कर में घनचक्कर न बने। उसके सभी क्रिया कलाप समय रहते सध सकें। इस सब की खातिर सभी जीवन में अनावश्यक धूम धड़ाका करने से पहले अच्छी तरह से सोच विचार करें और इस से जितना हो सके , उतना बचें , ताकि आदमी का चेहरा मोहरा धूम धड़ाके की कालिख से बचा रहे। उसकी पहचान धूमिल होने से बची रहे। २२/१२/२०२४.