यह कैसा अपनापन ? ...कि आदमी का अचानक अपमान हो और अपनापन परायापन सरीखा लगने लगे। कोई क्रोध, नाराजगी जताने की बजाय अपनापन दिखलाने वाला खामोशी ओढ़ ले।
यह ठीक नहीं है। इससे अच्छा तो वह अजनबी है , जो आदमी की पीड़ा को सहानुभूति दर्शाते हुए सुन ले। उसे दिलासा और तसल्ली दे आदमी के भीतर हौसला और हिम्मत भर दे ।
इसे बढ़ावा देने वाले से क्या कहूं? अपनेपन का दिखावा न करे , कम अज कम बेवजह बेवकूफ बनाना बंद कर दे । इस सब से अच्छा तो परायापन , जो कभी कभार शिष्टाचार वश इज़्ज़त ,मान सम्मान प्रदर्शित कर दे , और तन मन के भीतर जिजीविषा भर दे , आदमी में जीने की ललक भरने का चमत्कार कर दे । अतः दोस्त सभी से सद्व्यवहार करो। भूले से भी किसी का तिरस्कार न करो। दुखी आदमी इस हद तक चला जाए कि वह गुस्से से ही सही , हिसाब किताब की गर्ज से ज़िंदगी की बही में बदला दर्ज कर जाए , ताकि अपमान और परायेपन का दर्द कम हो पाए।