जीवन में बेशक चलो सभी से हंसी-मजाक करते हुए , प्यार और लगाव से बतियाते हुए , क़दम क़दम पर स्वयं को जीवन के उतार चढ़ाव से भरे सफर में हरदम चेताते हुए । पर हर्गिज न बोलो कभी किसी से बड़बोले बोल । यह जीवन अनिश्चितताओं से भरा हुआ है , क्या पता? कब क्या घट जाए? कहीं बीच सफ़र ढोल की पोल खुल जाए । अतः सोच समझ कर बोलना चाहिए। कठिनाइयों का सामना बहादुरी से किया जाना चाहिए।
भूलकर भी मत बोल , कभी भी बड़बोले बोल। कुछ भी कहो, मगर कहने से पहले उसे अंतर्घट में लो तोल। इस जहान में जीवन की गरिमा बची रहे , इस अनमोल जीवन में अस्तित्व को कोई झिंझोड़ न सके, आदमी अपनी अस्मिता कायम रख सकें , इसकी खातिर हमेशा बड़बोले बोलों से बचा जाना चाहिए। ऐसे बिना सोचे-समझे कुछ भी कहने से ख़ुद का पर्दाफाश होता है। और दुनिया को हंसी ठिठोली का अवसर मिलता है, ऐसे में आत्म सम्मान मिट्टी में मिल जाता है, आत्म विश्वास भी डांवाडोल हो जाता है। यही नहीं, आदमी देर तक भीतर ही भीतर लज्जित और शर्मिंदा होता रहता है।