अफवाह जंगल की आग सरीखी होती है , यह बड़ी तेज़ी से फैलती है और कर देती है सर्वस्व स्वाहा, तबाह और बर्बाद । यह कराती है दंगा फ़साद।
आज अफवाह का बाज़ार गर्म है , गली गली, शहर शहर , गांव गांव और देश प्रदेश तक जंगल की आग बनकर सब कुछ झुलसा रही है । अफवाह एक आंधी बनकर चेतना पर छाती जा रही है , यह सब को झुलसा रही है।
इसमें फंसकर रह गया है विकास और प्रगति का चक्र। इसके कारण चल रहा है एक दुष्चक्र , देश दुनिया में अराजकता फैलाने का।
लोग बंद हुए पड़े हैं घरों में , उनके मनों में सन्नाटा छाया है। उन्होंने खुद पर एक अघोषित कर्फ्यू लगाया हुआ है। सभी का सुख-चैन कहीं खो गया है । यहां हर कोई सहमा हुआ सा है । हर किसी का भीतर बाहर ,तमतमाया हुआ सा है । अब हवाएं भी करने लगी हैं सवाल ... यहां हुआ क्यों बवाल ? यहां हुआ क्यों बवाल ? छोटों से लेकर बड़ों तक का हुआ बुरा हाल ! ! हुआ बुरा हाल ! ! आज हर कोई घबराया हुआ क्यों है ? क्या सबकी चेतना गई है सो ? हर कोई यहां खोया हुआ है क्यों ?
यहां चारों ओर अफ़वाहों का हुआ बाज़ार गर्म है । इनकी वज़ह से नफ़रत का धुआं आदमी के मनों में भरता जा रहा है । यह हर किसी में घुटन भरता जा रहा है । इसके घेरे में हर कोई बड़ी तेज़ी से आ रहा है। इस दमघोटू माहौल में हर कोई घबरा रहा है ।
पता नहीं क्यों ? कौन ? कहां कहां से? कोई मतवातर अफ़वाहों के बूते अविश्वास , आशंका, असहजता के काले बादल फैलाता जा रहा है । सच यह है कि आत्मीयता और आत्मविश्वास मिट्टी में मिलते जा रहे हैं ।
आज अफ़वाहों का बाज़ार गर्म है। कहां लुप्त हुए अब मानव की सहृदयता और मर्म हैं ? न बचे कहीं भी अब ,शर्म ,हया और धर्म हैं । ०२/१२/२०२४.