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Dec 2
अफवाह
जंगल की आग
सरीखी होती है ,
यह बड़ी तेज़ी से फैलती है
और कर देती है
सर्वस्व
स्वाहा,
तबाह और बर्बाद ।
यह कराती है
दंगा फ़साद।

आज
अफवाह का बाज़ार
गर्म है ,
गली गली, शहर शहर ,
गांव गांव
और देश प्रदेश तक
जंगल की आग बनकर
सब कुछ झुलसा रही है ।
अफवाह एक आंधी बनकर
चेतना पर छाती जा रही है ,
यह सब को झुलसा रही है।


इसमें फंसकर रह गया है
विकास और प्रगति का चक्र।
इसके कारण चल रहा है एक दुष्चक्र ,
देश दुनिया में अराजकता फैलाने का।


लोग बंद हुए पड़े हैं
घरों में ,
उनके मनों में सन्नाटा छाया है।
उन्होंने खुद पर
एक अघोषित कर्फ्यू लगाया हुआ है।
सभी का सुख-चैन कहीं खो गया है ।
यहां
हर कोई सहमा हुआ सा  है ।
हर किसी का भीतर बाहर ,तमतमाया हुआ सा है ।
अब हवाएं भी करने लगी हैं सवाल ...
यहां हुआ क्यों बवाल ? यहां हुआ क्यों बवाल ?
छोटों से लेकर बड़ों तक का
हुआ बुरा हाल ! !  हुआ बुरा हाल ! !
आज हर कोई घबराया हुआ क्यों है ?
क्या सबकी चेतना गई है सो ?
हर कोई यहां खोया हुआ  है क्यों ?

यहां चारों ओर
अफ़वाहों का हुआ बाज़ार गर्म है ।
इनकी वज़ह से
नफ़रत का धुआं
आदमी के मनों में भरता जा रहा है ।
यह हर किसी में घुटन भरता जा रहा है ।
इसके घेरे में हर कोई बड़ी तेज़ी से आ रहा है।
इस दमघोटू माहौल में हर कोई घबरा रहा है ।

पता नहीं क्यों ?
कौन ?
कहां कहां से?
कोई
मतवातर
अफ़वाहों के बूते
अविश्वास , आशंका, असहजता के
काले बादल फैलाता जा रहा है ।
सच यह है कि
आत्मीयता और आत्मविश्वास
मिट्टी में मिलते जा रहे हैं ।

आज अफ़वाहों का बाज़ार गर्म है।
कहां लुप्त हुए अब
मानव की सहृदयता और मर्म हैं ?
न बचे कहीं भी अब ,शर्म ,हया और धर्म हैं ।
०२/१२/२०२४.
Written by
Joginder Singh
52
   Salmabanu Hatim
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