यदि बोलोगे तुम झूठ,
बोलते ही रहोगे झूठ के बाद झूठ,
तुम एक दिन स्वयं को
एक झूठी दुनिया में गिरा पाओगे,
कभी ढंग से भी न पछता पाओगे,
शीघ्रातिशीघ्र
दुनिया से रुखसत कर जाओगे,
तब तुम कुछ भी हासिल नहीं कर पाओगे।
कुछ पाने के लिए
तुम मतवातर बोल रहे झूठ ,
क्यों बना रहे खुद को ही मूर्ख ?
जीवन में इतनी जल्दी
पीनी पड़ेगी ज़हर की घूट।
यह कभी सोचा नहीं था।
मुझ पर मेरा दोस्त,
दुम कटा कुत्ता
जो कभी भौंका तक न था,
अब लगता है कि वह भी
आज लगातार भौंक भौंक कर,
कर रहा है आगाह ,
अब और झूठ ना बोल ,
वरना हो जाएगा
इस जहान से बिस्तर गोल ।
अब वह अपना सच बोलकर
मुझे काटने को रहता है उद्यत।
मुझे याद है
अच्छी तरह से ,
बचपन में एक दफा
झूठ बोलते पकड़े जाने पर
मिला था एक झन्नाटेदार चांटा ।
परंतु मैं बना रहा ढीठ!
और अब तो लगता है
कि मैंने ढीठपने की
लांघ दी हैं सब हदें।
अब मुझे तुम्हारा डांटना,
बार-बार आगाह करना,
नहीं अखरता है ।
तुम्हारा यह कहा कि
यदि झूठ बोलूंगा,
तो काला कौआ भी भी बार-बार काटने से
करेगा गुरेज,
वह भी पीछे हट जाएगा,
सोचेगा, बार-बार काटूंगा,
तो इस ढीठ पर होगा नहीं कोई असर ।
मैं खुद को बेवजह थकाऊंगा ।
आजकल
हरदम
मौत के क़दमों
की आहट,
मेरा पीछा नहीं छोड़ती।
कर देती है,
मेरी बोलती बंद।
वह घूरती आंखों से
मेरे भीतर बरपा रही है कहर,
मैं लगातार रहा हूं डर,
मेरे भीतर
सहम भर गया है।
जीवन कुछ रुक सा
गया है ।
अब आ रहा है याद
तुम्हारा कहा हुआ ,
" दोस्त,
झूठ बोलने से पहले
आईना देख लिया करो।
क्या पता कभी
आईने में सच देख लो ?
और झूठ से गुरेज कर लो !
झूठ के पीछे भागने से
तौबा कर लो।"
मैं पछता रहा हूं।
जिंदगी की दौड़ में
पिछड़ता जा रहा हूं,
क्योंकि मेरे चरित्र पर
झूठा होने का ठप्पा लगा है।
सच! मुझे अपने ओछेपन की वज़ह से
जीवन में बड़ा भारी धक्का लगा है।
मेरा भविष्य भी अब हक्का-बक्का सा खड़ा है।
सोचता हूं,
मेरे साथ क्या हुआ है?
कोई भी मेरे साथ नहीं खड़ा है।
२९/०१/२०१५.