जब देशद्रोही अराजकता को बढ़ावा देने के मंतव्य से एक पोस्टरवार का आगाज़ करते हैं, और समाज का पोस्टमार्टम करने की ग़र्ज से लगवाते हैं पोस्टर, तब होता है महसूस, मैं आजाद भले ही हूं, पर हूं एक कठपुतली ही, जिसे कोई देशद्रोही नचाना चाहता है, मेरी अस्मिता को कटघरे में खड़ा करना चाहता है, अपनी मनमर्ज़ी से दहलाना चाहता है, मेरे अस्तित्व को दहलाना चाहता है।
मैं देशद्रोही से सहानुभूति नहीं रखती।
मैं उसे देशभक्त का मुखौटा पहने नहीं देख सकती।
मैं देशद्रोही को साथियों सहित कुचले जाते देखना चाहती हूं।
मेरे भीतर मध्यकालीन बर्बरता है, सिर के बदले सिर , आंख के बदले आंख, ख़ून के बदले ख़ून सरीखी मानसिकता है, रूढ़ियों से बंधी हुई दासता है। चूंकि मैं एक कठपुतली खुद दूसरे के हाथ से नचाई जाती रही हूं, मैं भी देशद्रोहियों को अपनी तरह नाचते देखना चाहती हूं।
मैं परंपरा का सम्मान करती हूं, साथ ही आधुनिकता को तन मन से स्वीकारती हूं ।
यदि आधुनिकता हमें देशद्रोही बनाती है , तब यह कतई नहीं भाती है । ऐसे में आधुनिकता मुसीबत बन जाती है ! यह स्थिति मुझे हारने की प्रतीति कराती है ।
मैं देशद्रोही बनाने वाली पोस्टर में अंकित, अधिकारों से वंचित , भ्रष्टाचार करके संचित धन संपदा को एकत्रित करने और निरंकुश बेशर्मी के रही सदा खिलाफ हूं । मैं इस खातिर अपना वजूद भी दांव पर लगा सकती हूं । जरूरत पड़े तो हथियार भी उठा सकती हूं ।
भले ही अब तक मैं हथियार विहीन जिंदगी जिंदादिली से जीती आई हूं । एक अच्छे नागरिक के समस्त कर्तव्य निभाती आई हूं ।
यदि कोई आंखों के सम्मुख देशद्रोह की गुस्ताखी करेगा, तो प्रतिक्रिया वश यह गुस्ताख कठपुतली उसे बदतमीजी की बेझिझक सजा देगी। साथ ही उसकी अकल ठिकाने लगाएगी ।
उसे पश्चाताप करने के लिए बाध्य करेगी ।
जब कोई देशद्रोही अपने उन्माद में अट्टहास करता है , तब वह अनजाने ही शत्रु बनाता है! वह एक कठपुतली में असंतोष जगा जाता है ! वह कठपुतली के भीतर प्रमाद के सुर भर जाता है !!
क्या पता कोई चमत्कार हो जाए ! कठपुतली विद्रोह पर आमादा हो जाए!! वह देशद्रोहियों के लिए जी का जंजाल बन जाए ! वह देशद्रोहियों में खौफ भर पाए!!
कठपुतली को कभी छोटा न समझो। वह भी अपना रूप दिखा सकती है। वह कभी भी अपने भीतर बदले के भाव जगा सकती है और घमंडी को नीचा दिखा सकती है। वह सच की पहरेदारी भी बन सकती है।