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Nov 2024
जब सोचा मैंने
अचानक
विदूषक
अर्से से हंसी-मजाक नहीं कर रहा।
मैं बड़ी देर तक
उसकी इस मनोदशा को महसूस कर
बहुत बेचैन रहा।
वह जगत तमाशे से
अब तक क्यों दूर रहा ?
वह दुनियादारी के पचड़े में
अभी तक क्यों फंसा नहीं है ?


फिर भी
आज ही क्यों
उसकी हंसी हुई है गायब ।
जरूर कुछ गड़बड़झाला है!
क्या दुनिया के रंगमंच से
अपना यार
जो लुटाता रहा है सब पर प्यार,
रोनी सूरत के साथ प्यारा,सब से न्यारा
विदूषक प्रस्थान करने वाला है?

मैं जो भी उल जलूल, फिजूल
विदूषक की बाबत सोच रहा था।
मेरी कल्पना
कहीं से भी
सत्य के पास नहीं थी।
वह महज कपाल कल्पित रही होगी।
एकदम निराधार।

सच तो यह था कि
अचानक
विदूषक ने
खुद के बारे में सोचा,
मैं अर्से से हंसा नहीं हूं,

तभी पास ही
दीवार पर लटके दर्पण को
विदूषक के दर्प को
खंडित करने की युक्ति सूझी।
उसने विदूषक भाई से
हंसी ठिठोली करनी चाही।

सुना है
कि दर्पण व्यक्ति के
अंतर्वैयक्तिक भावों को पकड़ लेता है,
उसको कहीं गहरे से जकड़ लेता है।

यहीं
विदूषक खा गया मात।
दर्पण ने दिखला दी थी अपनी करामात।
उसके वह राज जान गया,
अतः विदूषक हुआ उदास।
और उसकी हंसी छीनी गई थी।


कृपया
विदूषक को हंसाइए।
उसके चेहरे पर मुस्कान लेकर आइए।
आप स्वयं एक विदूषक बन जाइए।
३१/०५/२०२०.
Written by
Joginder Singh
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