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Nov 2024
जीवन की
शतरंज में मोहरे
रणनैतिक योद्धे हैं;
केवल
ऊँट,घोड़े,हाथी,
सिपाही,
वज़ीर, बेग़म, बादशाह नहीं।
वे यथार्थ में
जीवन धारा को
दिशा देना चाहते हैं,
अपने मालिक की रक्षा करना चाहते हैं ।
इस के लिए
अपना बलिदान भी देते हैं।
यथा सामर्थ्य
अपनी जिंदगी जीते हैं,
एक एक करके जीवन रण से
विदा होते हैं।

कभी कभी मोहरे सोचते हैं,
सोचते भर हैं, कुछ कहते नहीं।
वे तो मोहरे हैं,
उन्हें तो जीवन की बिसात पर
चलाया भर जाता है,
आगे,पीछे,दाएं,बाएं,
इधर उधर ले जाया और
सरकाया जाता है।
वे नियमों में बंध कर
अपनी भूमिका निभाते हैं।
बादशाह को बचाना उनका फ़र्ज़ होता है,
प्यादे से लेकर वज़ीर,बेगम सभी बादशाह को
जिंदा रखने की कोशिश करते हैं।
मोहरे तो बस
अपने प्राण न्योछावर करते हैं।
उनके वश में कुछ नहीं,
मालिक की मर्ज़ी ही उनके लिए सही।
वे मालिक की इच्छा को
अपनी इच्छा मानते हैं
क्योंकि वे केवल मोहरे हैं,
मोह से वे बचते हैं,
मरकर  ही वे मोक्ष पा जाते हैं।
इनका जीवन काल कुछ क्षण का होता है,
जब तक खेल जारी रहता है, वे हैं,वरना डिब्बे में कैद!!

जीवन में खेल खेला,
कुछ पल के लिए उतार चढ़ाव,
झंझट,झमेला, मोहरों ने झेला!
और खेल खत्म के साथ ही रीत गए!
समय यात्रा पूरी कर रीत, बीत गए!
दो खिलाड़ी मनोरंजन के लिए खेले।
कभी जीते,कभी हारे,कभी हार न जीत ।

मोहरे तो बस अपनी भूमिका का निर्वहन करते हैं।
लोग बेवजह शतरंजी चालें चल,
एक दूसरे को निर्वसन करते हैं।

मोहरे इंसानों की तरह
स्वतंत्र सोच नहीं रखते ।
वे तो मोहरे हैं,
वे उसी के हैं,
जिसकी बिसात में वे बिछे हैं।
खिलाड़ी बदला नहीं कि
वे छिछोरे  हो जाते हैं,
वे उसका कहना मानते हैं,
जिसके वे अधीन होते हैं,
एकदम मोह विहीन! निर्मोही!!
  ०९/०५/२०२०.
Written by
Joginder Singh
49
   Vishal Pant
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