खाक अच्छा लगता है जब अचानक बड़ा धक्का लगता है भीड़ भरे चौराहे पर जिंदगी यकायक अकेला छोड़ दे ! वह संभलने का मौका तक न दे!! पहले पहल आदमी घबरा जाता है , फिर वह संभल कर, आसपास भीड़ का अभ्यस्त हो जाता है, और खुद को संभालना सीख जाता है। जिंदगी दिन भर तेज रफ्तार से भाग रही है। आदमी इस भागम भाग से तंग आ कर क्या जिन्दगी जीना छोड़ दे ? क्यों ना वह समय के संग आगे बढ़े! आतंक के साए के निशान पीछे छोड़ दे! जब तक जीवनधारा नया मोड़ न ले ! जिंदगी की फितरत रही है... पहले आदमी को भंवरजाल में फंसाना, तत्पश्चात उसे नख से शिखर तक उलझाना। सच यह है... आदमी की हसरत रही है, भीतर के आदमी को जिंदादिल बनाए रखना। उसे आदमियत की राह पर लेकर जाना। थके हारे को मंज़िल के पार पहुंचाना। बड़ा अच्छा लगता है .... पहले पहल आदमी का लड़खड़ाना, फिर गिरने से पहले ही, खुद को पतंग सा उठाना ....और मुसीबतों की हवा से लड़ते हुए ... उड़ते जाना। १५/०२/२०१०.