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Mar 14
ज़िन्दगी का एक दिन कम होता हैं
छुट्टी का एक दिन खरीब होता हैं
ज़िन्दगी किस्से नहीं हैं प्यारी
यह बस अपना अपना नसीब होता हैं

आँखों में आसु , दिलो में अरमान
मुट्टी मे खाक , निगाहो में आसमान
न अपने कुछ कह सके न पराए
हर निगह यह पुछे ' तू लौट के कब आए ‘

ये    गलियां  मुझे सवाल कर रहीं हैं
हर एक के आँख से गंगा क्यो बह रही हैं
हर पल बरस के सम्मान  लगने लगा
अपने   कंधों कि तरह आकाश भी झुकने लगा
हर बेवतन प्यार का गरीब होता हैं
छुट्टी का एक दिन खरीब होता हैं

खत में अपनी तन्हाई का ज़िक्र करू
या    दामन छुड़ाती जवानी कि फ़िक्र करू
कागज़ पे लिखे लफ्ज़ आंसू से मीठ जाते हैं
गीले खत अपने लोग कैसे पढ़ पाते हैं
इंतेज़ार रहता हैं हर पल फ़ोन का
जिस दिन चिट्टी न आए , दिन हैं मौन का
जब घर बात करू , दिल वही रह जाता हैं
ज़बान से कम, आँखो से सब बह जाता हैं
न ख़ुशी में , न गम मैं शरीक होता हैं
छुट्टी का एक दिन खरीब होता हैं

यहाँ आना चक्रवीहु कि   तरह  होता हैं
कल के उम्मीद मे आदमी सारी उम्रः खोता हैं
यहीं अरमानो में दिन निकल जाते हैं
हालत देखकर पत्थर भी पिगल जाते हैं
जब जब हम अपने गांव  छुट्टी पर जाए
कब लौट रहे हो , सब ये याद दिलाए
अपना देश क्यो परदेश सा लगता हैं
हर कोई हमे गैर सा सुलूक़ करता हैं
आलम मत पुछो जब छुट्टी ख़तम होती हैं
यहाँ आसमान क्या ज़मीन भी रोती हैं
वक़्त के दलदल में आदमी खो जाता हैं
ख्वाबो कि चादर ओडकर सो जाता हैं
धन पाकर भी कोई बदनसीब होता हैं
छुट्टी का एक दिन खरीब होता हैं
The feeling of lonely expat workers in Saudi, away from family for months together. Every passing day reduces the life span by a day, but every passing day brings the vacation nearer by a day. Experience of a person before, during, and after the vacation.
Written by
RAFIQ PASHA
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