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Feb 23
वो अंधेरी ताखों पे रखी किताब,
वो अंधेरा कमरा वो सूखा गुलाब,
लबों पे सिसकती वह खारी नमी,
मुकम्मल से सपने और उसकी कमी,
चुभती वो सांसें वह चुभती महक,
कानों में चुभती वो मीठी चहक,
सूजी वो आँखें वो काले से घेर,
एक कोने में रखे खतों के वो ढेर,
कानों में बजती वो टिक टिक घड़ी,
इक तस्वीर बिस्तर पे टूटी पड़ी,
एक रूठी कहानी का रूठा सा हिस्सा,
अधूरे से ख्वाब और अधूरा सा किस्सा,
उदासी की फिर वह लकीरें मुसलसल,
रह रह तड़पती वह लहरों की हलचल,
समुंदर हो जैसे उमड़ता हुआ,
वह अपनी ही लहरों से लड़ता हुआ,
डराते वो अक्स, वो झिंगुर का शोर,
मन्नत से बाँधी वो हाथों पे डोर,
टूटी सी मन्नत वो रूठा सा रब,
मांगे से मिल जाए होता है कब ?
होता है क्यूँ  कोई अपना पराया,
होता मगर पास होता न साया,
ये रिश्ते ये नाते ये प्यार-ए-वफ़ा,
इक उसकी मोहब्बत और दिल की ख़ता,
इक मीठे से सपने सी सोते हुए,
मुकम्मल था सब उसके होते हुए,
अब कोई ना ख़त है ना कोई जवाब,
ख़ुशियों के लम्हे हैं ओढ़े हिजाब,
वो अंधेरी ताखों पे रखी किताब,
वो अंधेरा कमरा वो सुखा गुलाब,
Arvind Bhardwaj
Written by
Arvind Bhardwaj  Chandigarh
(Chandigarh)   
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