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Jan 9
हो त्रस्त आँखें रोज़ पूछे
तड़पे पानी बूँद के,
तू कितना मुझको व्यर्थ करता,
बैठा आँखे मूँद के,

वो देख चक्कर काटती,
सर धूप नंगे पाँव हैं,
रख सर घड़े जाती है जो,
बुन्देल उसका गांव है,

नन्ही मेरी ये प्यारी बिटिया,
छोटी मगर मुझसे बड़ी,
देने को पानी घूँट वो,
झुलसाए तन घंटो कड़ी,

ऐसी मेरी इक और बिटिया,
गयी पिछले माह जो धुप में,
लौटी ना जब, ढूंढा तो पाया,
मृत सबने उसको कूप में,

मौसम है या ये काल है,
धरती का सीना फट रहा,
नद, झील,बादल, नीर में,
आँखों का अब तो घट रहा,

समझाऊ कैसे तुमको मैं,
ज़ोर तुमपे ना सरकार पर,
खोके बहुत से अपने मैं,
बैठा हु सब कुछ हारकर,

बस सोच ये पानी जो तू,
है व्यर्थ इतना कर रहा,
इस एक पानी बूँद को,
कहीं प्यासा कोई मर रहा।
Arvind Bhardwaj
Written by
Arvind Bhardwaj  Chandigarh
(Chandigarh)   
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