HePo
Classics
Words
Blog
F.A.Q.
About
Contact
Guidelines
© 2024 HePo
by
Eliot
Submit your work, meet writers and drop the ads.
Become a member
Armin Dutia Motashaw
Poems
Jun 2023
नकाब
🫢
नकाब
बच्चपनमे,सरकस में हमने देखा ही है, जोकरों को; लगाते है वो ढ़ेर सारे नकाब ।
और बच्चों को उनकी करामात प्रदशित कर के, उत्पन करते हैं उनमें अनगिनत ख्वाब ।
पर हमारे निजी जीवन में भी, हमारे असली चेहरे पर होते है, दो या तीन नकाब ।
असली चेहरा हमारा, हम छुपा के रखते है, पर दिख जाती है कभी कभार, हमारी असली झलक !
बाहरवाले देखते है हमारा नकाब, जो पहनके, उन्हे हम दिखाना चाहते है, एक जूठी झलक।
इंसान कितने भी चेहरे मोहरे बदले; सच्चाई देख सकता है हमारा रब, क्योंकि विशाल है फलक।
लाख छुपाएं हम अपनी असलियत, वो तो देख ही लेता है, भांप ही लेता है हमारी असलियत।
पर्दा कितना भी कीमती और हसीन क्यों न हो, पर रबकी आंखे है तीक्ष्ण, देख लेती है हर किसी की असलियत ।
तो फिर हम इंसान, क्यों पहनते है यह नकाब? शायद दूसरों को पता नहीं चल सके हमारी असलियत ।
Armin Dutia Motashaw
Written by
Armin Dutia Motashaw
Follow
😀
😂
😍
😊
😌
🤯
🤓
💪
🤔
😕
😨
🤤
🙁
😢
😭
🤬
0
107
Please
log in
to view and add comments on poems