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Nov 2022
सुनी थी उसकी मांग, बिना सिंदूर; और ललाट था बिना कुमकुम

बिना पायल के पैर कितने बेजान लगते थे, गायब हो गई थी रुमझुम

अब खाली था हंस जैसा नाजुक उसका गला भी, मंगल सूत्र बिना;

मुश्किल हो गया था उसे एक एक सांस लेना; सोच रही थी, यह कैसा जीना !

चूडियोसे खनकती थी जो भरी हुई कलाई, थी खाली और सुनी सुनी

कितनी जतनसे इन गोरे गोरे हाथों पर, उसकी सहेलिने मेहंदी की डिजाइन थी बुनी

पायल बिनाके पैर, हाथ फीके, कलाई सुनी, न मंगलसूत्र, न बिंदिया न सिंदूर

और उसकी खुशियों का तो हो गया था खून, नज़र नहीं आती थी वो दूर दूर

अब जीवन यह पहाड़ जैसा, बीतेगा कैसे; बिना  पिया के,जिंदगी कटेगी कैसे

बागो से बहार अचानक गायब हो गई कहाँ, और यह पतझड़ आई कहाँ से और कैसे

Armin Dutia Motashaw
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