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Armin Dutia Motashaw
Poems
Sep 2022
एक आश
एक आश
छुपी हुई है मनमें एक आश; काश हम सब अलग अलग हो कर भी, दिल-ओ-दिमाग से होते एक ;
दिलमें चाहत है एक छुपी हुई; भले अलग अलग व्यंजन खाये, पर मिलझुल कर, थोड़ा सा बाट कर खाये;
पहेरवेष अलग हो, भले कपडोके रंग और डिज़ाइन अनेक हो; पर दिलसे हम सब जरूर एक हो ।
बोली भले हर १२ गांवके बाद बदलती हो, पर एकता लाये, ऐसी एक भाषा भी तो हमे चाहिए ।
हिंद की अपनी भाषा, हिंदी, अभिसे इसे गर्व से सब बोले, ऐसा करें निश्चय सब मिलकर आज ही से ।
हिंदी में एक मिठास है, एक अपनापन है; चलिए, आइये, मातृभाषा, राष्ट्रभाषा का गर्वसे करे प्रयोग;
जहाभी हो सके, जितना भी हो सके आज से चलो राष्ट्रभाषा और मातृभाषा का करें उपयोग ।
सरकारसे एक नम्र निवेदन है, भाषा अगर सरल हो तो आएगी आसानीसे हरएक को समझमे;
तो जितना हो सके, पहोचिये लोगों तक, उनके दिलों तक, लिये सरल भाषा ।
बस यह मधुर भाषा का हर कोई करे प्रयोग, इतनी है छोटीसी आशा; क्या कर सकती हूं मैं यह आशा ?
Armin Dutia Motashaw
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Armin Dutia Motashaw
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