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Aug 2022
एक बहनका दर्द; उसकी आहें सर्द, उसकी सिसकियां, जरा सुनिए....

काश वो उसके भाइयो को सुनाई देती,  उन्हें महसूस होती

आजके दिन भी, मुझे एकभी भाई याद नहीं कर रहा है; रिश्तों की खो गई है एहमियत

या तो इस बेकदर, व्यापारी दुनियाकी, बदल रही है, नियत

अब यहाँ हर चीज़ है बिकाऊ; वक़्त तो बड़ी तगड़ी किमतमे बिकता है, मानो हो कोई महँगी कैफियत

काश वो थोड़ी फिकर करते मेरी, तो यह असहय दर्द कुछ तो हल्का हो जाता;

एक मिनिट मेरे लिए भी वो लोक निकालते, काश एक फोन मुझे भी आ जाता !

ऐ मालिक, तू तो है दयालु, कृपानिधान;काश तेरा यह गुण, हम इंसानों में आ जाता !

इस कठोर दुनियां में, अचनाकसे थोड़ी कोमलता, कहीं से आ जाती

साथ उसके मेरे लिए, मेरे भाई का, घड़ी भर का वक्त भी ले आती ।

तो एकबार फिर बचपन आ जाता, खिल खिलाकर जल उठते, यह दिया और बाती ;

भाई मेरे, भले मुझे करे न करे याद,
मैं तो, भेज रही हूं उन्हें मेरा प्यार और आशीर्वाद।

Armin Dutia Motashaw
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