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Vilakshan Gaur
Poems
Jul 2022
सज़ा अभी अधूरी है
हवा चलती है, मगर लगती नहीं
क्षमा जलती है मगर जलती नहीं
सांसें दौड़ती हैं, थकती नहीं
मैं उनसे कहता हूं की थम जाओ
लेकिन वो सकती नहीं
"अभी और चलना जरूरी है
तेरी सज़ा अभी अधूरी है"
Written by
Vilakshan Gaur
26/M/India
(26/M/India)
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