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Armin Dutia Motashaw
Poems
Jun 2022
प्यासी धरती करे पुकार
प्यासी धरती करे पुकार
धूपमें तप के हो गई हूं मैं, जलता हुआ अंगार; कहे बिचारि यह धरा
चाहिए अब मुझे ठंडी ठंडी बौछार, और श्रृंगार सुंदर और हरा
नदियाँ हो रही है मेरी खाली, और सागर पानी से खूब है उभरा
सालभरकी प्यास बुझाने मेघराजको मैंने है, किया पुकार
आकाशको की है मिन्नतें हज़ार, जी भरके खोल दे आज तेरे द्वार
जी भर के मुझपे बरसना आज, सुन ले, इस धरतिने है तुझे पुकारा
ऐ हवा, लाना तू बदरीयां काली, ओ बदरी बरसा जा जल की धारा
आत्मा है मेरी प्यासी, तृप्त कर दे तू मुझे आज, कर दे मुझे हरा, ओ मेरे यारा
झूम झूमके बरस, प्यासी धरती आज करती है तुझे अंतरमनसे पुकार
बरसना होगा अब तुझे, तन मन है मेरा प्यासा, निभाना होगा तुझे वादा-ए- प्यार
मेरा अंतर है प्यासा, तुझे बरसना होगा यहाँ, निभाना चाहती हूं मैं यह व्यवहार
याद रखना सदा यह बात, प्यार तो आखीर प्यार है, नही कोई व्यापार ।
Armin Dutia Motashaw
Written by
Armin Dutia Motashaw
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