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Armin Dutia Motashaw
Poems
May 2022
मायानगरी
मायानगरी की माया
मायानगरी की माया तो जरा देखो, लोक पूरे देश से उमड़के आ जाते हैं यहां
गाँवका बडा सा घर छोड़ के आते हैं यहाँ, सर भी मुश्किलसे छिपता नहीं जहाँ
खुदका सब कुछ लगाके दाँवपर, बेचकर आ जाते है, किस्मत अपनी आजमाने यहाँ
करनि पड़ती हैं तन तोड़, कड़ी मेहनत, उठानि पड़ती हैं खूब जेहमत, फिर भी आ जाते हैं, मायानगरी में रहने यहाँ
बम्बई नगरी में जैसे कोई खिंचाव महसूस होता है, कोई लोहचुम्बक हो; लोक आते ही रहते हैं यहाँ
समुन्दर की लहरे जैसे आती ही रहती है किनारे, वैसे ही लोक खिंचे चले आते हैं यहाँ
भोजन तो मिल भी जाए पर घर और नौकरी मिलती नहीं है यहाँ;
कुटुंब काबिले से रहना पड़ता है दूर, अकेले यहाँ, फिर भी न जाने क्यों लोक आते है यहाँ !
बॉम्बे से तो बन गया है यह मुम्बई, अब क्या बनेगा एक मायापुर या मयनगर यहाँ?
काश टाटा बसा लेते एक नया नगर बॉम्बे जैसा, टाटानगर; तो लोगों को घर, खाना पानी मिल जाता यहाँ ।
Armin Dutia Motashaw
Written by
Armin Dutia Motashaw
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