क्या तीव्र था अस्त्र आमंत्रण शस्त्र दीप्ति थी क्या उत्साह, जैसे बरस रहा गिरिधर पर तीव्र नीर लिए जलद प्रवाह। राजपुत्र दुर्योधन सच में इस योद्धा को जाना हमने, क्या इसने दु:साध्य रचे थे उस दिन हीं पहचाना हमने। लक्ष्य असंभव दिखता किन्तु निज वचन के फलितार्थ, स्वप्नमय था लड़ना शिव से द्रोण पुत्र ने किया यथार्थ। जाने कैसे शस्त्र प्रकटित कर क्षण में धार लगाता था, शिक्षण उसको प्राप्त हुआ था कैसा ये दिखलाता था। पर जो वाण चलाता सारे शिव में हीं खो जाते थे, जितने भी आयुध जगाए क्षण में सब सो जाते थे। निडर रहो पर निज प्रज्ञा का थोड़ा सा तो ज्ञान रहे , शक्ति सही है साधन का पर थोड़ा तो संज्ञान रहे। शिव पुरुष हैं महा काल क्या इसमें भी संदेह भला , जिनके गर्दन विषधर माला और माथे पे चाँद फला। भीष्म पितामह माता जिनके सर से झरझर बहती है, उज्जवल पावन गंगा जिन मस्तक को धोती रहती है। आशुतोष हो तुष्ट अगर तो पत्थर को पर्वत करते, और अगर हो रुष्ट पहर जो वासी गणपर्वत रहते। खेल खेल में बलशाली जो भी आते हो जाते धूल, महाकाल के हो समक्ष जो मिट जाते होते निर्मूल। क्या सागर क्या नदिया चंदा सूरज जो हरते अंधियारे, कृपा आकांक्षी महादेव के जगमग जग करते जो तारे। ऐसे शिव से लड़ने भिड़ने के शायद वो काबिल ना था, जैसा भी था द्रोण पुत्र पर कायर में वो शामिल ना था। अजय अमिताभ सुमन : सर्वाधिकार सुरक्षित
मानव को ये तो ज्ञात है हीं कि शारीरिक रूप से सिंह से लड़ना , पहाड़ को अपने छोटे छोटे कदमों से पार करने की कोशिश करना आदि उसके लिए लगभग असंभव हीं है। फिर भी यदि परिस्थियाँ उसको ऐसी हीं मुश्किलों का सामना करने के लिए मजबूर कर दे तो क्या हो? कम से कम मुसीबतों की गंभीरता के बारे में जानकारी होनी तो चाहिए हीं। कम से कम इतना तो पता होना हीं चाहिए कि आखिर बाधा है किस तरह की? कृतवर्मा दुर्योधन को आगे बताते हैं कि नियति ने अश्वत्थामा और उन दोनों योद्धाओ को महादेव शिव जी के समक्ष ला कर खड़ा कर दिया था। पर क्या उन तीनों को इस बात का स्पष्ट अंदेशा था कि नियति ने उनके सामने किस तरह की परीक्षा पूर्व निश्चित कर रखी थी? क्या अश्वत्थामा और उन दोनों योद्धाओं को अपने मार्ग में आन पड़ी बाधा की भीषणता के बारे में वास्तविक जानकारी थी? आइए देखते हैं इस दीर्घ कविता “दुर्योधन कब मिट पाया” के चौबीसवें भाग में।