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Jul 2021
प्रकृतिकी रीत


मौत धीरे धीरे पास आ रही थी, मानो जान हाथोंसे छूट रही थी

प्रकृति ने हस कर कहा, यही उसकी रीत, एकदम सही थी;

भला, नदी कब सगरसे निकालके  पहाड़ की तरफ बही थी !

प्रकृतिने कभी भी, युगोसे, ऐसी कहानी कही नहीं थी ;

बचपन गया, जवानी ढली, वृद्धावस्थामे जान हाथोंसे छूट रही थी;

मानो, बुढापा कह रहा हो, रेत हाथोंसे फिसलती नज़र आ रही थी ।

यही है प्रकृति का नियम, यही जीवनकी रीत, सही थी।

अब तो दिख रहा है, मौत पास आ रही थी, और जान दूर जा रही थी।

Armin Dutia Motashaw
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   SUDHANSHU KUMAR
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