ख़ामोशी इन फ़िज़ाओं में है बहुत गहरी मगर, इन हवाओं में तेरी मौजूदगी की ख़ुशबू भी है, ना हिलाओ इन बहती हवा के झोंकों को अपने शोर से ओ पंछी, उसकी सांसों की तरंगे हौले हौले मुझ तक पहुंच रही हैं
कहीं दूर से गुनगुनाती कोई आवाज़ आ रही है, उसे सुनने से अजीब सा सुकून मिल रहा है, ना मिलाओ अपनी आवाज़ों का शोर उसमें, ओ दरख़्तों की घनी पत्तियों, कुछ पल मुझे उसकी यादों में गुज़ार लेने दो
सूरजमुखी भी आज सूरज को नहीं देख रहा उस ओर से आती तेज़ किरणों की चमक उसे भी धोखा दे गई, बादलों ज़रा सूरज को ढंक दो तुम, मैं कुछ पल उसके चेहरे की चमक से ख़ुद को सेंक तो लूँ
एक अरसा हुआ उससे रूबरू हुए, पर फिर भी उसकी पायल की खनक याद है मुझे, यहीं कहीं कुछ घुँघरू बिखरे पड़े हैं, शायद यहीं से कभी वो गुज़र के गई तो नहीं?
अपने रंग बिरंगे पंखों से हमें यूं न सताओ तुम तितलियों, उसकी पोशाकों के रंगों की फ़ेहरिस्त बड़ी लंबी है, हमे बस उसी में खो जाने दो
ए चमन के ख़ूबसूरत फूल तुम्हारी शोख़ी से मुझे कोई शिकवा नहीं बस अपनी ख़ुशबू को ज़रा कम कर लो यह गुज़ारिश है, यहीं कहीं से आ रही है उसकी मौजूदगी की खुशबू, हमें उसी की ख़ुशबू में सो जाने दो।