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Jan 2021
बहुत दिन चला, दिल और दिमाग के बिच यह कलेश;

फिर भी, कोशिशों के बावजूद, कट गये मेरे लंबे,घनेरे केश ;

नानी, आपको दिया वचन निभा न सकी, इस लिये पहोची है दिल को ठेस ।

हाय, बड़ी बेबसी में, काटने पडे मुझे, मेरे यह लम्बे केश ।

आज तक समज नहीं आता है, यह हुआ क्यु और  कैसे !

मानो  कोई काला जादु किया हो किसिने जैसे !

क्या इसी तरह जिवनभर, आता रहेगा जिवन में कलेश यूँही?

मानो मानव रचा ही गया हो कलेशो  के साथ लड़ने, झुंझने ऐसे !

दाता, जिवन में क्यु आती है इतनी कठिनाइयाँ , दिन रात

यह कैसी  विडंबना, यह, आपकी तरफ से, कैसी सौगात

ऐसे खिलौने रचके, आखिर इरादा क्या है; समजमें न आये यह बात ।

कब आ के बतायेगा तु मुझे, क्यूँ रची तुने यह अजीबोगरीब मानव जात?

Armin Dutia Motashaw
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