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Dec 2020
निशानी

जब गया तूं, कभी भी न लौटने के लिए, तो मोहन, एक  निशानी तो  छोड़ जाता !

नैन बिछाये बैठे रहे, मेरा प्यार, शायद तुझे, इस ओर  खिंचके लाता  

न कोई निशानी छोडी, जिसे हम दिलसे लगाये रखते; बस याद में तेरी रोते रहे

पर तूं तो लौटा ही नहीं, और हम आश लगाये बैठे रहे, बस  बैठे ही रहे

तूं कभी वापस न आया; मौसम बदले, सालों बीते, पर तूं लौट के न आया ।

जीना चाहते न थे, पर जीना पडा; तो तेरे मोर पंखको हमने सिने से लगाया ।

वही तुझे बहुत प्यारा था, तो बनाके उसे  तेरी निशानी,  हम वही उठा लाये

चाहते थे आँसू बहाना पर वोह भी नहीं किया; कही जमुनजी में, बहाड़ न आ जाये!

क्यूँ छोड़ के यह प्यार भरा संसार, बन बैठा तूं द्वार्काधीश, दुर जाके मुझसे ?

पर मोहन मेरे, इस एक पंख के सहारे, यह तेरी राधिका रह नहीं पाती है दुर तुझसे ।

लगाये बैठी हूँ सीनेसे, यह पंख, जो है तेरी निशानी, जो है मुझे जान से प्यारी ।

भले तु माने न माने, बडी मजबुर है यह तेरी राधिका, कब तक चलाएगा तूं, यूह दिल पे मेरे आरी?

Armin Dutia  Motashaw
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