मैं पैदा हो सकता था उस मां की कोख से या फिर उस मां की कोख से लेकिन हुआ इस मां की कोख से जिसके पति का नाम यह था।
मुझे किसी ने पूछा नहीं ना किसी ने जानने की कोशिश की बस बोल दिया कि तू यह धर्म का है और यह तेरी जाती है।
पर जब बड़े होकर मैंने इन जंजीरों को तोड़ ना चाहा तो जाना कि मेरे अपने ही व जंजीर बने बैठे थे।
जब विवश होकर मैं छठ पटाया तो पाया कि वह हाथी की रस्सी जो जंजीर बने बैठी थी वह टूट गई और तब समझ में आया कि उस हाथी की रस्सी की कोई गलती नहीं थी वह तो बस मेरी परीक्षा थी।
मैं पैदा हो गया उस मां की कोख से जिसके पति का नाम यह था।