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Armin Dutia Motashaw
Poems
Oct 2020
फिर एक बार
फिर एक बार
आज फिर से मचा है राष्ट्र भर में हाहाकार ;
सोचती हूँ, कब तक होता रहेंगा ऐसा अत्याचार;
देश की एक बेटी, बर्बाद हुई है फिर एक बार;
हुआ है उसका समग्र जिवन, तार तार
पर अब तो लोगोको आदत सी हो गई है, सुनने की यह चित्कार!!!
शरीर नोचा गया, आत्मा घायल, मन घायल; यही होता है बार बार;
जब तक मनुष्यता नहीं जागेगी, यह तो होता रहेगा लगातार ।
मात पिता, भाई बंधु, पतिओ के लिए है एक ललकार;
जागो, खत्म करो इन वैशि दरिंदो को, नही तो होता रहेगा यही बार बार ।
दुर्गा, काली बन जा तू स्वयं ; अब यही है एक उपचार ।
मर जाने से हांसिल कुछ नहीं होता, उठा हाथ और अब तुहि उसे मार ।
ओ वैशि दरिंदो, तुमहारि बिमारी का अब ऐसे ही करना पड़ेगा उपचार;
न जेल, न कानुन, हर दुर्गा, हर काली अब तुम पर करेगी वार ।
Armin Dutia Motashaw
Written by
Armin Dutia Motashaw
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