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Aug 2020
मेरी किस्मत मे मेरे ख्वाबों का बसेरा  ही नहीं,
मेरे अँधेरों पे उजालों का साया ही नहीं,
क्यूँ दूर हो जाती है मेरी मंजिल अक्सर ,
जब भी दीप जलाऊँ तभी आंधियों का मंज़र,
किसी की ख्वाहिश लेकिन शायद ये ख्वाहिश ही है,
किसी साहिल को क्यूँ तलाश अपने किनारों की है,
किनारे आते- आते ही कश्ती डूब जाती है ,
इश्क मोहब्बत अपने लिए थी ही नहीं यारों,
हम तो गुड्डा- गुड़ियों की शादियों मे खुश हुआ करते थे,
यूं बना कर ताश के पत्तों के मकां ,
हवाओं के रूख को देखा करते थे !!
Written by
rajni gupta  39/F/Mumbai
(39/F/Mumbai)   
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   Raj Bhandari
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