चला जा रहा हूँ अंजान से एक सफर में साथ न कोई साथी किसी मंजिल का एक साये के पीछे न जाने किसकी तलाश में एक चेहरा ढूंढता हूँ न जाने किसकी आस में कभी कोई मिलता है तो ये सोंचता हूँ कि ये वही तो नहीं जिसका ये साया है इस अंजान से चेहरे ने ,न जाने किसका चेहरा पाया है क्यूँ नहीं समझ पाता ,मैं उसकी बातें इसी शरारत में निकल गयीं ,न जाने कितनी रातें हंसता हूँ कभी कभी अपनी इसी नासमझी पर पल हैं ये बड़े मजेदार अपनी जिंदगी के देखता हूँ कब वह खूबसूरत मुकाम मिलता है जीवन के इस सफर में ,हमसफ़र कोई मिलता है ऐ अंजान से साये मुझ पर कुछ तो तरस खा तेरे पीछे ये कौन छिपा है उसका चेहरा मुझे बता दिल के इस कोरे कागज़ पर कोई तो नाम हो आँखों पर जिसका चेहरा होंठों पर दुआओं का काम तो हो ....