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prabhat pandey Nov 2020
गिरी इमारत कौन मर गया

टूट गया पुल जाने कौन तर गया

हक़ मार कर किसी का

ये बताओ कौन बन गया

जिहादी विचारों से

ईश्वर कैसे खुश हो गया

धर्म परिवर्तन करने से

ये बताओ किसे क्या मिल गया  

जाति ,धर्म समाज बंट  गये

आकाओं में राज बट गये

आज लड़े कल गले मिलेंगे

वो सारे जज्बात बंट गए ||



नफरतों की आग में

यूँ बस्तियां रख दी गईं  

मुफ़लिसों के रूबरू

मजबूरियां रख दी गईं

जीवन से मृत्यु तक का सफर ,कुछ भी न था

बस हमारे दिलों में

दूरियां रख दी गई

लोगों ने जंग छेड़ी

जब भी कुरीतियों के खिलाफ

उनके सीने पर तभी

कुछ बरछियाँ रख दी गईं ||



मुजरिम बरी हो गया

सबूत के अभाव में

देखो न्याय की आश में

कितनी जमीनें बिक गईं

बेकारी में पीड़ित है

देश का हर कोना

फिज़ा -बहार ,धूप -छांव

यूँ ही बदल गई

लोगों ने जब कभी , एकता का मन किया

धर्म की दोनों तरफ ,बारीकियां रख दी गईं ||



'प्रभात ' भूमिकाएं अब नेताओं की ,श्यामली शंकित हुई

मुस्कान के सूखे सरोवर ,भ्रष्ट हर काठी हुई

दिन के काले आचरण पर ,रात फरियादी हुई

रोशनी भी बस्तियों में ,लग रही दागी हुई

डगमगाती है तुलायें , पंगु  नीतियां हुई

असली पर नकली है भारी ,मात सी छायी हुई ||
prabhat pandey Oct 2020
क्यों सपनों के विम्ब ,अचानक धुंधले पड़ते जा रहे
पीड़ा के पर्वत जीवन राहों पर अड़ते जा रहे
क्यों कदमों को नहीं सूझ रही ,राह लक्ष्य पाने की
क्यों अस्मिता भीड़ के अन्दर खोती जा रही
क्यों आंसू का खारा जल दृग का आंचल धो रहा
क्यों अतृप्त भावों से मन व्याकुल हो रहा
क्यों लोग वेदना देकर मानस को तड़पा रहे
क्यों दुःख की सरिता में प्राण डूबते जा रहे
क्यों अब ईमान सरे बाजार बिक रहा
क्यों तल्खियों के बीच इन्सान पिस रहा
क्यों फूलों का शबनमी सीना ,अब रेगिस्तान बन रहा
क्यों व्यथित ह्रदय में करुणा का सिन्धु नहीं उमड़ रहा
क्यों नेता अपने श्वेत परिधान में ,आशा के बीज नहीं बो रहा
क्यों शीत की शीतता में कृषक संघर्षरत हो रहा
क्यों इन्सान अपनों से ही छल कर रहा
क्यों युवा अवसाद की गहराइयों में खो रहा
'प्रभात ' क्यों यहाँ पत्तों की रूहें कांप रहीं
क्यों मानवता की जड़ें इस सघन धरती से ,रह रह कर कतरा रहीं ||
prabhat pandey Aug 2020
चला जा रहा हूँ अंजान से एक सफर में
साथ न कोई साथी किसी मंजिल का
एक साये के पीछे न जाने किसकी तलाश में
एक चेहरा ढूंढता हूँ न जाने किसकी आस में
कभी कोई मिलता है तो ये सोंचता हूँ
कि ये वही तो नहीं जिसका ये साया है
इस अंजान से चेहरे ने ,न जाने किसका चेहरा पाया है
क्यूँ  नहीं समझ पाता ,मैं उसकी बातें
इसी शरारत में निकल गयीं ,न जाने कितनी रातें
हंसता हूँ कभी कभी अपनी इसी नासमझी पर
पल हैं ये बड़े मजेदार अपनी जिंदगी के
देखता हूँ कब वह खूबसूरत मुकाम मिलता है
जीवन के इस सफर में ,हमसफ़र कोई मिलता है
ऐ अंजान से साये
मुझ पर कुछ तो तरस खा
तेरे पीछे ये कौन छिपा है
उसका चेहरा मुझे बता
दिल के इस कोरे कागज़ पर कोई तो नाम हो
आँखों पर जिसका चेहरा
होंठों पर दुआओं का काम तो हो ....
prabhat pandey Aug 2020
There is a rebellion in your heart, the door to happiness

Capital of a lifetime, a happy family

Happiness is that lamp guys, everyone wants to light it

Happiness is the color, friends, everyone wants to be happy

Happiness was that era, there were paper boats.

There were earthen houses, there were thatch shops

Ramayan used to be heard somewhere, there were Ajnas everyday.

Happiness was noticed, now the item is all over

Happiness has been buried somewhere, humans have defeated it

It is unfortunate to prosper, riots happen everyday

The Republic cries here at the crossroads every day

Those who are rulers compare themselves to God

And the leader changes the color of today's era, just like a chameleon.

Nobody understands happiness, it does not get from wealth

happiness gets noticed, now she starts crying....
This Poem of mine is on the happiness of happiness. But as is being seen nowadays there is disturbance in the lives of people. People are not happy. It is a matter of contemplation.
prabhat pandey Aug 2020
Village life, now not the same
Where the relationship is, it's not sweet
Where there is soil but no fragrance
Where there is a pond, but no water
Where mangoes are showered, but do not smell fragrant
Village life, now not the same
Here people are done
People got hungry for happiness
Villages are now transformed into cities
The villages are now dazzled
In the blessings of the elderly
Which was a feeling of affection
In western culture, somewhere gone extinct
Feeling of celebrating together
Burned in a furnace like separation time
Village life, now not the same
Where does man have time to meet man
Humanity and brotherhood lost in urbanization
The intoxication of modernism engulfed everyone
Love that was deceit, it became a show
Every person escapes for money
The house of faith is now a ruin
Village life, now not the same......
This poem of mine throws light on the changes that are taking place in rural life over time. Somewhere it is a matter of contemplation…
prabhat pandey Aug 2020
तरक्की पैसा पावर की जात बता दी

इक वायरस ने दुनिया को उसकी औकात बता दी

हाहाकार करती आज प्रकृति है हारी ,त्राहि त्राहि है दुनिया सारी

क्यूँ मजाक किया इस धरती के संग ,क्या खूब दिखाये तूने इसको रंग

आज प्रकृति ने दुष्परिणामों का कहर बरपाया ,जग जीवन भी अब डगमगाया

अस्त्र शस्त्र के बिना जारी प्रकृति का युद्ध है

जो वरदान हुवा करता था ,अब वो ही विज्ञान क्रुद्ध है

इस वायरस ने इंसानी दावों की जात बता दी

इक वायरस ने दुनिया को उसकी औकात बता दी

महामारी हर सवाल का जवाब है ,हमने ही तो प्रकृति का किया ये हाल है

आज हमारे अत्याचार का वो जवाब दे रही ,अब हमें किस बात की हैरानी हो रही

अब  रब का क्यूँ इंतज़ार है ,भक्त कर रहे पुकार है

अब कुछ समझ आ रहा नहीं ,क्यूँ कोई कुछ कर पा रहा नहीं

सोंचो एक सूक्ष्म  वायरस ने ,तेरी हद बता दी पल भर में

विश्व विजेता का ,मजाक बना दिया पल भर में

तेरा दम्भ मिथ्या है ,बता दिया पल भर में

तेरे आविष्कार बौने हैं ,बता दिया पल भर में

तुम प्रकृति का सिर्फ रिमोट हो ,बता दिया पल भर में

बता दिया पल भर में ,प्रकृति से गुरुर मत दिखाना

अपनी बुराइयों को ,मानव से ही दिखाना

जब चाहेगी प्रकृति तुमको ,कमरों में  बंद कर देगी

तुम्हारे आविष्कारी वस्तुओं को ,मिथ्या सिद्ध कर देगी

प्रकृति को करता नमन हूँ ,मानव को है सिखाना

प्रकृति ही सब कुछ है ,इसे हर हाल में  है बचाना ||

— The End —