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Jul 2020
'क्वारंटाईन' जैसे एक अनबुझ पहेली
समझ ही न पाया सखी है या सहेली
कुछ अपना सा कुछ कुछ सपना सा
घुंगट मे शरमाए जैसे दुल्हन नई नवेली

बाईस को जनता कर्फ्यु से अविर्भूत हुआ
तेईस को लगा कुबूल हो गई हो दुआ
चौबीस को इक संदेश ने पलट दी बाजी़
क्वारंटाईन अब जैसे लगती है बद्दुआ

घर में रहो क्वारंटाईन से बाहर ना निकलो
चाहो तो चीन अमरीका इटली से सिखलो
अपनी सुरक्षा अपने हाथ यहि है केवल मंत्र
जान है तो जहान है न हो यकीं तो लिखलो

दुश्मन दरवाज़े पे खड़ा है जैसे के हो काल
क्वारंटाईन एकमात्र उपाय बचना है बेहाल
पल पल है भारी काटे कटता नहीं ये समय
सपने सुहाने न समझो 'राज' है ये मायाजाल

किस घडी़ दुश्मन दबोचले जपले हरिनाम
सब धरा रह जाएगा कोई न आएगा काम
इसलिए कहता हूं क्वारंटाईन है सच्चा साथी
की ग़र बेवफ़ाई वापस न आओगे किसी दाम
Raj Jairaj
Written by
Raj Jairaj  25/M/Akola
(25/M/Akola)   
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