अगर इन्सान को ना होता पेट ना कोई मजदूर होता , ना कोई सेठ. ना कल की चिन्ता होती, ना आज कि फिक्र मैफिल में बेबसी का ना होता ज़िक्र. ना गरीब के आँखो से आँसू बहते ना कोई बीना छत के दूनिया मेँ रहते. ना इन्सान दौड़ता धन के पीछे ना गिराता किसी को नीचे.' दुनिया मेँ कोई जंग ना होती गुरबत कभी किसी के संग होती .
यह कविता विशेष रूप से मेरे मित्र ‘ओबैद’ के विचारों पर विचार करने के लिए लिखी गई थी।