क्या खुबसूरत है, ये रिश्तों का समा भी, जो दूर है, उनसे एक पल का भी फासला नही, और जो साथ है, उनसे फास्लों के अलावा कुछ नही, कुछ अपने होकर भी पराये है, तो कुछ पराय होकर भी अपने, रिश्तों के इस सफर में, ये रिश्तों के धागे, कुछ अलग ही उलझे है, कुछ उलझे हुए ही ठीक है, तो कुछ सुलझ जाए तो ही बेहतर है! फिर भी खुबसूरत है, ये रिश्तों का समा!!!