Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Jun 2020
काश इन परेशानियों का भी कोई आशियाना होता,
कम्बख्त रोज़ तो मेरे यहाँ यूं ना चली आती,
या फिर काश ये कोई चीज़ ही होती,
ताकी इसे मैं किसी अटेची में भरकर,
किसी विरानी सी जगह छोड ही आता,
काश इन्हे खुद पर कुछ तो गुरूर होता,
तो ये रोज़ तो मेरे यहाँ यूं ना चली आती!
तो ये रोज़ तो मेरे यहाँ यूं ना चली आती!!!!
Written by
Purva Barva  22
(22)   
115
 
Please log in to view and add comments on poems