ए इन्सान तू इत्ना तो सोचना कभी, की इत्ना गुरूर खुद पर किस बात का? जबकी तेरा खुद का तो कुछ भी नही, तुझे जन्म देने वाला भी कोई और, और चिता देने वाला भी कोई और, तू लेकर भी कुछ ना आया था, और ना लेकर कुछ भी जायेगा, तो फिर गुरूर किस बात का? ए इन्सान, बस तू इत्ना तो सोचना कभी! बस तू इत्ना तो सोचना कभी!