अपनों के फरेब ने जहन मैं सवालों का घर बना दिया. जवाबों की चाहत मैं खुद को हमने मुसाफिर बना दिया. चलते चलते कुछ यूँ ही हमने खुद को पा लिया. सवालों की फिक्र छोड़ खुशियों का घर बना लिया. जिंदगी ने दोस्त बनकर खुलके जीना सिखा दिया. मुसाफिर हूँ यारो मैंने , धरती को अपना बना लिया.
वक़्त बेवक़्त अब घुमता हूँ , बिना कोई चिंता लिये. झोली भर ली अपनी मैंने, हजार नयी खुशियाँ लिये. चाँद तारों को निहारते , मुस्कुराना सीख लिया. बिना कोई मंजिल चुने अब , मैंने चलना सीख लिया. नयी भोर, नयी राहें , नया सब कुछ पा लिया. मुसाफिर यूँ यारो मैंने , धरती को अपना बना लिया.