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May 2020
बोहोत कुछ सीखा है मैने,
कुछ ज़िन्दगी है, मजबूरियां है ।
उसने गिराया, चलाया, भगाया, रुलाया,
और हम सीखते चले गए ।
ज़िंदगी के कई मोड़ पर,
खुद को अकेले भी पाया ।
भीड़ में भी अपनेपन का एहसास,
कोई ना करवा पाया ।
दर्द देखा, सेह लिया ।
बुरा लगा, संभाल लिया ।
को कितना साथ है, देख लिया ।
सच क्या है, मान लिया ।
मुश्किले है, सुलझाने का प्रण लिया ।
हार मानने से भी इंकार किया ।
बोहोत सिखाया मुझे ज़िन्दगी ने,
बोहोत गिराया है,
इसलिए बोहोत कुछ सीख लिया है मैने खुड्से ही ।
सीखना पड़ा ही, मजबूरियां थी ।
हार मानने का भी कभी इरादा नहीं,
क्यूंकि घर बैठी उस मां के इच्छाओं पर सवाल आया है ।
"कुछ कर दिखाना है सबको",
ऐसा नहीं सोचते अब ।
क्यूंकि काफी कुछ करते आए है,
आजतक किसने साथ निभाया है ?
दिखावे में अब हम मानते नहीं,
ना, वोह नहीं गवाया है ।
जो भी दिखाना है,
खुदको दिखाना है ।
जंग अब खुदसे है,
और आइने में खड़े उस इंसान को गर्व महसूस करवाना है ।
Muskan Purohit
Written by
Muskan Purohit  16/F
(16/F)   
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   Shrika
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